जगदम्बे का स्वागत
जगदम्बे का स्वागत
कुसुम सुबह से इधर उधर भाग दौड़ कर रही थी।पूरे घर को सजाने था। गुब्बारे तो पूरे घर में लग ही चुके थे।लेकिन फूलों की सजावट अभी बाकी थी।द्वारे पे रंगोली भी बनानी थी।बहु रितिका हॉस्पिटल से अपनी चार दिन की बेटी को लेकर पहुँचने ही वाली थी।पोती के स्वागत में वो कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती थी।तभी उसकी पड़ोसन मंजू उसके घर आई।अपने घर कीर्तन का न्योता देने,जो अगले हफ्ते होने वाला था।उसने बताया कि माँ जगदम्बा की बड़ी सी मूरत वो अपने घर लाने वाली है, उसके उपलक्ष्य में उसने कीर्तन रखा है।बड़े जोर शोर से तैयारियाँ चल रही है।गाजे बाजे के साथ वो जगदम्बा को अपने घर लाएंगी। फिर उसने कुसुम से पूछा कि तुम क्यों अपने घर में इतनी सजावट कर रही हो।कुसुम ने बताया कि उसकी बहू पोती को लेकर हॉस्पिटल से आने ही वाली है।
मंजू ने तुनक कर कहा कि बेटी के लिए इतनी सजावट।बेटा हुआ होता तो बात अलग थी।
कुसुम ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया-तुम्हारे घर तो जगदम्बा की मूरत आ रही है, लेकिन मेरे घर तो साक्षात जगदम्बा आ रही है।