खोटे सिक्के
खोटे सिक्के
चाय की दुकान पर भीड बहुत थी। एक छोटा सा लड़का, जिसकी उम्र 7-8 साल रही होगी, बड़ी तत्परता से अपने काम में लगा हुआ था।
उसे वहीं दुकान पर बैठा व्यक्ति बड़े ध्यान से देख रहा था। दुकान पर इतनी भीड़ थी, लेकिन उसके मुख पर जरा भी उदासी नहीं थी, बड़े ही व्यवस्थित ढंग से वह अपने काम को निबटा रहा था। थोड़ी देर में जब भीड़ कुछ कम हुई तो उस व्यक्ति ने उस लड़के को बुलाया, लडका तुरंत ही हाजिर था।
ग्राहक :तुम्हारा नाम क्या है?
लडका :सोनू (लडके ने तपाक से उत्तर दिया)
ग्राहक :मैने देखा, बड़ी फुर्ती से काम करते हो।
लडका :जी! (कुछ इतराते हुए)
ग्राहक :क्या रही करते हो पैसौ का?
लडका : पैसे नहीं लेता, दादा (दुकानदार) खर्चा चलाते है।
ग्राहक :(मजाक से) फिर तुम्हारे पास तो पैसे ही नहीं है।
लडका :अरे! नहीं, है ना ये देखों (अपनी जेब को हिलाकर, सिक्कों की आवाज़ करते हुए वह बोला।
(उसकी आँखों में खुशी सी तैर गयी।)
ग्राहक :अच्छा बताओ तो, कितने है?
लडका :(शर्माते हुए) फिर कभी
यह कहते हुए वह भाग कर फिर अपने काम में जुट गया
यह सिलसिला चलता रहा, उन दोनों में दोस्ती सी हो गयी थी।
फिर अचानक से कुछ दिनों तक वह व्यक्ति नहीं आया।सोनू की भी दिनचर्या यूँ ही चलती रही।
बहुत दिनों बाद जब वह व्यक्ति आया तो काफी उदास था, चुपचाप, अपने में गुम कुछ सोच रहा था। सोनू काफी देर, उसे देखता रहा, फिर उसके उसके पास जाकर बोला
सोनू :साहब! आज नहीं पूछोगे, कितने पैसे है?
उस व्यक्ति ने उसकी ओर देखा लेकिन बोला कुछ नहीं।
सोनू :चलो आज बताता हूँ कितने है।
ग्राहक :(प्यार से) पता है, आज मेरे पास भी पैसै नही हैं।
(पिछले दिनों, उस व्यक्ति को व्यापार में भारी घाटा हुआ था, जिसमें उसकी सारी संपत्ति चली गयी थी।)
सोनू :बस इतनी सी बात ये लो तुम्हारे पैसे।
(अपनी जेब से सिक्के निकालकर उसके हाथ में रखते हुए वह बोला फिर अपने अपने काम में लग गया।
व्यक्ति ने जब सिक्कों पर नजर डाली, तो पता चला, सिक्के खोटे थे, लेकिन इससे अंजान सोनू को अब तक बादशाह बनाए रखने हुए थे।
और क्या मनोबल है इस बालक का, जो अपनी इस संपत्ति को सौप कर भी चहरे पर सिकंद नही।
मैं यहाँ हार कर बैठा हूँएक कोशिश तो दोबारा मुझे भी करनी चाहिए निश्चित ही।
