शिकायतें
शिकायतें




शिकायत एक छोटा सा शब्द हैं, लेकिन यही एक शब्द हमारे जीवन में उत्पाद मचा देता हैं। मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है, कि उसके पास जो कुछ है, कभी उसका आनंद ले ही नहीं पाता और जो नहीं है उसके पीछे भागता ही रहता है। मन मुताबिक कार्य नहीं होने की सूरत में, बस शिकायत ही बनी रहती हैं, कभी अपने आप से, कभी परिवार से और कभी हम सभी को बनाने वाले ईश्वर से।
यह कहानी है, जमींदार धनसिंह के बड़े पुत्र रामदीन की।
ऊँचे कद का लड़का, रंग गौरा, जमींदारी ठाठ को दर्शाने वाली रोबिली चाल, और क्यों न हो ठाठ -बाट में कोई कमी भी तो नहीं थी। लेकिन इतना सब होने के बावजूद वह खुश नहीं रह पाता था, किसी ना किसी चीज को लेकर उसकी शिकायत बनी रहती थी। लेकिन परिवार का लाडला था,किसी ना किसी तरफ उसकी हर ख्वाहिश पूरी कर दी जाती थी।
समय यूं ही गुजर रहा था, एक दिन धनसिंह को पास के ही गाँव में कर वसूली के लिए जाना था, रामदीन की जिद पर उसको भी साथ ले गया।गाँव पहुँच जाने पर धनसिंह उसे वही रुकने को, और थोड़ी देर में वापस लौट आने का कहकर वसूली करने चला गया। उसके जाने के बाद थोड़ी देर तो रामदीन शान्त बैठा रहा, फिर आदत वश खिसियाने लगा, सोचने लगा जब ऐसे यही बैठना था, तो उसे बाबा लाए ही क्यों? फिर उसके मन में ख्याल आया कि क्यों न मै भी बाबा के पास ही चला जाऊँ, गाँव छोटा ही है, बाबा भी यही कहीं पास ही होंगे। रामदीन चलने लगा, हरे -भरे खेतों में उसे चलना बहुत अच्छा लग रहा था। उसने रास्ते में पडने वाले कुएँ का पानी भी पिया, आज पहली दफा वह अकेला और स्वतंत्र घूम रहा था, तभी उसकी निगाह खेत में काम कर रहे किसान पर पडी। धूप अबतक तेज हो चुकी थी, वह किसान पूरी तरह पसीने में लथपथ था, शरीर पतला -दुबला व उस पर पूरे कपड़े भी नहीं थे। उसने देखा उसके पास दो बच्चे भी थे। अपना काम निबटा कर वह उनके पास आया और एक कपड़े में लिपटी दो रोटियाँ उनके आगे कर दी। बालक भी दिया हुआ भोजन खाने लगे, लेकिन एक शब्द उसकी अच्छाई या बुराई में नहीं कहा। जब बालक भोजन कर चुके, तब किसान खुद भोजन करने लगा, ले लेकिन उसके लिए भोजन बचा ही न था, उसने हल्की सी मुस्कराहट के साथ पानी पिया और फिर से अपने काम में लग गया।किसान के चेहरे पर संतोष था कि उसके बच्चों ने भोजन कर लिया। रामदीन यह सब बड़े ध्यान से देख रहा था। उसको अपने आप से ग्लानि हुई, वह सोचने लगा एक मैं हूँ जिसे हर बात से असंतुष्टि ही रहती है और एक ये है जिनको इतना परिश्रम करने के बाद भी भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता ।इतना साधारण जीवन होने के बाद भी इनके जीवन में कितना संतोष है। उसने भी निश्चय किया कि वह भी अब संतुष्ट जीवन जीने का प्रयास करेगा, और अपने परिवारजनों को कभी शिकायत का मौका नही देगा। इतने में उसे धनसिंह आता हुआ नजर आया, रामदीन ने दौड़कर उसका हाथ थाम लिया और अपने घर के लिए चल पडा एक नये संकल्प के साथ।