सम्मान
सम्मान
महिला दिवस पर शहर की नामी महिला समिति द्वारा मुझे सम्मानित करने हेतु निमंत्रण मिला। नियत समय पर मैं वहां पहुँची। कार्यक्रम आरम्भ हुआ, सौ औरतों की भरी सभा में ज़मीन से जुड़ी महिलाऐं जैसे झाडू लगाने, बर्तन-कपड़े धोने, रसोई बनाने वाली, धोबन, दिहाड़ी मज़दूरी करने वाली महिलाऐं शामिल थीं। अप्वाद स्वरुप कुछ ऐसी महिलाएं भी थीं जिन्होनें ऑटो रिक्शा चालक, कुली, एस टी बस मैकेनिक आदि का काम कर विपरीत परिस्थितियों में अपना तथा अपने बच्चों का पालनपोषण किया। अपने बेटे-बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाई, जिस कारण वे उच्च पदों पर आसीन हो इज़्ज़त की ज़िन्दगी जी रहे हैं। इन माताओं को अपने आत्म विश्वास व बच्चों की सफलता पर गर्व है। हो भी क्यों न ?
मेरा क्षेत्र एवं परिस्थिति इन महिलाओं से अलग है। मैं शिक्षित एवं रेलवे के उच्च पद पर आसीन थी। जब मुझे सम्मानित करने हेतु मंच पर बुलाया गया तब मेरा परिचय कुछ इस तरह दिया गया, "मैं रेलवे के उच्च पद से सेवा निवृत्त हुई हूँ। मैंने अपने बच्चों को अपने दम पर बिना किसी की सहायता के उच्च शिक्षा दिलाई, जिस कारण वे उच्च पदों पर आसीन है। सेवा निवृति के पश्चात उच्च पदों पर आसीन मेरे बेटे-बहुओं ने मिलकर मेरे पी एफ़ एवं एफ़ डी का सारा पैसा मुझे बहला-फुसलाकर ले लिया। मैंने भी ममता के बहाव में आकर अपना सब कुछ उन्हें सौंप दिया।
इसके बाद उन्होंने मेरे ही मेहनत के पैसों से खरीदे मेरे अपने घर से मुझे बेघर कर दिया। मैं बहुत स्वाभिमानि व ईमानदार हूँ, किसी से कुछ नहीं लेती अपितु अपनी पेंशन से गुज़ारा करती हूँ। घर से निकाल जाने के बाद मेरे ही विभाग की महिला अफसर तथा उनके बेटे-बहू ने मुझे अपने घर में आसरा दिया।"
अपना ये परिचय सुन उस भरी सभा में मुझे समझ ही न आया कि यह सम्मान मुझे मेरे स्वाभिमानी, ईमानदार तथा आत्मनिर्भर होने पर दिया जा रहा है या मेरे कोख जनों की करतूत पर ?
