बालमन

बालमन

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शहर में मेला लगा है। छोटी -बड़ी रंग-बिरंगी दुकाने सजी हैं। कपड़ों ,मिठाइयों ,खिलौनों की दुकानों के अलावा बहुत सारी दुकानें खेल के लिए सामान से सजी बहुत ही आकर्षक लग रही थीं।बालमन को मोहने का सारा सामान वहां मौजूद था। हर्षोल्लास का वातावरण बना हुआ था। तभी मेले की भीड़ से खेलता, दौडता कुछ बच्चों का झुंड निकलकर आया और घूमते -घूमते एक मुखौटे की छोटी सी दुकान पर ठिठक गया। मुखौटे बहुत आकर्षक थे, सो बच्चों का मन वहां रम गया। उस झुंड में एक बहुत ही भोला और मासूम सा बच्चा था, उम्र भी ज्यादा नहीं थी, मोहित नाम था उसका।

उसे शेर का मुखौटा पसंद आया था शायद शांति से उसे उठा कर देखता रहा, फिर लगा कर इधर उधर घूमने के बाद दुकानदार से कुछ पूछने जा ही रहा था कि बाकी बच्चों में हड़कम्प सी मची और भागते हुए बाहर की ओर निकला, उस झटके से मोहित के हाथ से कुछ छूट गया। लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया और वह भी दुकान से बाहर आ गया। तभी दुकानदार ने उसे रोका और पूछा "मुखौटा कहाँँ ?"

मोहित :"पता नहीं!"

दुकानदार:"अभी जो तुम्हारे हाथ में था!"

मोहित :"हाँ था ,मैने देखा था, अच्छा था, पर अब मेरे पास नहीं है।"

दुकानदार को गुस्सा आ गया वह गुस्से में मुखौटे के लिए पूछने लगा लेकिन मोहित का उत्तर वही....

दुकान पर भीड़ इक्ट्ठा हो गयी थी, उसने दुकानदार को समझाया "कि क्यूँ एक मुखौटे के लिए, बाकी सौदा बर्बाद कर रहे हो।" मोहित को भेज कर उसको शांत रहने के लिए कहकर वे चले गये।

उनके जाने के बाद कुछ शान्त होकर वह नीचे गिरा सामान उठाने के लिए झुका तो दरवाजे की ओट में वहीं मुखौटा गिरा हुआ था।


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