समय की त्रासदी पर निबंध
समय की त्रासदी पर निबंध


ईश्वर की बनायी नेमतों में जो सबसे ज्यादा अनमोल है,वह है 'कुदरत'।देखें तो पाएंगे कि, आरम्भ से लेकर अभी तक मनुष्य ने बहुत प्रगति कि है। तकनीकी और नवाचार के बल पर नये नये आविष्कार किए हैं, लेकिन कुदरत ना वो कभी बना पाया है ,और शायद ना कभी बना पाएगा। कुदरत अपने आप में शाश्वत और अनन्य है, साथ में बहुत ईमानदार भी, इसे जैसा हम देते हैं, उससे कहीं गुना करके हमें लौटाती है। फिर चाहे बात इसकी गोद में रहकर विकास करने की हो, या इसकी सहनशीलता खत्म होने पर विनाश झेलने की।
आज सम्पूर्ण विश्व का वातावरण चिंता और तनावपूर्ण बना हुआ है, कोरोना नामक महामारी के चलते, महामारी से मतलब इस बिमारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है, और आगे भी होने की संभावना है।
हमारी कुदरत में हर चीज़ को अपने में समाहित करने की क्षमता है, फिर इस बीमारी के विष की बात ही क्या है, लेकिन फिर भी इसका प्रकोप बढता ही जा रहा है, तो समझ सकते हैं कि कुदरत की क्या दशा हैं और वो क्या चाहती है।
आज तक की अगर बात कहूं तो कोरोना से लाखों की संख्या में मौतें हो चुकी हैं, पूरा विश्व जिससे ग्रसित हो जूझ रहा है समझ सकते हैं, स्थिति कितनी गंभीर और खतरनाक है। इसके चलते हमारी चिकित्सा प्रणाली भी कमजोर सी होती जा रही है,निरन्तर प्रयासों के बावजूद भी इससे संबंधित मामलों में वृद्धि ही होती जा रही है, जिससे हर कोशिश घुटने टेकती हुई सी प्रतीत हो रही है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था पर भी एक बड़ा प्रभाव देखने को मिल सकता है। जहाँ विकसित देश भी भी इसके खतरनाक प्रभावों को रोकने के लिए हर संभव प्रयासों में जुटा हैं, वहाँ हमारा भारत तो विकासशील हैं। और वो विकासशील इसलिए भी है, कि किसी बात को हम गंभीरता से लेते ही नही है।
इस वक्त भी हम गम्भीर कहाँ हैं?
आज जब जरूरत है कि हम अपने प्रयासों से जागरुकता फैलाये, ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी गम्भीरता बताकर उनकी अपने स्तर पर मदद के लिए तैयार रहे, हम साॅशियल मीडिया पर इससे जुड़े जाॅक्स विडियों अपलोड करने मे व्यस्त हैं। पर्यावरण की शान्ति के लिए, घंटी और थाली बजाने की कहीं गयी थी, साॅशियल डिसटेंस के साथ, उसे भी हमारे सामूहिक उत्सव की तरह मनाया।
देश भर में 5 अप्रैल को दीवाली मनाने की बात थी, हमें दीप जलाकर नकारात्मक उर्जा खत्म करनी थी, लेकिन पटाखे भी जलाये गये, इससे तो यही लगता है कि, हम खुश हैं, कि हमारे देश में कोरोना फेल रहा है, और लोग मर रहे हैं।
दूसरे लाॅकडाउन में घर से नहीं निकलना है, वहां हम अपनी छोटी -छोटी जरूरतों के लिए अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं, जरा सोच कर देखिए उनकी जो पूरी तरह सुविधाहीन हैं। उनके लिए सरकारी प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन सभी जगह सरकार अभी नहीं पहुँच पायी है, उनके लिए तो भूख का भी खतरा है और जान का भी।
हमारी हमेशा यही शिकायत बनी रहती हैं कि, सरकार कुछ नहीं करती, लेकिन अब तो जब सरकार हर संभव उपाय करने में जुटी है, तो हम उसका सहयोग करने में क्यों पीछे हैं? सरकार को भी उतना ही समय मिला है, जितना आपको और हमको अपनी और अपने परिवार कि सुरक्षा के लिए मिला है। बस फर्क सिर्फ इतना हैं, कि इतने से समय में सरकार को इससे जुड़े हर मसले पर काम करना है, और हमें केवल अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के मसले पर।
अगर हम खुद अपने को एक कार्यकर्ता मानकर हर आदेश कि पालना अक्षरशः करें तो 80 प्रतिशत तो जंग हम जीत ही लेंगे, बाकी हमारे प्रयास है, पूरी जीत के लिए, क्यूँ हम हमारी सुरक्षा के लिए ही तैनात पुलिस कर्मियों से अभद्रता करते हैं। जहाँ हमें सहयोग प्रदान करना चाहिए। और इतना भी ना कर पाएं तो कोई फायदा नहीं है, हमारे शिक्षित नागरिक होने का।
इस दौरान एक सबसे अच्छा जो गुण देखने को मिला वह हैं सामूहिकता का, इसका सही दिशा में प्रयोग कर हम इस कठिन समय में अपने राष्ट्र का पूरा सहयोग कर सकते हैं। जरूरत हैं हम आगे आकर अपने कर्तव्य को पहचाने, बातें बहुत हो गयी, अब हम अपने व्यक्तिगत कार्यो से पूरा करने सहयोग करने को तैयार रहे, यही आग्रह और अपेक्षा हैं।