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Shakun Agarwal

Abstract Drama

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Shakun Agarwal

Abstract Drama

समाज का ताना बाना

समाज का ताना बाना

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जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई समधी जी।मि. वर्मा ने फोन पर अपने होने वाले समधी मि.शर्मा को बधाई दी।

धन्यवाद, किन्तु आपने इतनी मिठाई और उपहार क्यों भिजवाए हैं?हम नहीं रख सकते।

मि. शर्मा ने जवाब दिया।

क्यों आप हमें उपहार दे सकते हैं तो हम क्यों नहीं?मि वर्मा ने कहा।

अरे आप लड़के वाले हैं और हम लड़की वाले।भला लड़की का पिता कभी लड़की के घर से उपहार ले सकता है? एक तो आप बिना किसी दहेज की माँग के हमारी बिटिया को ले जा रहे हैं,ऊपर से ये उपहार..क्षमा करें,मैं इन्हें स्वीकार नहीं कर सकता।मि. शर्मा ने कहा।

समधी जी ये हमारे समाज का बनाया हुआ ताना बाना है कि लड़की के घर से उपहार नही ले सकते।क्या यह रिश्ता मित्रवत नहीं निभाया जा सकता?लड़के वाले और लड़की वाले होने का ठप्पा जरूरी है ?आप अपनी लड़की हमें दे रहें हैं।आपका कर्ज तो हम कभी भी चुका नहीं सकते। मि.वर्मा ने कहा।

किन्तु इस समाज के बनाए हुए ताने बाने को आप और हम मिलकर नहीं हटा सकते। सदियों से यही रीत चली आ रही है।मि. शर्मा का जवाब।

 मि. वर्मा-क्यों नहीं...आप और हम मिलकर शुरुआत तो कर ही सकते हैं। और फिर धीरे धीरे सदियों से चली आ रही रीत तोड़ी जा सकती है।कृपया हमारी तुच्छ भेंट को अस्वीकार न करें।

मि. शर्मा-अरे अरे समधी जी आपके उपहार सिर माथे पे हैं, बस अपना स्नेह इसी तरह बनाए रखिएगा। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।आपसे वादा करता हूँ कि अपने पुत्र का विवाह भी बिना दहेज के ही करूँगा, और रिश्ता भी लड़के वाले की तरह नहीं अपितु मित्रवत ही निभाऊँगा।आपने सही कहा कि हम और आप मिलकर शुरुआत तो कर सकते हैं सदियों से चले आ रहे समाज के ताने बाने को तोड़ने की।


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