समझौते, सवाल और यात्राएं

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किसान की जमीन सालो से वही थी। थोड़ी थी पर घर भर के लिए अनाज और सब्जिया निकल ही आती थी। एक गाय थी तो थोड़ा बहुत चारा भूसा भी निकाल लिया जाता था। बाकी गाँव का सेठ तो है ही था, थोड़ा बहुत उधार उठा लिया जाता

 किसान का एक बेटा उसके साथ खेतो में काम करता और एक मजदूरी करने जाता। अब तो वह थोड़ा बहुत काम मिस्त्री का भी करने लग गया था। तरक्की हो रही थी। पर उसे मिस्त्री से ज्यादा अच्छा काम मजदूरी का ही लगता। ऐसी मान्यता हो उसके दिमाग में बैठी थी कि मिस्त्री का काम फलता नहीं है। गाँव के सभी मिस्त्री लम्बे समय से इस काम में थे पर उनके अपने घर का कोई ठिकाना नहीं था। वही कच्चा पक्का सा घर था उनका कई सालो से। कहते है की आदि मिस्त्री विशवकर्मा का उन्हें ऐसा ही आशीर्वाद था कि तुम दूसरो के घर तो बनाओगे पर तुम्हारा अपना घर आधार में ही लटका रहेगा। अब जितने मुह उतनी बाते। खैर अपने देश में अन्न पैदा करने वालो का भी हाल कुछ ऐसा ही है, क्या पता उन्हें किसका आशीर्वाद है।

तो हुआ ये के सरकार की स्मार्ट शहर की विकास योजना के तहत नयी सड़को और शहर के साथ लगते गाँवों की और सड़को का जाल बिछना शुरू हुआ, नयी नयी कालोनियों के नक़्शे बनने लगे जमीनो के भाव बढ़ गए या यु कहे की सट्टा बाजरियो ने भाव बढ़ा दिए। तो किसान के जमीन नयी बन रही सड़क के किनारे आ गयी। अब एक तरफ शहर को जाने वाला मुख्य मार्ग एयर एक तरफ किसान की जमीन थी। किसान जब खेत में होता, गाँव की चौपाल से गुजरता और घर में अपने बेटो के साथ बैठ के अरहर की दाल और भात खा रहा होता तो ये बात कही जाती कि जमीन के दाम बढ़ गए है। अब क्या करना है। उसे लगता की रेट बढ़ गए है तो क्या, अब वो जमीन बेच के खाने से तो रहा। समय के साथ जमीन जायदाद के रेट बढ़ा ही करते है ये लोग भी जाने क्या क्या सोचने लगते है।

 तो गाँव के जिमींदार ने उसे अपने यहाँ आने का न्योता भेजा। किसान ने सोचा की उसकी कोई उधारी तो बाकी नहीं है, और ना ही गाँव में किसी के साथ कोई झगड़ा हुआ है। हाँ जिमींदार के साथ पिछले पंचायत के चुनाव में उसकी कुछ कहा सुनी हुई थी जिस कारण उनका आपस में काम ही बोलचाल था। किसान इसी सोच में ड़ूबा जिमींदार के यहाँ चल दिया।

जिमींदार ने दरवाजे पर ही उसका स्वागत किया, घर के अंदर ले जाकर अच्छा शरबत पिलाया, और अपने बराबर तख़्त पर ही बैठाया और उसके कंधे पर बार बार हाथ रख के बात की। किसान हैरान था। इसी बीच वहां दो लोग और आ गए। पेंट सूट पहने, निकली तोंद, आखो पे रंगीन चश्मे, हाथ में सूटकेस उठाये। जमींदार ने उन्हें भी प्यार से बैठाया और किसान से उनका परिचय करवाया। वे शहर के जाने माने बिल्ड़र थे.

आगे की कहानी प्रबुद्ध पाठक समझ ही गए होगे। सीधी सी बात है कि किसान की जमीन हाईवे पर आने के कारण वह एक अच्छा होटल, शोपिंग माल, और प्राइवेट कालेज खोला जा सकता था जिससे काफी आमदन की जा सकती थी। यहाँ तक कि किसी बड़ी कम्पनी का पेट्रोल पंप भी खोलने की संभावना थी जिसमे इलाके के एम एल ए की भी  पार्टनर शिप  थी।

 तो किसान को अच्छा खाना खिलाने के बाद और कुछ सपने दिखाने के बाद उसे सरकार की पहुँच के बारे भी बताया गया। उसे ड़राया गया कि आने वाले समय में अगर सड़क को चौड़ा करने का प्रस्ताव पास हो गया तो सरकारी रेट पे तुम्हे अपनी जमीन देनी पड़ सकती है। पर यदि आज ये जमीन बेच दी तो तुम्हे अच्छे पैसे भी मिलेंगे और इन लोगो की सरकारी पहुँच के कारण रास्ते को चौड़ा करने की योजना बनेगी ही नहीं क्यकि एम एल ए साहब सड़क योजना के अध्यक्ष है और इन लोगो के पार्टनर भी।

इस पैसे से तुम अपना कोई अच्छा धंधा शुरू करो, अभी लड़के ब्याहने बाकी है, चार पैसे जेब में हो और अच्छा धंधा चल रहा हो तो रिश्ता भी अच्छा हो जाएगा।

 किसान मौन रह कर ये सब सुन रहा था। उसका दिमाग चकर घिन्नी बना हुआ था, कई दृश्य उसकी आखो के सामने आते और ओझल हो जाते। उसे याद आया की वो खेत मजदूर और किसान संगठनो के बीच कई वर्ष अपने साइकिल के पीछे लाल झंड़ा टाँगे रैलियों आंदोलनों में जाता रहा है। किसानो की जमीन के मुद्दे, उनके उजाड़े को रोकने की बाते और मजदूर एकता की बाते करता रहा है। फिर उसे ध्यान आया की किस प्रकार उनके किसान लीड़र सरकारों के साथ मिल गए है और आज कई तो उनकी सत्ता रूढ़ पार्टी में अच्छे पदो पर है उनका पूरा परिवार सम्पन्नता की सीढ़िया चढ़ गया है। इसके विरोध में हर बार या तो किसान नेता बदले गए या किसानो के बीच फूट बढ़ गयी और आज न जाने कितने किसान संघठन अस्तित्व में है। इन आंदोलनों को प्रोत्साहन देने वाली पार्टिया भी हाशिये पर है। भविष्य में कब क्या होगा इसका भी कुछ पता नहीं। जमींदार का हाथ जाने क्यों उसे आज ज्यादा हल्का लग रहा था, उसकी आवाज़ में वही अपना पन था जो उन किसान नेताओ के शब्दों में आजाता था जब वो सरकार के साथ मिल जाते थे और सरकार को ये अहसास करवा देते थे कि उनके साथ किसान वर्ग की बड़ी गिनती है।

 उसके बाद की कहानी आप ऊपर सुन ही चके है।

तो किसान अब इसी उहापोह में है की किया क्या जाय ? किसान नेता और जिमींदार दोनों ही उसके लिए एक जैसे है तो वो भी अपना लाभ देखे या विचारधाराओं को पकड़े अपने साइकिल पे झंड़ा टाँगे लोगो को लामबंद करे। इसी सोच में वो अपने घर की ओर लौट रहा है। उसका निर्णय बहुत गंभीर होगा और ख़तरनाक भी। शायद उसका निर्णय आपको और मुझे उन तमाम किसनो से मिल जाए जिनकी जमीन के साथ सड़के बानी, कालोनिया बनी और एक शहर के फैलाव और चकाचौंध में वो लुप्त हो गयी। 

क्या आप उसकी सहायता करेंगे, हाँ वो बड़ी बड़ी और नई छपी किसान आंदोलनों पुस्तको और साम्यवाद से अपनी रईसी बनाने वालो को जिमींदार का ही साथी समझता है। इसलिए कोई तुक का आदमी जो किसान के साथ उसकी जमीन पर उगे बबूल की पेड़ की छाव में बैठ के और उसके पसीने की दुर्गन्ध को आत्मसात कर उसे कोई राय दे सके, आमंत्रित है। एक बात और वहां मिनरल वाटर की सुविधा नहीं होगी, किराये के आलोचक भी नहीं होगे। 


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