Saroj Verma

Romance

4.5  

Saroj Verma

Romance

सजना साथ निभाना...!!

सजना साथ निभाना...!!

55 mins
500


फ़रवरी की हल्की ठंड!!

सेठ धरमदास का हवेलीनुमा मकान जो उनके दादा जी ने बनवाया था, समय के साथ-साथ मकान में भी आधुनिक परिवर्तन किए गए, नये बाथरूम बनाए गए, सहूलियत के हिसाब से उसमें फेर-बदल होते रहे, बस नहीं बदलीं तो उस घर की परम्पराए।

सामने बहुत बड़ा लोहे का गेट, गेट से अंदर आते हुए अगल-बगल फुलवारी लगी है फिर आंगन है और आंगन में तुलसी चौरा है, जहां सुबह-शाम दिया जलाया जाता है।

सेठ धरमदास अग्रवाल के घर की छत में चहल-पहल मची हुई है, सब देवरानियां-जेठानियां मिलकर छत पर बड़ियां और पापड़ बना रहे हैं, सब जो जिस काम में माहिर बस अपनी-अपनी कला दिखाने में लगा हुआ है, सब एक-दूसरे से हंसी-ठिठोली कर रही है।

वैसे तो घर में इतनी बहुएं नहीं है जितनी की घर की छत पर दिख रही है, वो तो सेठ धरमदास का परिवार इतना बड़ा है कि ज्यादातर चचेरे, फुफेरे, ममेरे भाई सब उसी मुहल्ले में आस-पास रहते हैं और सुख -दुख के अवसर पर सब एक हो जाते हैं, सारी महिलाएं छत पर आए दिन मिलकर कोई ना कोई काम करती रहती है क्योंकि सेठ धरमदास की बड़ी बेटी की अगले महीने शादी है तो सारी महिलाएं मिलकर आचार, पापड़ और बड़ियां बना रही हैं, विवाह की तैयारियां जोरों पर है।

तभी धरमदास जी की पत्नी पूर्णिमा ने अपनी छोटी बेटी को आवाज लगाई__

विभावरी....ओ विभावरी....वो नीचे डलिया में नींबू कटे रखे हैं आचार के लिए जरा ऊपर तो ले आना।

नहीं मम्मी! मैं ऊपर नहीं आ रही, धूप तेज हैं मेरा रंग काला पड़ जाएगा, अगले महीने दीदी की शादी है, बरात वाले क्या कहेंगे, दूल्हे की साली कितनी काली है, विभावरी बोली।

ये सुनकर छत पर मौजूद सभी लोग हंसने लगे।

सुन ज्यादा नखरे मत कर, चुपचाप सर पर दुपट्टा डालकर ऊपर चली आ, पूर्णिमा बोली।

अच्छा!! मां आती हूं, गुस्सा मत करो, विभावरी बोली।

  विभावरी जैसे ही छत पर आई, उसे देखकर सब हंसने लगे।

क्यो? सब मुझे देखकर क्यों हँस रहे हो, विभावरी ने सबसे पूछा।

अरे! तूने तो अपने चेहरे को इस तरह से ढक रखा है कि एक महीने बाद तेरा ही ब्याह होने वाला है, मधु काकी बोली।

मेरा ब्याह तो नहीं होने वाला है लेकिन दीदी का तो होने वाला है, मेरी दीदी इतनी सुन्दर इतनी गोरी उनके बराबर ना सही थोड़ी तो लगूं कि मैं उनकी बहन हूं, जयमाला में उनके साथ जाने लायक तो लगूं, विभावरी बोली।

तभी विभावरी ने छत की बनी दीवार पर नींबू की डलिया रख दी और उसी दीवार से टेक लगा कर खड़ी होकर बातों में मग्न हो गई, तभी किसी ने उसके भइया दीपक को नीचे से आवाज लगाई___

दीपक भइया.....दीपक भइया.... और विभावरी जैसे ही दीवार से नीचे झांकने लगी, नींबू भरी डलिया में हाथ लगा और वो सीधे नीचे खड़े लड़के पर जा गिरी।

पूर्णिमा उठी और बड़बड़ाई, इस लड़की से एक भी काम सही ढंग से नहीं होता, पता नहीं ससुराल जाकर क्या करेंगी, सारे नींबू खराब कर दिए और राधा जो उनकी नौकरानी है उसे आवाज़ देकर कहा जरा आंगन तो साफ कर लें,

राधा बोली, अच्छा मालकिन!!

फिर पूर्णिमा ने नीचे झांककर देखकर पूछा, कौन हो बेटा, किससे काम हैं।।

अरे, आंटी जी दीपक भइया है, मैं उनके दोस्त राहुल का छोटा भाई, राहुल भइया ने दीपक भइया के लिए कुछ किताबें भिजवाई हैं, वहीं देने आया हूं।

अच्छा! बेटा आंगन के बगल से गैलरी से होती हुई छत के लिए सीढ़ियां हैं, वहीं से चढ़कर ऊपर आ जाओ, पूर्णिमा बोली।

ठीक है आंटी आता हूं, उस लड़के ने जवाब दिया।

और वो जैसे ही ऊपर आया, विभावरी खिलखिला कर हँस पड़ी।

पूर्णिमा बोली, अब खड़ी खड़ी हँस क्या रही है, सब तेरा ही तो किया कराया है, हल्दी लगे नींबू गिरेंगे इस पर तो पीला ही दिखेगा ना, अब जा और भइया की किताबें छत वाले कमरे में रखवा दे।

विभावरी बोली, चलो भइया के कमरे में, मैं इतनी किताबें नहीं उठा सकतीं।

पूर्णिमा ने पूछा, तुम्हारा नाम क्या है? बेटा।

उस लड़के ने उत्तर दिया, आंटी मेरा नाम नवल किशोर है,

विभावरी अब तो पेट पकड़ पकड़ कर हंसने लगी, ये कैसा नाम हुआ, इस ज़माने में कौन ऐसा नाम रखता है।

नवल किशोर को बहुत बोरियत हो रही थी, विभावरी की बातों से,

तभी पूर्णिमा बोली, विभावरी, बस बहुत हुआ, अब चुप हो जा और जाकर किताबें रखवा दे दीपक के कमरे में।

चलो अब खड़े क्या हो, विभावरी बोली।

नवल किशोर चुपचाप दीपक के कमरे में चल पड़ा, कमरे में जाकर विभावरी ने कहा,रख दो किताबें टेबल पर, नवलकिशोर ने किताबें रख दी, इतने में विभावरी ने जैसे ही अपने चेहरे से टुपट्टा हटाया तो नवल किशोर, विभावरी को देखता ही रह गया__

विभावरी बोली ऐसे क्या देख रहे हो? कितने में पढ़ते हो?

अभी कालेज में हूं बी.एस.सी.फर्स्ट इयर में, नवलकिशोर बोला।

और तुम्हारा नाम कैसा है, नवलकिशोर लेकिन राहुल भइया का का तो इतना अच्छा नाम है, तुम्हारा ऐसा नाम किसने रखा? विभावरी ने पूछा।

अरे! तुम्हें पता नहीं है राहुल भइया के घर का नाम राहुल है उनका स्कूली पेपर में नाम तो चित्तकिशोर है, नवलकिशोर बोला।

अब तो विभावरी ठहाका मारकर हँस पड़ी।

फिर पूछा आजकल के जमाने में कौन ऐसा नाम रखता है, बूढ़ों वाला।।

नवलकिशोर बोला, मेरे दादा जी ने बड़े प्यार से रखा था।

अच्छा चलो ठीक है, अब बाहर चलो, विभावरी बोली।।

दोनों फिर से छत में आ गए।

पूर्णिमा बोली, बेटा खाने का समय है, अब सब खाना खाने जा रहे हैं तुम भी अब खाना खाकर ही जाना।

नहीं!!आंटी जी इसकी क्या जरूरत है, नवल किशोर बोला।

अरे बेटा, तो क्या हुआ ?तुम हमारे घर पहली बार आए हो और शादी का घर है, सब लोग खाना खाऐगे और तुम ऐसे ही चले जाओगे तो अच्छा लगेगा, पूर्णिमा बोली।

ठीक है आंटी अगर आप कह रही है तो मैं खाना खाकर ही जाता हूं, नवलकिशोर बोला।

अच्छा तुम नीचे पहुंचो, मैं आती हूं, पूर्णिमा बोली।

नवलकिशोर जैसे ही नीचे पहुंचा, लाठी टेकते हुए विभावरी की दादी आ पहुंची।

उन्होंने नवल से पूछा, कौन हो तुम? कोई मेहमान हो।

तब तक विभावरी आ पहुंची और बोली, हां दादी, दीदी के ससुराल से आए हैं संदेशा लेकर तभी तो इतनी हल्दी लगा रखी है कि अलग दिख जाए कि दीदी के ससुराल से आए हैं।

अच्छा जी, दादी बोली ।

तभी पूर्णिमा आ पहुंची और बोली, क्यों परेशान कर रही है बच्चे को।

और मांजी आप भी किसकी बातों में आ रही है इसकी तो आदत है सबसे मजाक करने की।

चलिए मांजी खाना खाइए और बेटा जाओ तुम भी हाथ धो लो।

अच्छा आंटी जी इतना कहकर नवलकिशोर हाथ धोने चला गया।

बहुत सारे मेहमान थे, सबकी पंगत लगी, इतने आधुनिक समय में भी सेठ धरमदास के घर में सब जमीन पर बैठकर ही खाना खाते हैं।

सबकी थालियां रखी गई और उनमें कई तरह की कटोरियों में कई तरह के व्यंजन थे, सारा खाना महाराज ने ही बनाया था, किसी कटोरी में कढ़ी-पकौडी, किसी में तरी वाला गोभी-आलू, किसी में छोले तो किसी में दालमक्खनी, किसी में बैंगन का भरता, किसी भी हरे चने का निमोना, किसी में खीर तो किसी में गरम-गरम गुलाब जामुन, पापड़, आचार, चटनी भी थे साथ में , जीरे तड़के वाले चावल जो कि शुद्ध घी मे सराबोर थे और सूखे मेवे उसकी शोभा बढ़ा रहे थे, सहूलियत के हिसाब से जिसको रोटी चाहिए थी रोटी थी जिसको पूड़ी चाहिए थी पूड़ी थी।

इतना सारा खाना देखकर नवलकिशोर सोच में पड़ गया कहां से शुरू करूं, पहले क्या खाऊं, फिर खाना शुरू किया खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, खाना खाकर सब एक साथ उठते हैं उनके घर में, वो उठने ही वाला था कि दादी ने टोंक दिया।

कि सबके साथ उठना और वो वहीं फिर से बैठ कर, सबके खाना खा चुकने का इंतजार करने लगा।

जब सब खाना खा चुके, तब सभी एक साथ उठे__

नवलकिशोर भी उठा और पूर्णिमा से बोला, अच्छा आंटी जी अब मैं चलता हूं, इतने अच्छे लंच के लिए धन्यवाद।

ठीक है बेटा, आते रहना शादी का घर है कुछ ना कुछ काम लगा ही रहता है आते रहोगे तो कुछ मदद हो जाया करेंगी, पूर्णिमा बोली।

जी आंटी, इतना कहकर नवलकिशोर चला गया।

घर आकर नवलकिशोर के मन में विभावरी की सूरत और उसकी बातें ही चल रही थी, उसने ऐसी चंचल लड़की कभी नहीं देखी थी।

उधर विभावरी भी नवल के बारे में सोच रही थी कि कितना बुद्धू है लेकिन मेरी वजह से बेचारे के कपड़े खराब हो गये।

शाम को दीपक घर आया और पूर्णिमा से पूछा, मां कोई किताबें देने आया था क्या?

पूर्णिमा बोली, हां बेटा, कोई नवलकिशोर नाम का लड़का आया था।

किताबें कहां है, मां!! दीपक ने पूछा।

अरे, विभावरी से पूछ! उसी ने रखवाई थी, पूर्णिमा बोली।

ठीक है मां, दीपक इतना कहकर विभावरी के पास पहुंचा।

अरे, विभू कोई किताबें लेकर आया था, दीपक ने पूछा।

हां, कोई नवलकिशोर, विभावरी बोली।

कहां है किताबें , दीपक ने पूछा।

जी , आपके कमरे में रखवा दी थी।

ठीक है, मैं देख लेता हूं, इतना कहकर दीपक चला गया।

ऐसे ही शादी की तैयारियों में सब व्यस्त थे, राहुल भी नवलकिशोर का भाई , दीपक के साथ साथ लगा रहता, कुछ ना कुछ काम के लिए दोनों ही दिन भर भागा दौड़ी करते रहते।

फिर एक दिन राहुल के साथ नवलकिशोर भी आ गया, राहुल बोला आज इसे भी ले आया, ये यहां कमरे में अकेले रहता है कह रहा था भइया आप तो चले जाते हैं और मैं यहां अकेले रहता हूं, ये इसी साल यहां आया है पढ़ने के लिए, गांव में बारहवीं के बाद सुविधा नहीं थी पढ़ने की तो मैं साथ लिवा लाया गांव से, यहीं कालेज में एडमीशन करा दिया है बी.एस.सी.में।

दीपक बोला, अच्छा तो यही आया था उस दिन किताबें देने,

राहुल बोला, हां, मैं ने पर्ची में घर का पता लिख दिया था।

तभी पीछे से विभावरी आ गई, हां राहुल भइया एक बात और पता चलीं कि आपका नाम चित्तकिशोर है।

राहुल बोला, इस नवल ने बताया होगा।

विभावरी बोली, हां और हँसकर जाने लगी।

तभी दीपक बोला, विभा जरा नवल को अंदर बिठा और कुछ चाय नाश्ता करा दें फिर इसको भी कोई ना कोई काम पकड़ा देते हैं।

ठीक है, भइया और विभावरी नवल से बोली उठो!! चलो अंदर

नवल चल दिया विभावरी के कहने पर।

विभावरी ने बैठक में जाकर नवल से कहा कि यही बैठो , मैं आती हूं , थोड़ी देर में विभावरी चाय और गरम गरम कचौड़ी लेकर आ गई उसने नवल को नाश्ता दिया और चली गई।

ऐसे ही शादी नजदीक आ रही थी और दिन गुजरते जा रहे थे, अब कभी कभी नवल भी राहुल के साथ आ ही जाता था, वो तो सिर्फ विभावरी को देखने ही आता था, विभावरी भी उसे देखकर खुश हो जाती ।

एक दिन नवल ने विभावरी से पूछा तुम पढ़ती हो।

विभावरी बोली , हां

लेकिन तुम तो हमेशा घर में रहती हो, नवल बोला।

हां, बी.ए. फर्स्ट इयर में पढ़ती हूं लेकिन प्राइवेट, विभावरी बोली।

लेकिन प्राइवेट क्यो? नवल ने पूछा।

हमारे खानदान में लड़कियां कालेज नहीं जाती, मेरी बुआ भी ऐसी ही पढ़ी है और मेरी दीदी भी।

अच्छा वहीं दीदी जिनकी शादी होने वाली है, नवल बोला।

विभावरी बोली, हां मेरी यामिनी दीदी।

लेकिन मैंने देखा नहीं उन्हें आज तक, नवल बोला।

हां, कहते हैं कि शादी के पहले होने वाली दुल्हन को ज्यादा बाहर नहीं निकलना चाहिए नजर लग जाती है, विभावरी बोली।

अच्छा, अब मैं कुछ काम करती हूं, परसों तिलक चढ़ना है, सारे रिश्तेदार दूल्हे के घर जाएंगे, तिलक चढ़ाने, मां कह रही थी कि सारी चीजों की लिस्ट बनाकर बाबू जी को दे दूँ कहीं कुछ कम तो नहीं, कल का टाइम है अगर कुछ घट रहा होगा तो आ जाएगा इतना कहकर विभावरी चली गई।

नवल भी अपने काम में लग गया, अब तो नवल आए दिन आने लगा सिर्फ विभावरी को देखने के बहाने उधर विभावरी भी परेशान हो जाती थी अगर नवल नहीं आता था तो।

दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे नई उम्र का आकर्षण था, इस उम्र में भावनाओं पर काबू नहीं रहता, बस वहीं हो रहा था दोनों के साथ।

अब शादी को दो तीन दिन ही बचे थे, तैयारियां जोरों पर भी थी, कोई अपना लहंगा लेनें जा रहा था तो कोई अपने जेवर, महिलाओं को तो बहुत अच्छा मौका मिल जाता है, सजने-संवरने का, सब एक-दूसरे से पूछ रही थी कि कौन सी चूड़ियां और कौन से जेवर इन कपड़ों के साथ अच्छे लगेंगे।

पूरे घर में चहल-पहल मची थी, मण्डप भी सज चुका था लड़की को हल्दी और तेल चढ़ना था, शाम को महिलाएं मंगल-गीत गा रही थीं, लड़की को मण्डप के नीचे लाया गया, एक एक करके सबने लड़की को तेल और हल्दी चढ़ाकर शगुन किया।

सब विभावरी से मजाक कर रहे थे कि दुल्हन की बची हुई हल्दी लगाने से ब्याह जल्दी हो जाता है, ले तू भी लगा लें तेरा ब्याह भी जल्दी हो जाएगा।

वहीं पर नवलकिशोर भी बैठा, सारे नेगचार देख रहा था, बार बार नजरें चुरा कर विभावरी की ओर भी देख लेता, विभावरी लग भी बहुत सुंदर रही थी।

सारे नेगचार खत्म हो गये अब रात के खाने का समय हो रहा था, तभी राहुल बोला, अच्छा आंटी जी हम चलते हैं।

पूर्णिमा बोली, ऐसे कैसे अब रात का खाने का समय हो रहा है, थोड़ी देर में सब खाना खायेंगे, खाना खाकर जाओ।

राहुल बोला, ठीक है आंटी जी... लेकिन थोड़ा जल्दी जाना है, मकान मालिक को हमारे देर से आने में परेशानी होती है।

पूर्णिमा बोली, अच्छा तो ठीक है, मैं विभावरी से कहती हूं, वो तुम दोनों का खाना लगा दे।

राहुल बोला, ठीक है आंटी जी!!

पूर्णिमा ने विभावरी को आवाज दी, विभावरी...ओ विभावरी...

हां !मां क्या बात है ?

बेटी, सुन इन दोनों भाइयों को जल्दी जाना है, जरा इनका जल्दी से खाना तो लगवा दें और सुन रसोई के बगल वाले कमरे में लगवा दें, दादी देखकर ये ना कहने लगे कि घर के बड़े बूढ़े बैठे हैं और तू इन्हें जल्दी खाना खिलवा रही है, पूर्णिमा बोली।

ठीक है मां, अभी लगवाती हूं, राहुल भइया आप जब तक रसोई के बगल वाले कमरे में चलिए, मैं खाना लेकर आती हूं और पूर्णिमा खाना लेने चलीं गईं।

पूर्णिमा ने खाना परोसा__

दोनों थालियां व्यंजनों से भरी हुई थी, दोनों थालियों में कम-से-कम छः छः कटोरियां थी, एक में मटर-पनीर, एक में छोले, एक मे दही-आलू की सब्जी, एक में दाल तड़का , एक में भरवां बैंगन और एक कटोरी में गरम गरम गाजर का हलवा वो भी सूखे मेवे और देशी घी में सराबोर, साथ में मसाले वाली भरवां मिर्च, रोटियां और सलाद भी था।

नवल बोला, इसमें से एक दो सब्जियां कम कर लो विभावरी मैं इतना नहीं खा पाऊंगा।

तुम्हीं हटा दो, जो तुम्हें पसंद ना हो, विभावरी बोली।

नवल ने भरवां बैंगन और छोले हटा दिए।

लेकिन भरवां बैंगन तो आज मैंने बनाए थे, विभावरी बोली।

तब नवल ने कहा ठीक है और मटर पनीर हटा दिया अपनी थाली से, विभावरी खुश हो गई।

विभावरी बोली मैं अभी और रोटियां लेकर आती हूं।

तभी राहुल बोला, क्यो रे! तुझे तो मटर पनीर बहुत पसंद हैं और तू भरवां बैंगन कब से खाने लगा।

नवल दांत निकालकर हंस दिया।

राहुल बोला, सुधर जा बेटा, मैं सब समझ रहा हूं लगता है अब तू बड़ा हो गया है।

राहुल ने फिर दांत निकाल दिए।

दोनों खाना खाकर चले गए।

अब अगले दिन मेंहदी की रस्म भी हो गई, सबने खूब गाना-बजाना किया।

अब आज शादी वाला दिन है दिन भर घर में खूब चहल-पहल रही, जिसको देखो वही काम करते हुए नजर आ रहा है। कहीं मिठाइयों की खुशबू तो कहीं पूड़ी-कचौडी की।

और ऐसे ही शाम भी हो गई और शाम से रात भी सब महिलाएं और लड़कियां अपने अपने बनाव-सिंगार में लग गए क्योंकि बारात के आने का समय हो गया था।

विभावरी तैयार होकर बाहर आई, एकाएक नवल की नजर पड़ गई विभावरी पर, वो एकटक देखता ही रह गया।

विभावरी बोली, क्या देख रहे हो?

बहुत ही सुंदर लग रही हो, नवल ने कहा।

विभावरी शरमाकर चली गई।

लेकिन कुछ देर बाद पूर्णिमा घबराई सी, सेठ धरमदास जी के पास पहुंची, पूर्णिमा की बात सुनकर सेठ धरमदास अपने सर की पगड़ी निकाल कर वहीं पड़े बिस्तर पर धड़ाम से बैठ गए, उनके माथे की रेखाएं बता रही थी कि कुछ तो ऐसा हुआ जो शायद नहीं होना चाहिए था।‌

तभी पूर्णिमा बोली, आप चिंता ना करें इसका भी उपाय है, बिल्कुल भी निराश ना हो, मैं ऐसा कुछ भी नहीं होने दूंगी की आपकी इज्जत पर आंच आए।‌

और पूर्णिमा ने विभावरी को अंदर बुलवाया___

पूर्णिमा को ऐसे हैरान और परेशान देखकर विभावरी ने पूछा, मां क्या बात है जो आप इतनी परेशान हैं।

पूर्णिमा, विभावरी के पैरों तले गिर पड़ी और बोली__

तू ही अब कुछ कर सकती हैं, तू ही इस खानदान की इज्जत बचा सकती है।

मां ऐसा क्यों कह रही हो? क्या हो गया है तुम्हें? विभावरी ने पूछा।

बेटी वो भाग गई, हमारी इज्जत पर दाग लगाकर, उसने कुछ नहीं सोचा किसी के बारे में, पूर्णिमा बोली।

कौन मां? विभावरी आश्चर्य में थी।

और कौन यामिनी, अब तू ही हमारी डूबती नैया को पार लगा सकती है, पूर्णिमा बोली।

लेकिन कैसे मां? विभावरी ने पूछा।

यामिनी की जगह तू इस मण्डप में दुल्हन बनकर बैठ जा.....

पूर्णिमा बोली।

नहीं ... मां... ऐसे कैसे हो सकता है...विभावरी चीखी।

विभावरी बोली, मां ऐसे कैसे तुम मेरी बलि चढ़ा सकती हो, मैं कैसे दीदी की जगह बैठ जाऊं, कुछ तो सोचो मेरे बारे में, अभी एक मिनट पहले मैं हँसती मुस्कुराती लड़की थी और दूसरे मिनट में मुझे तुमने किसी की दुल्हन बनने को कह दिया।

कहां जाएगा मेरा भविष्य, जब लड़के वालों को पता चलेगा कि मैं वो नहीं हूं जिसे वो ब्याहने आए थे, इतना बड़ा धोखा, अगर उन लोगो ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो....

ऐसा कुछ नहीं होगा बेटी, मुझ पर भरोसा रख, मैं तेरे साथ अन्याय नहीं होने दूंगी, पूर्णिमा बोली।

अन्याय.....अन्याय की दुहाई मत दो मां, वो तो तुम अभी कर रही हो, क्यों....क्या मेरे कुछ सपने नहीं है, मेरे अरमान नहीं है , इतना कहकर विभावरी जमीन में घुटनों के बल बैठकर फूट-फूटकर रोने लगी।

मां-बेटी दोनों ही आंसुओं में डूबी थी!!

लेकिन बेटी खानदान की इज्जत पर दाग लग जाएगा अगर बारात लौट गई तो, पूर्णिमा बोली।

कौन सी इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है, विभावरी गुस्से से बोली।

मां...इस घर में इज्जत के नाम पर बहुत से ऐसे काम होते आए हैं जो नहीं होने चाहिए थे, हम लड़कियां हैं मां ....कोई बेजुबान जानवर नहीं कि आप लोग जब चाहे जिसके गले हमें बांध दोगें, हमें भी जीना है, खुली हवा में सांस लेना है, हमें भी कालेज जाके पढ़ना है नाकि प्राइवेट, मत करो मां ऐसा मत करो, इतना कहकर विभावरी ने रो रोकर अपनी आंखें लाल कर ली।

पूर्णिमा बोली, जाकर देख अपने पापा को कैसी हालत हो गई है उनकी अगर तूने भी शादी से इनकार कर दिया और बारात वापस लौट गई तो तेरे पापा ये सब नहीं सह पायेंगे इसलिए बेटी मान ले मेरी बात...!!

थोड़ी देर में ही बारात दरवाजे पर आ पहुंची, पूर्णिमा ने ननद को बुला कर सारी बात कह दी__

बिट्टी आज सम्भाल ले, जिंदगी भर तेरा एहसान नहीं भूलूंगी, तेरे भइया तो जैसे होश में ही नहीं है, पूर्णिमा बोली।

सारी बातें पता चलते ही द्वार-चार के सारे नेग सुरेखा और उसके पति भूपति ने किए, बुआ-फूफा ने दूल्हे का स्वागत तो कर दिया लेकिन अब आगे की रस्म कैसे हो?

कुछ देर बाद सेठ धरमदास ने मधुसुदन को अंदर बुलवाया, मधुसुदन अंदर आया, सेठजी को देखकर समझ गया कि कोई ना कोई बात जरूर है।

मधुसुदन ने जैसे ही पूछा कि, कहिए क्या बात है आपने मुझे अकेले क्यो बुलवाया?

वैसे ही सेठ धरमदास ने अपने हाथों में ली हुई पगड़ी जो कि वो पहले से ही उतार चुके थे, मधुसुदन के पैरो में रख दी।

मधुसुदन पीछे हटकर बोला_अरे..... अरे.....ये आप क्या कर रहे हैं?

सेठ धरमदास बोले, डाक्टर साहब अब सब आपके हाथ में है आप चाहें तो इस घर की इज्जत नीलाम होने से बचा सकते हैं।

मधुसुदन ने पूछा ऐसा क्या हुआ है ?जो आप इतने परेशान हैं।

धरमदास बोले, बेटा अब कैसे कहूं, हमारी ही परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी तभी उसने ऐसा किया।

आप खुलकर बतायेगे कि क्या हुआ है ? पहेलियां क्यों बुझा रहे हैं, मधुसुदन बोला।

धरमदास जी बोले, बेटा वो हमारी इज्जत पर दाग लगा कर भाग गई, अगर तुम तैयार हो तो हम तुम्हारी शादी अपनी छोटी बेटी विभावरी से करने के लिए तैयार हैं।

अरे, ये सब क्या हो गया, आपने यामिनी की मर्ज़ी नहीं पूछी थी कि वो इस शादी के लिए तैयार हैं कि नहीं, मधुसुदन बोला।

हां, पूछी थी लेकिन हमें नहीं मालूम था कि वो किसी और को चाहती है उसने कभी किसी से कुछ कहा ही नहीं, सेठ जी बोले।

लेकिन यामिनी मुझसे से तो वैसे भी पांच साल छोटी है फिर तो विभावरी में और यामिनी की उम्र में कुछ अंतर तो होगा, मधुसुदन बोला।

हां, विभावरी यामिनी से तीन साल की छोटी है, सेठ जी बोले।

तब तो आठ साल का अंतर होगा, मुझ में और विभावरी में, मधुसुदन बोला।

लेकिन बेटा ये शादी ना हुई तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा, सेठ धरमदास बोले।

लेकिन आपने विभावरी से पूछा कि वो तैयार है कि नहीं, मधुसुदन ने पूछा।

सेठ धरमदास बोले, वो हमारी बेटी है, हमारा अधिकार है उस पर, उससे क्या पूछना? हमारे यहां बेटियां वहीं करती है जो हम कहते हैं!!

तभी तो यामिनी ने ऐसा किया, आपने जबरदस्ती ये शादी थोपनी चाही और वो रजामंद नहीं थी आपने कभी भी उसके मन की बात नहीं जाननी चाही शायद वो किसी और को चाहती थी इसलिए भाग गई, मधुसुदन बोला।

लेकिन बेटा अगर बारात लौट गई तो मैं क्या मुंह दिखाऊंगा दुनिया को, लोग थूकेंगे मुझ पर, सेठ धरमदास बोले।

तो दुनिया वालों के डर से आप अपनी बेटी की बलि चढ़ा देंगे, मधुसुदन गुस्से से बोला।

तभी वहां पूर्णिमा आ पहुंची और बोली, बेटा ऐसा मत कहो, हमें तुम पर पूरा भरोसा है, तुम हमारी विभावरी को कभी कोई कष्ट नहीं होने दोगे, तुम्हारे साथ वो हमेशा खुश रहेगी, मान जाओ बेटा....इस शादी से मत इनकार करो।

पूर्णिमा के कहने पर मधुसुदन मान गया।

धरमदास जी बोले, बहुत बहुत धन्यवाद बेटा.... लेकिन अब जयमाला कार्यक्रम नहीं होगा, सीधे फेरों की रस्म करा देते हैं लड़की को घूंघट ओढ़ाकर ।

मधुसुदन बोला, अब आपको जो ठीक लगे कीजिए।

बेचारी विभावरी को सुरेखा ने जल्दी से तैयार किया, पूर्णिमा अपने सारे गहने निकाल लाई बोली इन्हें पहना दो, यामिनी तो अपने सारे गहने लेकर भाग गई।

और उधर नवल की आंखें बस इधर-उधर विभावरी को ही ढूंढ रही थी, वो व्याकुल सा यहां-वहां उसे ढूंढ रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर विभावरी गई कहां?

आखिरकार जयमाला कार्यक्रम नहीं किया गया और विवाह की रस्में अपने निर्धारित समय से पहले शुरू हो गई, कुछ लोगों ने पूछना भी चाहा तो यह कहकर टाल दिया गया कि दूल्हा डाक्टर हैं उनके किसी मरीज की हालत बहुत ही गंभीर है इसलिए बारात जल्द विदा होगी।

अब विभावरी घूंघट में ढ़की-मुदी मण्डप में आई, सारे रस्में जल्दी-जल्दी निपटा कर बारात विदा कर दी गई।

पूरी शादी खत्म हो गई और इधर नवल किशोर बेचारा, विभावरी को ढूंढता ही रह गया, अब किससे पूछूं कि आखिर विभावरी है कहां? वो यही सोचता रहा।

उधर बेचारी विभावरी ने ससुराल में कदम रखे, विभावरी की द्वार छिकाई की रस्मों के बाद, सबने कहा कि मुंह दिखाई की रस्म होगी।

मधुसुदन बोला, कल की शादी की थकावट है और फिर यामिनी के शहर से आने में ही हमें चार-पांच घंटे लग गए अभी हम दोनों थक गये है थोड़ा आराम कर ले उसके बाद सारी रस्में निभाई जाएगी।

फिर मधुसुदन ने अपनी मां और बहन को एकांत में ले जाकर सारी बात बताई, मधुसुदन की मां शांति देवी बहुत ही नाराज होकर बोली, इतना बड़ा धोखा, मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी, इसे अभी इसी वक्त इस घर से निकालो और तू मुझसे बिना पूछे इसे ब्याह भी लाया, मैं दूसरों का पाप अपने सर पर ले कर घूमती रहूं।

मधुसुदन बोला, मां चुप रहो! वो सुन लेगी।

मैं किसी से डरती हूं क्या, सुनती है तो सुनती रहे, शांति देवी बोली।

मधुसुदन बोला, मां तुम घबराओ मत, परेशान ना हों , मैं कुछ करता हूं।

शांति देवी बोली, मैं क्यो घबराऊं, मैंने थोड़े ही गलत काम किया है।

फिर मधुसुदन ने अपनी भांजी श्रद्धा को आवाज दी...

श्रद्धा आकर बोली, क्या है मामा जी?

जा.. जाकर अपनी मामी से पूछ, कोई परेशानी तो नहीं, मधुसुदन बोला।

ठीक है मामा जी और इतना कहकर श्रद्धा चली गई।

मधुसुदन के पिता जी नहीं है और बहन प्रेमा भी श्रद्धा के पैदा होने के बाद विधवा हो गई थी ससुराल वाले साथ में रखने को तैयार नहीं हुए, तबसे अपने मायके में ही रहती है, श्रद्धा ने भी इस साल बारहवीं पास की है और मेडिकल कालेज में पढ़ती है वो भी अपने मामा की तरह डाक्टर बनना चाहती है।

थोड़ी देर में श्रद्धा वापस आकर बोली, मामा जी!!मामी ने तो घूंघट ही नहीं हटाया और बोली उन्हें कुछ नहीं चाहिए।

मधुसुदन बोला, ठीक है फिर अपनी बहन से बोला, दीदी तुम जरा बाहर बैठी महिलाओं से कहदो कि वो लोग आज जाए।

और प्रेमा भी चली गई।

थोड़ी देर बाद मधुसुदन, विभावरी के कमरे में पहुंचकर बोला, अब आप घूंघट उठा सकती है यहां अब कोई भी नहीं आएगा और घबराइए मत।

जैसे ही विभावरी ने घूंघट ऊपर किया, उसका भोला सा मासूम चेहरा देखकर, मधुसुदन देखता ही रह गया, सिंदूर से भरी मांग, माथे पर मागटीका, आंसुओं से भरी झुकी हुई पलकें, नाक में बड़ी सी नथ, लाल लिपस्टिक लगे कांपते होंठ, इतनी मासूम खूबसूरती उसने पहली बार देखी थी।

मधुसुदन बोला, आप ये गहने, कपड़े बदलकर कुछ आरामदायक पहन लीजिए, उस तरफ बाथरूम है, तब तक मैं आपके लिए नाश्ता भिजवाता हूं और इतना कहकर मधुसुदन चला गया।

उसने श्रद्धा से सारी बात बताई और कहा कि बेचारी डरी हुई है उसका ख्याल तुम्हें ही रखना है।

श्रद्धा बोली, ठीक है मामा जी।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, मधुसुदन ने दरवाजा खोला__

किसी ने कहा, डाक्टर साहब जल्दी चलिए बेटे की बहुत तबीयत खराब है...

मधुसुदन ने अपना बैग उठाया और जाते जाते कहता गया, मां मरीज देखने जा रहा हूं.....

शाम हो गई थी मधुसुदन नहीं लौटा, उधर श्रद्धा ने विभावरी से बहुत सारी बातें की उसका ख्याल रखा।

तभी दोनों मां-बेटी आ गई, शांति देवी बोली, ए चल अपना सामान उठा और जा मेरे घर से..

विभावरी बोली, लेकिन मैं कहां जाऊंगी..

कहीं भी जा, शांति देवी बोली।

श्रद्धा बोली, नानी ये क्या कह रही हो?

तू चुप कर, शांति देवी बोली।

और विभावरी को मां बेटी ने थोड़े से सामान के साथ घर से निकाल दिया।

श्रद्धा ने बहुत मना किया कि मामा जी घर में नहीं है, आप लोग ऐसा मत करो लेकिन दोनों नहीं मानी।

थोड़ा थोड़ा अंधेरा हो चला था, विभावरी कभी भी ऐसे अकेले बाहर नहीं निकली थी, उसने एक रिक्शे वाले को रोककर बस-स्टैण्ड का रास्ता पूछा और अपने घर की बस पकड़ने के लिए निकल पड़ी।

विभावरी बस स्टैण्ड पहुंच तो गई, अब किससे पूछें कि चंदन नगर कौन सी बस जाती है, उसने कभी अकेले सफर ही नहीं किया था, ऊपर से अंधेरा भी हो चला था।

उसे अपने ऊपर बहुत अफसोस हो रहा था कि कैसे वो अनपढ़ गंवार की तरह व्यवहार कर रही है कि उसे ये समझ नहीं आ रहा कि किस बस में जाना है और पता भी कैसे हो घरवालों ने कभी अकेले बाहर ही नहीं जाने दिया ना ही कालेज भेजा तो आत्मविश्वास कभी पैदा ही नहीं हुआ मन में।

फिर जैसे तैसे उसने हिम्मत करके एक महिला से पूछा, बहनजी चंदननगर जाना है कौन सी बस जा रही है?

उस महिला ने तो पहले विभावरी को ध्यान से देखा, एक साधारण सी जोरजट की लाल साड़ी, सर पे पल्लू ओढा हुआ, मांग में सिंदूर, माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, रोई रोई आंखें, आंसुओं से बहा हुआ काजल, गले में मंगलसूत्र और मेंहदी लगे हाथों में चार चार लाल चूड़ियां।

उस महिला ने पूछा, अभी नई नई शादी है!!

विभावरी बोली, हां बहन जी।

अब विभावरी क्या बोले कि कल ही शादी हुई है और आज ही मैं बेघर हो गई, एक रात में जिंदगी में क्या से क्या हो गया।

तो इतनी रात को अकेले कहां जा रही हो? उस महिला ने पूछा।

अब विभावरी क्या बोले? उसने झूठ बोल दिया।

सच, बुरे हालात इंसान को क्या से क्या बना देते हैं, एक ही पल में इंसान समझदार, मेहनती और साहसी बन जाता है, कहते हैं ना कि जब वो दुःख देता है तो उनसे लड़ने की हिम्मत भी दे ही देता है।

विभावरी बोली, पिता जी की तबीयत बहुत खराब है उन्हें देखने जा रही हूं।

और तुम्हारे पति, उस महिला ने पूछा।

मेरे पति किसी काम से दूसरे शहर गये है, इसलिए मुझे अकेले जाना पड़ रहा है, विभावरी बोली।

पढ़ी लिखी नहीं हो क्या? उस महिला ने पूछा।

कभी अकेले सफर नहीं किया तो पता नहीं, विभावरी बोली।

अच्छा तो ये बात है, सारी तसल्ली कर लेने के बाद उस महिला ने अपने पति से कहा, सुनो जी जरा देखना तो कौन सी बस चंदननगर जा रही है।

उसका पति उठा और पूछकर आया।

बहन जी! वो वाली बस जा रही है, आप उसी में बैठ जाइए।

इतना सुनकर डरी-डरी सी विभावरी बोली, धन्यवाद बहनजी कहते हुए जाकर बस में जा कर बैठ गई।

कंडक्टर ने पूछा कहां जाना है?

विभावरी बोली, चंदननगर।

कंडक्टर ने टिकट दे दिया और विभावरी एक बुजुर्ग के बगल में जाकर बैठ गई फिर थोड़ी देर में, विभावरी ने अपने बगल में बैठे बुजुर्ग से पूछा, चाचाजी , कितने बजे है?

आठ बजे है, बेटी।

फिर विभावरी ने पूछा, चाचा जी बस कितने बजे चंदन नगर पहुंचेगी?

बेटी! चार-पांच घंटे तो लग जाएंगे , शायद रात के एक या दो बज जाएंगे।

कुछ देर में बुजुर्ग ने अपना खाना निकाला और खाने को हुए लेकिन विभावरी को देखकर मानवतावश पूछ लिया, खाना खाओगी बेटी।

विभावरी ने मना कर दिया, नहीं चाचाजी।

बुजुर्ग बोले, मैं खाऊंगा और तुम मेरे बगल में ऐसे ही बैठी रहोगी, अच्छा नहीं लगता, लो ये दूसरा पत्तल पकड़ो।

विभावरी को संकोचवश लेना पड़ा, उन बुजुर्ग ने उस पत्तल में कुछ पूडियां, आलू मैथी की सूखी सब्जी और कुछ आचार रख दिया, बोले लो खा लो बेटी।

विभावरी भी भूखी तो थी ही उसने भी बिना ना-नुकुर के खाना खा लिया।

खाने के बाद बुजुर्ग ने थरमस से पानी निकाला, खुद भी पिया और विभावरी को भी दिया।

बुजुर्ग ने प्रेमचन्द का उपन्यास "कायाकल्प" निकाला और पढ़ने लगे।

थोड़ी देर में बुजुर्ग को नींद आ गई लेकिन विभावरी के मन में जो अन्तर्द्वन्द चल रहा था, उसके चलते उसे कहां नींद आने वाली थी।

उसने "कायाकल्प" उठाया और पढ़ने लगी।

फिर थोड़ी देर पढ़ने के बाद उसे भी नींद आ गई, बीच बीच में एकाध बार बस रूकी फिर रात के दो बजे बस चंदननगर पहुंच गई।

कंडक्टर ने सबको आवाज दी कि भाई उतरो, चंदननगर आ गया, सब यात्री उतर पड़े साथ में विभावरी भी।

विभावरी बहुत डर रही थी, रात का समय!!

उन बुजुर्ग ने कहा, बेटी चिंता मत करो, तुम मेरे तांगे में बैठ जाओ कहां जाना है बता दो, मैं छोड़ता हुआ चला जाऊंगा।

अब क्या करें, विभावरी की मजबूरी थी उसे विश्वास करना पड़ा उन बुजुर्ग पर।

और वो तांगे में बैठ गई, उन बुजुर्ग ने विभावरी को सही सलामत पहुंचा दिया, विभावरी थोड़ा पीछे ही उतर गई बोली, चाचाजी बहुत बहुत धन्यवाद, अब मैं चली जाऊंगी, पास में ही घर है।

बुजुर्ग बोले, ठीक है बेटी, हमेशा खुश रहो, इतना कहकर वे चले गए।

मासूम इंसान की मदद करने भगवान किसी ना किसी रूप में आ ही जाते हैं।

अब विभावरी आ तो गई, सोच रही थी कि क्या कहूंगी सबसे, इतनी रात गए वो भी अकेले।

विभावरी दरवाजे पर पहुंची, उसने दरवाज़ा खटखटाया और दरवाजा खोला भी तो किसने पूर्णिमा ने....

दरवाजा खोलते ही विभावरी मां से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी।

तू इतनी रात को यहां..... पूर्णिमा ने पूछा।

हां, मां उन लोगों ने निकाल दिया घर से, बोले धोखा किया है तुमने, विभावरी बोली।

और डाक्टर साहब.... पूर्णिमा ने हतप्रभ होकर पूछा।

वो घर पर नहीं थे, उस वक्त, विभावरी ने जवाब दिया।

विभावरी समान लेकर अंदर आने लगी।

तभी पूर्णिमा ने टोका___

अंदर कहां आ रही हैं?

क्यो मां, विभावरी ने पूछा!!

इतनी रात गए, ससुराल से वापस आ गई, किसी को पता चल गया तो लोग क्या कहेंगे कि रातों-रात बेटी, ससुराल से वापस आ गई, ऊपर से तेरे पापा बड़ी मुश्किल से एक सदमे से उबर पाए हैं अगर उन्हें पता चला कि तुझे ससुराल से निकाल दिया है तो वो जीते-जी मर जाएंगे और वैसे भी हमने सबको बता रखा है कि तू अपनी बुआ के साथ रहने चली गई है इसी वजह से तेरी बुआ को आज ही भेजना पड़ा, पूर्णिमा बोली।

विभावरी ये सुनकर, पूर्णिमा के चेहरे की ओर हैरानी से देखकर बोली, मां... मैं तुम्हारी बेटी हूं, तुमने मुझे जन्म दिया है,

क्या तुम्हारे घर में मेरे लिए थोड़ी सी भी जगह नहीं है?

तुमने तो कहा था कि तुम शादी कर लो, मैं सब सम्भाल लूंगी।

लेकिन अगर तुम यहां रहोगी तो सौ तरह के सवाल उठेंगे, हमलोग किसको किसको जवाब देते फिरेंगे, पूर्णिमा बोली।

लोगों के सवाल, तुम्हें अपनी बेटी से भी ज्यादा प्यारे हो गये,

वाह... मां....वाह...क्या बात कही है, इसका मतलब है कि तुम्हारे घर में भी अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है तो लो मैं यहां से भी जा रही हूं और इतना कहकर विभावरी ने समान उठाया और चल पड़ी पता नहीं कहां?

दरवाजे पर खड़ी हुई पूर्णिमा की आंखों में आंसू आ गये, वो जाती हुई विभावरी को देखकर बोली, मुझे माफ़ कर दे मेरी बच्ची।

सुनसान अंधेरी सड़क पर चलते हुए विभावरी सोच रही थी, कैसा मजाक किया है किस्मत ने मेरे साथ सिर्फ एक रात में ही जीवन भर का तजुर्बा हासिल हो गया, अब क्या करेंगी, कहां जाएगी, जब अपनों ने ही ठुकरा दिया तो ऐसे जीवन का क्या फायदा, इससे अच्छा तो मरना ही ठीक है और वो चल पड़ी रेलवे स्टेशन की ओर।

रेलवे स्टेशन पहुंच कर बहुत देर तक सोचती रही फिर पता नहीं उसे क्या सूझा, सोचते सोचते वो किसी गाड़ी में बैठ गई, अचानक गाड़ी चल पड़ी।

थोड़ी देर में टी.सी. टिकट चेक करने आया उसके पास टिकट ही नहीं था, टी.सी. बोला अगले स्टेशन आते ही उतर जाना फिर क्या था, एक छोटे से सुनसान स्टेशन पर गाड़ी रूकी और विभावरी को टी.सी. ने उतार दिया।

सुबह होने में अभी देर थी, वो स्टेशन से बाहर आई तभी दो लफंगे उसके पीछे पड़ गए, उसने अपनी चाल तेज कर दी, उन दोनों ने भी ऐसा ही किया, अब विभावरी बहुत ही डरकर तेज तेज भागने लगी, वो लोग भी उसका पीछा करने लगे, विभावरी ने अपने सूटकेस से उन लोगों के ऊपर जोर से फेंककर हमला किया और तेजी से भागी और सड़क पर आती हुई एक मोटर से टकरा गई।

मोटर से टकराते ही विभावरी बेहोश होकर गिर पड़ी,

 ड्राइवर ने अचानक से ब्रेक लगाकर मोटर रोक दी तभी मोटर में से एक जनाना आवाज आई___

  क्या हुआ रामदीन? मोटर क्यों रोक दी?

लगता है मालकिन ! कोई टकरा गया है मोटर से, रामदीन बोला।

इतना सुनकर मोटर की मालकिन फौरन मोटर से उतर पड़ी।

  और उसने विभावरी को फौरन उठाकर पूछा, ज्यादा चोट तो नहीं लगी आपको, मोटर की मालकिन ने विभावरी को सीधा किया, विभावरी का चेहरा देखकर मोटर की मालकिन बोली ये तो बच्ची है कितनी मासूम है बेचारी।

  लेकिन विभावरी उस समय बेहोश थी, उसके माथे से खून बह रहा था,

  मोटर की मालकिन ने रामदीन से कहा, रामदीन जरा थरमस से पानी तो लाओ।

ठीक है, मालकिन !! इतना कहकर रामदीन फ़ौरन थरमस में से पानी ले आया।

 मोटर की मालकिन ने विभावरी के चेहरे पर पानी के छींटें मारे, विभावरी थोड़ी हिली।

      मोटर की मालकिन बोली, बेटी ये लो थोड़ा सा पानी पी लो, विभावरी ने थोड़ा पानी पिया और फिर लेट गई उसे बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी, मोटर की मालकिन ने अपने रूमाल से विभावरी के माथे का खून पोछा और रामदीन से बोली, चलो इसे मोटर में बैठाने में मेरी मदद करो, अभी इसे अपने घर ले चलते हैं, ठीक हो जाएगी तो इसके घर भेज देंगे।

  और मोटर की मालकिन विभावरी को अपने घर ले आई, उसके माथे पर पट्टी करवाई फिर बोली बेटी अब बताओ तुम कौन हो?

    इतना सुनकर विभावरी रो पड़ी, बोली मेरा इस दुनिया में अपना कोई भी नहीं है, मैं तो अनाथ हो गई, इतना कहकर विभावरी रो पड़ी।

       कोई बात नहीं बेटी, ऐसे नहीं रोते, मन दुखी नहीं करते, थोड़ी थोड़ी बातों से यूं हताश नहीं होते , मोटर की मालकिन बोली।

      मैं मंगला देवी, मेरा छोटा सा कुटीर उद्योग हैं उसी के सिलसिले में गई थी दूसरे शहर, रास्ते में लौटते समय तुम मेरी मोटर से टकरा गई , तुम बेहोश थी तो हम लोग तुम्हें यहां ले आए।

    अच्छा अब तुम आराम करो और जब तक तुम्हारा मन चाहे तुम यहां रह सकती हो इसे अपना ही घर समझो और मैं बाज़ार खुलते ही तुम्हारे कुछ कपड़े ला देती हूं।

   विभावरी को थोड़ी तसल्ली हुई मंगला देवी की बातों से।

उधर मधुसुदन सुबह सुबह घर पहुंचा, उसे सारी बात पता चली उसका मन बहुत ही दुखी हुआ, अपनी मां के ऐसे व्यवहार से।

  मां, ये तुमने क्या किया, तुम्हें इस तरह से विभावरी को घर से नहीं निकालना चाहिए था, मधुसुदन अपनी मां से बोला।

    लेकिन क्यो? वो मेरे घर में धोखे से बहु बनकर आई थीं, मुझे ये मंजूर नहीं था उसके मां बाप ने हमें धोखा दिया और तूने भी तो बिना दान दहेज के ये शादी की थी, अब मैं कोई अच्छी सी लड़की देखकर तेरा दोबारा ब्याह करूंगी, शांति देवी बोली।

   नहीं मां, मैं दूसरा ब्याह नहीं करूंगा, विभावरी के साथ मैंने सारे समाज के सामने सात फेरे लिए है, अब वो ही मेरी पत्नी है, मैं उसे नहीं छोड़ सकता, वो जहां भी होगी मैं उसे ढूंढकर लाऊंगा, मधुसुदन बोला।

      कैसी पत्नी? समाज तो यही जानता है कि तुम्हारा ब्याह तो यामिनी के साथ हुआ, किसको किसको समझाते फिरोगे कि ब्याह वाले रोज क्या हुआ था, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, शांति देवी गुस्से से बोली।

     मधुसुदन बोला, तो ठीक है , मैं आपका घर छोड़कर जा रहा हूं, विभावरी को ढूंढकर, मैं उसके साथ ही रहूंगा और मधुसुदन उसी समय घर छोड़कर विभावरी को ढूंढने निकल पड़ा।

      उसने उसी समय चंदननगर की बस पकड़ी और पहुंच गया, सेठ धरमदास जी के घर___

   जैसे ही मधुसुदन, धरमदास जी के घर पहुंचा सब आवभगत में लग गए, जब कुछ देर तक उसे विभावरी नजर नहीं आई तो बोला, जरा विभावरी को बुलवा दीजिए, मैं उसे लेने आया हूं।

       तभी दादी बोली, विभावरी तो आपके घर ही होगी ना।

मधुसुदन बोला, तो क्या विभावरी यहां नहीं आई।

  दादी बोली, नहीं तो।

तभी पूर्णिमा रोते हुए बोली, मांजी आई थी वो यहां, कल आधी रात गये लेकिन मैंने उसे अंदर नहीं आने दिया कि बेटी को ससुराल से निकाल दिया है चार लोगों पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे।

  तभी दादी बोली पड़ी, सही कहते हैं लोग औरत ही औरत की दुश्मन होती है, तुझे जरा भी दया ना आई पूर्णिमा!! वो तेरी पेटजाई बेटी थी, कैसे तुझसे कहते बना कि इस घर में मत आ, बेचारी कहां गई होगी आधी रात को, तूने कुछ नहीं सोचा, बेचारी तुझसे आसरा मांगने आई थी और तूने उसके साथ परायों जैसा व्यवहार किया।

     क्या? आपने विभावरी को घर के अंदर नहीं आने दिया, कैसी मां है आप, आप विभावरी की सगी मां ही हैं ना? कैसे कर सकतीं हैं आप ऐसा? मधुसुदन गुस्से से बोला।

    मधुसुदन उठा और घर के बाहर निकल पड़ा, विभावरी की तलाश में, उसने सब जगह ढूंढ़ा लेकिन विभावरी कहीं नहीं मिली, पुलिस चौकी वो नहीं गया उसे डर था कि इससे सेठ धरमदास की बदनामी ना हो जाए क्योंकि पहले यामिनी का भाग जाना फिर विभावरी का ना मिलना, समस्या खड़ी हो सकती थी।

     मधुसुदन वापस अपने घर नहीं लौटा, दूसरे कस्बे में अपने एक दोस्त के साथ रहने लगा, उसने वहीं अपनी एक छोटी सी क्लिनिक खोल ली, अब धीरे धीरे मरीज भी आने लगे कुछ दिनों में वो वहां भी मशहूर डाक्टर बन गया लेकिन उसने विभावरी की तलाश जारी रखी।

    अब विभावरी भी मंगला देवी के पास ठीक से तो रह रही थी लेकिन उसका मन यही करता था कि मंगला देवी को सब सच सच बता दें, विभावरी को ऐसे उदास और अनमने देखकर मंगला देवी ने भी कई बार विभावरी से पूछना भी चाहा लेकिन विभावरी हमेशा टाल जाती।

      ऐसे ही समय बीत रहा था__

            फिर एक दिन विभावरी मंदिर गई___

उसने मंदिर में पूजा की, वापस आकर मंदिर की सीढ़ियों में बैठे भिखारियों को प्रसाद बांटने लगी, तभी एकाएक उसकी नज़र एक औरत पर पड़ी, वो अपनी फटी-पुरानी , मैली-कुचैली साड़ी से अपना सिर और चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी।

    विभावरी उसके पास प्रसाद देने पहुंची, उसने प्रसाद तो ले लिया लेकिन वो रो पड़ी__

    क्या बात है? तुम रो क्यों रही हो? विभावरी ने पूछा।

बस ऐसे ही, उसने कहा!!

   ऐसे ही बिना किसी कारण कोई भी नहीं रोता बहन!! कोई ना कोई बात तो है, विभावरी बोली।

       वो बोली, ये ही तो बात है, मैं अपने बुरे कर्मों का फल भुगत रही हूं, तुमने मुझे बहन कहा, मैं ही तो वो तुम्हारी अभागी बहन हूं!!

  क्या कहा? इतना कहकर विभावरी ने उसके चेहरे से उसका पल्लू हटाया!!

   देखा तो वो यामिनी थी, बहुत ही बीमार हालत में थी, शरीर में जैसे खून ही नहीं था, सिर्फ हड्डियों का ढांचा बचा था।

   यामिनी दीदी तुम!! ये क्या हाल बना रखा है तुमने, और क्यों किया तुमने मेरी और अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़, पता उस दिन तुम्हारे जाने के बाद मुझे मण्डप में बैठना पड़ा और शादीशुदा होने के बावजूद भी मेरी कोई पहचान नहीं है, मुझे दोनों घरों से निकाल दिया गया, विभावरी बोली।

    और दोनों बहनें आपस में खूब फूट-फूटकर रोई, विभावरी ने उस दिन वाली सारी बातें यामिनी से कह दी।

   यामिनी बोली, मैं जिसके साथ भागी थी, वो मेरे सारे गहने और रुपए लेकर भाग गया, मुझे किसी और को बेचना चाहता था लेकिन मैं वहां से किसी तरह भाग निकली, मैंने बहुत बड़ी गलती की, मां बाप कभी भी अपने बच्चों के बारे में ग़लत नहीं सोचते, काश मैं उसी से शादी कर लेती जो घरवालों ने मेरे लिए पसंद किया था।

   विभावरी बोली, कोई बात नहीं दीदी, अब जो हुआ सो हुआ।

    विभावरी, यामिनी को भी मंगला देवी के घर ले गई और आज उसने सारी सच्चाई मंगला देवी को बता दी,

    मंगला देवी बोली, कोई बात नहीं बेटी और आज से तुम दोनों ही मेरी बेटियां हो मेरे बेटे तो कभी काम नहीं आए।

  विभावरी बोली, आपके बेटे भी है।

 हां, बेटी फिर कभी फुर्सत से बताऊंगी, अभी यामिनी का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाते हैं, मंगला देवी बोली।

  विभावरी बोली, ठीक है।

मंगला देवी ने कस्बे के सबसे अच्छे डाक्टर को बुलवा भेजा।

 डाक्टर साहब को देखकर यामिनी और विभावरी दोनों बहने ही आश्चर्य में पड़ गई।

 वो डाक्टर और कोई नहीं मधुसुदन था, मधुसुदन भी एकाएक विभावरी को देखकर मन ही मन बहुत खुश हुआ लेकिन तीनों में से किसी ने भी ये जाहिर नहीं कि वे सब एक-दूसरे को जानते हैं।

मंगला देवी बोली, देखिए डाक्टर साहब, ये हैं मरीज, इनका अच्छी तरह से चेकअप करके अच्छी सी दवा दे दीजिए ताकि ये जल्दी से ठीक हो जाए।

मधुसुदन ने यामिनी को चेक किया और बोले ज्यादा कुछ नहीं है खून की कमी है, खून बढ़ाने वाली चीजें खिलाइए जैसे कि अनार, चुकंदर, आंवले , ये जल्द ही ठीक हो जाएगीं, मैं कुछ भूख लगने वाले टानिक लिख देता हूं, इन्हे मंगा लीजिए, समय पर पिलाइए ये कुछ दिनों में ही स्वस्थ हो जाएगीं, मैं एकाध दिन में बीच बीच में देख जाया करूंगा कि मरीज की हालत अब बेहतर है कि नहीं।

मंगला देवी बोली, बहुत बहुत धन्यवाद डाक्टर साहब।

इसमें धन्यवाद की क्या बात है, ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मधुसुदन बोला।

और मधुसुदन, विभावरी से बिना कुछ कहे ही वहां से चला गया, वो असमंजस में था कि कहां से कैसे बात शुरू करें क्योंकि अगर विभावरी मेरे साथ आना चाहती तो मुझे सबके सामने पहचान लेती लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

उधर विभावरी भी उलझन में थी कि डाक्टर साहब ने तो उसे पहचाना ही नहीं, उसे देखकर उनके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं आए इसका मतलब है वो मुझे अपने साथ ले ही नहीं जाना चाहते।

दोनों के ही मस्तिष्क में अन्तर्द्वन्द चला रहा था और दोनों ही अपनी अपनी जगह ठीक थे क्योंकि दोनों ने अगर दिल से काम लिया होता तो शायद ये अन्तर्द्वन्द इतना लम्बा नहीं चलता।

इसी तरह मधुसुदन एकाध दिन में यामिनी को चेक करने आ जाता लेकिन उसका असली मकसद तो बस एक झलक विभावरी को ही देखना होता था, वो उससे ना कोई बात करता और ना ही हाल चाल पूछता, मधुसुदन को लगता था अगर विभावरी के मन कुछ होता तो फौरन प्रतिक्रिया देती लेकिन वो तो कुछ कहती ही नहीं है और सही बात भी तो है वो मुझसे आठ साल छोटी है, हम दोनों की उमर में इतना बड़ा अंतर है, वो शायद मुझे पसंद नहीं करती और उसने ब्याह भी तो जबरदस्ती से किया था, वो मुझे पसंद नहीं करती उसमें उसका क्या दोष है।

फिर एक दिन यामिनी ने विभावरी से कहा ___

विभावरी!! डाक्टर साहब तुझे पसंद करते हैं, ये उनकी आंखों में साफ़ दिखाई देता है।

लेकिन दीदी तुम ही बताओ अगर पसंद करते होते तो एक बार तो कहते कि विभावरी घर चलो, लेकिन उन्होंने तो मुझे पहचाना ही नहीं, पता नहीं उनके मन में क्या है? विभावरी बोली।

लेकिन विभावरी शायद वो भी इसी असमंजस में हो कि वे तुमसे क्या कहें, तू चाहे जो भी कहें लेकिन उनकी आंखों में तेरे लिए सच्चा प्रेम दिखता है, यामिनी बोली।

अब यामिनी धीरे धीरे ठीक होने लगी थी लेकिन जो गलती वो कर चुकी थी उसके लिए वो खुद को बहुत बड़ा अपराधी मान रही थी कि उस लड़के के लिए उसने अपने परिवार वालों को धोखा दिया जो उसका कभी था ही नहीं, जब देखो कुछ ना कुछ सोचती रहती।

फिर एक दिन मंगला देवी के घर के दरवाजे पर कोई महिला रोते हुए बोली, मांजी दरवाजा खोलिए, बहुत जरूरी काम है, मुझे माफ़ कर दीजिए, बहुत बड़ा अपराध किया है हमने।

एक नौकरानी ने दरवाजा खोला।

वो महिला अंदर आई, उसने नौकरानी से पूछा कि मांजी कहां हैं।

अभी बुलाती हूं, नौकरानी इतना कहकर मंगला देवी को बुलाने चली गई।

महिला की आवाज सुनकर यामिनी और विभावरी भी बाहर आ गई।

मंगला देवी अपने कमरे से बाहर आकर बोली, कहो क्या बात है?

मांजी, उनकी बहुत तबीयत खराब है, घर में एक भी पैसे नहीं हैं उनका इलाज़ कराने के लिए, बच्चों की फीस भी तीन महीने से नहीं भरी थी तो स्कूल वालों ने नाम काट दिया, एक एक पैसे के लिए मोहताज है हमलोग, बहुत ही खराब हालात हैं घर के, वो महिला एक ही सांस में कितना कुछ कह गई।

मंगला देवी ने बहुत ही रूखाई से जवाब दिया, अब क्यों आई हो मेरे पास? कहां गया वो रूतबा, वो घमंड और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर में कदम रखने की।

ऐसा मत कहिए मां जी बहुत आस लेकर आई हूं आपके पास कि आप मेरी मदद नहीं करेगी, तो मेरे बच्चे भूखे मर जाएंगे और अगर उनका इलाज नहीं हुआ तो बहुत ही खराब हालत हो जाएगी उनकी, वो महिला बोली।

ठीक है मैं शर्मा जी से कहती हूं वो ऑफिस से समय निकाल बैंक से पैसे निकाल कर दे आएंगे और आइंदा इधर मत आना तुम्हें जब भी पैसों की जरूरत हो तो ऑफिस ही चली जाया करो, शर्मा जी के पास, बहुत बेइज्जती की थी ना तुम लोगों ने उनकी, अब जाओ और उनके सामने ही अपनी झोली फैलाकर भीख मांगो।

इतना सुनकर वो महिला बोली ठीक है मांजी और उसने मंगला देवी के पैर छूने चाहे लेकिन मंगला देवी पीछे हट गई, महिला अपना सा मुंह लेकर चली गई।

विभावरी और यामिनी वहीं खड़े खड़े सब देखती रही लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि ये सब क्या हो रहा है और ये महिला कौन थी? मंगला देवी तो इतनी भली है फिर उन्होंने उस महिला के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया।

मंगला देवी, रुआंसी सी अपने कमरे में चली गई, दोपहर के खाने का समय हो चुका था लेकिन वो बाहर नहीं निकलीं।

नौकरानी , विभावरी और यामिनी के कमरे जाकर बोली दीदी खाना लग गया है आप लोग खा लीजिए।

विभावरी बोली, ठीक है हम आते हैं और दोनों खाने के टेबल पर पहुंची, वहां जाकर देखा तो मंगला देवी नहीं थी।

विभावरी बोली, लेकिन ताई जी कहां है उन्हें भी बुला लो ।

उन्होंने ने कहा कि आज भूख नहीं है और खाने से मना कर दिया, नौकरानी बोली।

कैसे भूख नहीं है, हम अभी बुलाकर लाते हैं , इतना कहकर विभावरी और यामिनी ने मंगला देवी के कमरे के पास जाकर दरवाजे पर दस्तक दी,

विभावरी बोली, ताई जी क्या हम अंदर आ सकते हैं?

मंगला देवी बोली, हां आ जाओ।

विभावरी और यामिनी दोनों पहुंची तो देखा मंगला देवी के हाथों में एक तस्वीर है और उनकी आंखें भी रोई रोई सी है।

विभावरी पूछा, ताई जी ये क्या ताऊ जी की तस्वीर है?

मंगला देवी बोली, हां बेटी।

तो आप रो क्यो रही है और वो आज कौन आई थीं, विभावरी ने पूछा।

वो मेरी बड़ी बहु थी, मंगला देवी बोली।

क्या कहा, ताई जी आपका भी परिवार है, विभावरी ने पूछा।

हां बेटी, मेरा भी पहले कभी एक हंसता खेलता परिवार था, मंगला देवी बोली।

लेकिन फिर ऐसे, विभावरी ने पूछा।

मंगला देवी ने बोलना शुरू किया___

तुम्हारे ताऊ जी बहुत बड़े बिजनेसमैन थे, बहुत ही कम उम्र में हम दोनों का विवाह हो गया था, मैं चौदह साल की थी और वे सोलह साल के साथ, बहुत ही प्यार करते थे वो मुझसे, फिर हमारे दो बेटे हुए, बेटी भी चाहते थे लेकिन मेरा स्वास्थ्य उन दिनों ठीक नहीं रहता था एक तो कम उम्र में शादी और ऊपर से जल्दी जल्दी दो बच्चे तो लेडी डॉक्टर बोली अब और बच्चे नहीं!!नहीं तो आपकी जान को खतरा हो सकता है, फिर हम दोनों पति-पत्नी अपने बच्चों को पालने में व्यस्त हो गये, बच्चों को ठीक से पढ़ाया लिखाया लेकिन वो पढ़ ना सके।

फिर तुम्हारे ताऊ जी बोले रहने दो, अपने पास पैसे की क्या कमी है, अभी नादान है, एक बार ब्याह हो जाएगा तो अपनी जिम्मेदारियां समझने लगेंगे फिर हमने कुछ भी कहना बंद कर दिया बच्चों से।

फिर रिश्ते आने लगे दोनों के लिए क्योंकि दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था और फिर हमने दोनों का ब्याह कर दिया, ब्याह होते ही दोनों बंटवारे की जिद करने लगे, हमने बंटवारा भी कर दिया दोनों में घर , जमीन और फैक्ट्रियां बांट दीं।

फिर कुछ दिनों बाद तुम्हारे ताऊ जी का एक्सीडेंट हो गया और वे नहीं रहें और उनके बाद मेरी जो दुर्दशा हुई तुम लोगों को नहीं मालूम, मैं भूखी पड़ी रहती थी लेकिन दोनों बहुएं खाने के लिए नहीं पूछती थी और जो भी मेरे नाम था इन लोगों ने धोखे से मुझसे हस्ताक्षर करवाकर हड़प लिया।

और फिर एक दिन मानवता की हद पार कर दी, मुझे आधी रात को घर से निकाल दिया, मैं रात भर भूखी प्यासी मंदिर में पड़ी रही फिर सुबह के समय एक शर्मा जी ने मुझे रोते देख कारण पूछा कि बहन क्या हुआ?

मैंने अपनी सारी कहानी उन्हें कह सुनाई, उनके साथ भी यही हुआ था लेकिन वो सरकारी नौकरी में थे तो उन्हें पेंशन मिल रही थी और वे बेटों से अलग किराये के घर में रह रहे थे, वो मुझे अपने घर ले गये।

मैं उनके घर में रहने लगी, वो मेरे हाथ का खाना खाकर कहते__

वाह..बहन जी आपके हाथ का खाना खाकर मन और पेट दोनों भर गये, जब से सुशीला मुझे छोड़कर गई है तब से अब ऐसा खाना खाया है।

आप ऐसा क्यों नहीं करती, अगल-बगल के अचार और पापड़ के आर्डर ले लीजिए, मैं आपको काम दिलवाता हूं इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और फालतू की बातें भी मन नहीं आएगी।

मैंने उनके कहने पर काम शुरू कर दिया, मेरा बिजनेस भी बढ़ने लगा और हाथ में कुछ पैसे भी आने लगे फिर मैंने सहयोग के लिए दो तीन महिलाएं भी रख ली, ऐसे ऐसे कर के मैंने मंगला देवी कुटीर उद्योग खोल लिया और हजारों महिलाओं को वहां रोजगार भी मिल गया।

फिर एक दिन मेरे दोनों बेटे और बहुएं आए, मुझ पर और शर्मा जी पर लांछन लगाने लगे कि इस उम्र में ये सब शोभा नहीं देता, अय्याशी करने का अच्छा बहाना और ये बुड्ढा ....

मां समाज में हमें क्यो बदनाम करने पर तुली हो, दोनों बेटे और बहुओं ने क्या कुछ नहीं कहा मुझे और शर्मा जी को__

शर्मा जी से नहीं रहा गया और वे बोले तुम लोगों को शरम नहीं आती ऐसी देवी पर इल्जाम लगाते हुए और किस समाज की बात कर रहे हो, कहां गया था समाज उस दिन जिस दिन तुम लोगों ने बहनजी को घर से निकाला था, मैंने बहन बना के अपने घर में रख लिया तो कौन सा अपराध कर दिया और निकल जाओ यहां से__

इतना सुनकर सब चले गए फिर शर्मा जी के कहने पर मैंने ये बंगला खरीद लिया, वे अपने उसी घर में रहते हैं, बस हम आफिस में मिलते हैं, वो ही ऑफिस के सारे काम देखते हैं।

विभावरी और यामिनी ये सुनकर दंग रह गई कि बेटे कैसे अपनी मां के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं, तभी विभावरी बोली, इसलिए तो भगवान उन्हें उनके किए की सजा दे रहे हैं।

मंगला देवी बोली, हां उनकी अय्याशियों ने ही उन्हें बर्बाद कर दिया।

मधुसुदन, अब एक -दो दिन में यामिनी का चेकअप करने आ ही जाता, यामिनी तो बस बहाना थी, वो तो बस विभावरी को एक नजर देखने आता था, ऐसा नहीं है कि विभावरी भी मधुसुदन के आने का इंतजार नहीं करती थीं, उसे भी लगता था कि मधुसुदन सिर्फ एक बार ये कह दे कि चलो घर लौट चलो क्योंकि उस घर से मैं अपनी मर्जी से नहीं आई थी मुझे तो वहां से निकाला गया था।

     मधुसुदन ये खुशखबरी बताने श्रद्धा के पास उसके कालेज पहुचा__

 सच! मामाजी, मामी मिल गई, क्या मैं उनसे मिल सकती हूं, श्रद्धा ने पूछा।

हां... हां...क्यों नहीं, मधुसुदन बोला।

  श्रद्धा बोली, ठीक है मैं आज ही घर में नानी और मां से कह दूंगी की मैं कुछ दिनों के लिए आपके पास आ रही हूं।

ठीक है तो शाम वाली बस से हम निकल चलेंगे, तुम तैयार रहना, मधुसुदन बोला।

  ठीक है मामा जी, श्रद्धा बोली।

और शाम को श्रद्धा ने सबकुछ घर में बता दिया और तैयार होकर बस स्टैंड आ गई, दोनों निकल पड़े ।

   श्रद्धा दूसरे ही दिन विभावरी से मिलने पहुंच गई, मामी..मामी करते हुए गले से लग गई, विभावरी भी श्रद्धा को देखकर खुश हुई और पर ये चक्कर मंगला देवी को समझ नहीं आया तब मजबूरीवश यामिनी को सब कुछ बताना पड़ा कि डाक्टर साहब विभावरी के पति हैं फिर विभावरी ने शुरू से सारी बातें मंगला देवी से बताई, विभावरी बोली।

    मैं उस घर से खुद भाग गई थी अपनी शादी के ही दिन उसके साथ जिससे मैं प्यार करती थीं इसलिए वापस घर ना जा सकी और विभावरी को मेरी जगह डाक्टर साहब के साथ फेरे लेने पड़े फिर उसे ससुराल से निकाल दिया गया, हमारी खुद की जन्म देने वाली मां ने भी विभावरी को घर के अंदर नहीं आने दिया उसे दोनों घरों में ही सहारा नहीं मिला इसलिए वो घर नहीं जाना चाहती।

   मंगला देवी बोली, अच्छा तो ये बात है ऐसा करो श्रद्धा को कुछ दिनों के लिए यही हमारे पास रहने दो, आखिर अब वो हमारी मेहमान हुई।

    दोनों बहनें भी अब खुश थी, मधुसुदन को भी लगा अगर श्रद्धा को विभावरी के पास रहने दिया तो शायद श्रद्धा विभावरी को मना ले और वो वापस लौट आए।

     अब मंगला देवी, डाक्टर साहब से एक घर के सदस्य जैसा व्यवहार करने लगी, उसने डाक्टर साहब से बात की कि अगर आप विभावरी से एक बार आपके साथ घर चलने को कहें तो शायद वो तैयार हो जाए और फिर उसके साथ हुआ भी तो बहुत ही बुरा था, एक ही रात में बेचारी की जिंदगी ने कैसी करवट ले ली।

     डाक्टर साहब बोले, वो तो मैं कह दूं , अपने साथ चलने के लिए लेकिन मुझे ये नहीं पता कि वो मुझसे प्रेम करती है और शादी भी जिन हालातों में हुई थी, वो हालात विभावरी के प्रतिकूल थे, जब तक विभावरी की आंखों में मेरे लिए प्रेम दिखाई नहीं देगा, मैं उसे साथ चलने के लिए नहीं कह सकता।

     मंगला देवी बोली, आप का कहना भी बिल्कुल ठीक है और विभावरी के यहां रहने से भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, मेरा घर तो भर गया, दो दो बेटियां दे दी भगवान ने और आप जैसा दामाद और क्या चाहिए?

   और दोनों मुस्करा उठे।

    तभी मधुसुदन बोला, प्रेमा जीजी की चिट्ठी आई है उन्होंने श्रद्धा को बुलवा भेजा है, उसे लेने आया हूं अब कभी फिर से आप सबसे मिलवाने ले आऊंगा लेकिन अभी उसका जाना जरूरी है।

    मंगला देवी बोली, हां.. हां ले जाइए और जब भी उसका मन करें यहां आ सकती है, हमें भी उसके आने से अच्छा लगा।

    मधुसुदन, श्रद्धा को साथ लेकर चला गया।

         फिर एक दिन एक चिट्ठी आई मंगला देवी के पास आई कि उनके दोनो भतीजे उनके पास रहने के लिए आ रहे हैं।

    मंगला देवी दोनों बहनों से बोली कि मेरी शादी के बाद जब तक मां बाप जिंदा थे तो कभी कभार मायके हो आती थी लेकिन मां-बाप के गुजर जाने के बाद तो भाई भाभी भूल ही गए कि उनकी कोई बहन भी है फिर जब से मैं बेटों से अलग हो गई तो उन्होंने तो जैसे मुझसे रिश्ता ही तोड लिया, कहने लगे ऐसा कोई करता है भला , बेटे चाहे जैसे भी हो लेकिन मां को कभी भी उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए, कहने लगे अपना सबकुछ देदो और उन लोगों के पास लौट जाओ, मैंने कहा इन लोगों ने मुझे छोड़ा था मैंने नहीं, मैंने उन लोगों की बात नहीं मानी तो उन्होंने मुझसे बात करना ही बंद कर दिया भाई भाभी ने तो जैसे रिश्ता तोड़ दिया लेकिन मेरे भतीजे जो कि अभी भी मुझसे पहले जैसा ही प्यार करते हैं, अपने मां बाप से बिना बताए वो मुझसे मिलने आ जाते हैं, उन लोगों के यहां आने पर मुझे भी अच्छा लगता है, ऐसा लगता है कि चलो कोई तो अभी भी अपना है, पता है जब तक तुम लोग मेरी जिंदगी में नहीं आईं थीं तो मुझे अपने भतीजों और शर्मा जी का ही सहारा था, अपने खून ने तो मुह मोड़ लिया था लेकिन इन लोगों ने मुझे कभी नहीं छोड़ा।

     खैर, एक-दो दिन में वो लोग पहुंच ही जाएंगे तब तुम लोग मिल लेना।

      दरवाजे पर लगी घंटी बज उठी___

मंगला देवी ने ही दरवाजा खोला, दरवाजा खोलते ही दोनों भतीजे ने मंगला देवी के पैर छुए और गले लग गए।

      मंगला देवी ने दोनों भतीजों को गले लगाते ही विभावरी और यामिनी को आवाज दी____

     विभावरी...... यामिनी.....विभावरी.... यामिनी...देखो तो कौन आया है?

    दोनों बहनें अपने कमरे से निकल कर बाहर आई, तभी विभावरी ने पूछा, क्या हुआ ताई जी?

   मंगला देवी बोली, देखो तो दोनों आ गए , बताया था ना मैंने, ये हैं मेरे दोनों भतीजे__राहुल और नवलकिशोर..

      अब चारों एक-दूसरे के आमने-सामने थे, एक-दूसरे से परिचित होते हुए भी, किसी ने यह नहीं जताया कि वे आपस में पहले से ही परिचित हैं।

      सबके मन में एक अजीब सा ही अन्तर्द्वन्द चल रहा था कि आखिर किससे क्या बात करें, जैसे-तैसे सबने साथ में खाना तो खा लिया लेकिन बातें नहीं की।

      उधर विभावरी ने यामिनी से कहा___

दीदी, राहुल भइया और नवल ने हम लोगों को यहां देख लिया है ऐसा ना हो ये लोग वहां जाकर सबसे कह दे कि हम लोग यहां है।

         यामिनी बोली, हां यही तो मैं भी सोच रही हूं कि अगर मेरे बारे में ये पता चल कि मैं यहां हूं और मैं जिसके साथ भागी थी वो धोखा देकर भाग गया है ‌तो......

    विभावरी बोली, दीदी ऐसा कुछ मत सोचो, बहुत दिनों बाद तो अब तुम्हारी सेहत में सुधार आया है, मैं उन लोगों से कैसे भी करके बात करूंगी और विनती कर लूंगी कि किसी से भी तुम्हारे बारे में कुछ ना कहें।

     उधर दोनों भाई भी बड़ी उलझन में थे, राहुल ने नवल से कहा

     बात कुछ पल्ले नहीं पड़ रही है अगर उस दिन यामिनी का ब्याह हुआ था तो यामिनी की मांग तो सूनी है लेकिन सिंदूर विभावरी की मांग में कैसे और दोनों बहनें बुआ के घर में क्या कर रही है?

    हां, भइया यहीं बात तो मैं भी समझने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे भी कुछ समझ नहीं आया, मैंने आंटी जी से पूछा भी था, बारात के विदा होने के बाद कि विभावरी कहां है? तो उन्होंने कहा कि सुरेखा बुआ के साथ भेज दिया है लेकिन वो तो यहां है, नवलकिशोर ने कहा।

    दोनों भाइयों को मंगला देवी के घर में रहते हुए दो-तीन बीत चुके थे फिर भी अभी तक दोनों की विभावरी और यामिनी से कोई बातें नहीं हुई थी।

      फिर एक रोज दोनों भाई मंगला देवी के साथ उनके कुटीर उद्योग गए, वहां राहुल को मौका मिल गया सारी बात पूछने का,

  बुआ, ये बताओ ये दोनों लड़कियां कौन हैं जो आपके घर में रहतीं हैं, जब हमलोग पिछली बार आए थे तब तो ये दोनों यहां नहीं थी।

 तब मंगला देवी ने बताया कि ब्याह वाले रोज क्या हुआ था दोनों बहनों के साथ__

    बड़ी बहन यामिनी, अपने प्रेमी के साथ घर छोड़ कर भाग गई उसकी जगह विभावरी को बैठा दिया गया, बेचारी विभावरी को दोनों ही घरों में जगह ना मिली, अपने मायके से लौटते हुए मेरी मोटर से जा टकराई तब इसे मैं घर ले आई और कुछ दिनों बाद यामिनी बीमारी की हालत में मंदिर में विभावरी को मिल गई तब से दोनों मेरे घर में हैं।

     राहुल बोला, अच्छा तो ये बात है।

अब राहुल और नवल के मन से सारी शंकाएं दूर हो चुकी थीं।

     नवल ने मंगला से कहा कि तब तो विभावरी का ये रिश्ता तो ना के बराबर है और फिर भी मांग में सिंदूर......

   मंगला बोली, तुम नहीं समझोगे, पुरुष हो ना, हम स्त्रियों का मन तुम लोग कभी नहीं बांच सकते, हमारे जैसा उदार और बड़ा दिल नहीं होता तुम पुरूषों के पास क्योंकि उस पर अहम की परत चढ़ी होती है अगर वो परत हट जाएगी तो शायद तुम लोगों का पुरूषत्व कम हो जाएगा।

    हम भारतीय स्त्रियां एक बार जिसके साथ अग्नि के सात फेरे ले ले लेती है उसे सातों जनम के लिए अपना बना लेती है फिर चाहे वो मां बाप की पसंद हो या अपनी खुद की पसंद।

       तभी राहुल बोला लेकिन विभावरी का पति उसने कैसे उसे घर से बाहर निकाल दिया।

   मंगला देवी बोली, वो उस वक्त घर पर मौजूद नहीं था किसी मरीज को देखने गया था।

      राहुल बोला, और यामिनी का अब क्या होगा?

मंगला देवी बोली, रामजाने क्या होगा?

     दोनों भाई अब मंगला देवी के साथ घर पहुंचे__

शाम की चाय का समय था, मधुसुदन भी यामिनी के चेकअप के बहाने मंगला देवी के घर आया, उसने यामिनी का चेकअप किया और बोला अब आप बिल्कुल ठीक है बस समय पर ठीक से खाते पीते रहे।

    तभी मंगला देवी बोली, आइए डाक्टर साहब चाय पी लीजिए,

मधुसुदन ने चाय पी और बोला विभावरी कहां है? दिखी नहीं आज, हां और अब तो मैंने घर भी अलग ले लिया और गृहस्थी का सामान भी जुटा लिया है।

    तभी मंगला देवी बोली, होगी यही कहीं , तो देर किस बात की है? आप विभावरी से पूछ क्यों नहीं लेते साथ चलने के लिए।

   मधुसुदन बोला, हां पूछता हूं, लगता है मुझे ही पहल करनी पड़ेगी।

हां, वो एक लड़की है, अभी भी उसमें लाज और शील बाक़ी है वो अपने मुंह से कैसे कह सकती है कि उसे आपके साथ चलना है।

   मधुसुदन बोला, आप भी ये ठीक कह रही है लेकिन अभी दो दिन के लिए मुझे किसी काम से बाहर जाना है तो मैं दो दिन के बाद आता हूं, तब विभावरी के लिए लाल साड़ी, लाल चूड़ियां, सिंदूर और मंगलसूत्र हाथों में देकर कहूंगा, अपने साथ चलने के लिए, मुझे पक्का यकीन है तब वो मेरे साथ जरूर चलेगी।

    तभी मंगला देवी बोली, अरे हां मैं आपको अपने भतीजों से मिलवाना तो भूल ही गई, तभी मंगला देवी ने दोनों को आवाज दी और दोनों से डाक्टर साहब का परिचय हुआ लेकिन दोनों ही डाक्टर साहब को देखकर हैरत में पड़ गये कि ये तो वहीं है जो दूल्हा बनकर उस रोज यामिनी से ब्याह करने आए थे, उन दोनों ने तो उसे पहचान लिया लेकिन मधुसुदन तो उन्हें नहीं पहचानता था।

     डाक्टर साहब के जाने के बाद, मंगला देवी बोली ये ही है विभावरी के दूल्हे!!

    तभी नवल बोल पड़ा तो ये विभावरी को साथ क्यों नहीं ले जाते या कि उसे ना पहचानने का नाटक कर रहे हैं।

 मंगला देवी बोली, ऐसी बात नहीं है, वो खुद उलझन में हैं क्योंकि विभावरी भी कोई उत्सुकता नहीं दिखा रही हैं उनके साथ जाने के लिए तो उनकी हिम्मत ही नहीं हो रही है कुछ भी कहने की।

   नवल बोला, अच्छा तो ये बात है!!

तभी नवल ने सोचा, आखिर विभावरी के मन में क्या है? ये पता लगाना होगा, कहीं वो अभी भी मुझे तो पसंद नहीं करती लेकिन अब उसे समझना होगा कि वो अब डाक्टर साहब की ब्याहता हैं मेरे और उसके बीच जो आकर्षण था अगर वो उसे प्यार समझ रही है तो महज वो एक कच्ची उम्र का आकर्षण था जो कि इस उम्र में हो जाया करता है और फिर मुश्किल से पच्चीस दिन का प्यार उसे प्यार नहीं कह सकते, जहां हमने ना कोई इजहार किया, ना जीने मरने की कसमें खाई, ना ही कोई वादा किया एक-दूसरे से तो ये कोई प्यार नहीं उस उम्र की नादान सी गलतियां हैं जो अक्सर उस उम्र में हो जाया करती है और इसे प्यार समझकर लोग बहुत बड़ी बड़ी भूल कर बैठते हैं जिसका खामियाजा परिवार के सदस्यों को भुगतना पड़ता है जो कि यामिनी ने किया और भुगत रही है विभावरी।

     लेकिन अब जो गया उसे बदल नहीं सकते लेकिन सुधार जरूर सकते हैं इसलिए विभावरी को डाक्टर साहब के साथ जाना चाहिए।

   ऐसे ही राहुल भी यामिनी से कुछ बात करना चाहता था लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था।

    शाम के समय यामिनी बगीचे में टहल रही थी, उसने हल्की गुलाबी रंग की सिफोन की साड़ी पहन रखी थी और बालों को खुला छोड़ रखा था, हवा से उसके बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे, सुंदर तो वो पहले से थी लेकिन आज और भी सुंदर लग रही थी,

      तभी राहुल ने आकर पूछा, क्या मैं तुम्हारे साथ टहल सकता हूं।

 यामिनी बोली, हां मुझे कोई परेशानी नहीं है।

लेकिन मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी, राहुल बोला।

हां कहो, यामिनी बोली।

   राहुल ने बोलना शुरू किया, पता है यामिनी, मैंने दीपक से दोस्ती पता है किसलिए की थीं,

 हां! किसलिए की थीं, यामिनी ने पूछा।

तुम्हारे लिए, राहुल ने जवाब दिया,

यामिनी राहुल का चेहरा देखकर रह गई!!

हां, यामिनी तुम्हारे लिए लेकिन तुम ये मत समझना कि मैं तुम्हारा फायदा उठाने की कोशिश कर रहा हूं, मैं तुम्हें बहुत पहले से ही बहुत चाहता था लेकिन तुमने कभी मुझे नजर भरकर देखा ही नहीं, मैं तुमसे हमेशा बात करनी चाही लेकिन तुम , तुमने कभी मेरी तरफ गौर ही नहीं किया फिर तुम्हारी शादी तय हो गई तब मैंने तुम्हारी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया, मैं तुम्हें भूलने का मन बना चुका था लेकिन चाहकर भी कभी भूल नहीं पाया, मैं तुमसे पहले भी प्यार करता था अब करता हूं और हमेशा करता रहूंगा।

     और राहुल ने बगीचे से फौरन एक गुलाब का फूल तोड़ा और घुटनों के बल जमीन में बैठकर पूछा कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी।

   यामिनी की आंखें छलछला आई और उसने गुलाब लेकर कहा हां....

 और ये सब यामिनी को बगीचे में ढूंढती हुई विभावरी ने भी देख लिया और वो भी बहुत खुश हुई और दोनों बहनें गले मिली और ये बात मंगला देवी और नवल तक भी पहुंच गई।

  नवल बोला, वाह... भइया ...वाह.... तुम तो छुपे रुस्तम निकले और सब हंसने लगे।

तभी मंगला देवी बोली तो तुम सब एक-दूसरे को आपस में जानते हो।

और सब आज बहुत खुश थे लेकिन अभी भी नवलकिशोर के मस्तिष्क में बहुत बड़ी उलझन थी वो थी विभावरी के लिए कि विभावरी मन से डाक्टर साहब को स्वीकार करके अपनी गृहस्थी बसा ले।

  इसी तरह दो दिन और निकल गये, डाक्टर साहब आज बहुत खुश थे उन्होंने श्रद्धा को भी बुला लिया था, दोनों ने मिलकर विभावरी के लिए लाल साड़ी, लाल चूड़ियां, सिंदूर और मंगलसूत्र खरीदा, मधुसुदन बोला, चल श्रद्धा तेरी मामी की विदा करा कर लाते हैं।

   मैं तो कबसे तैयार हूं मामाजी, श्रद्धा बोली,

और दोनों निकल पड़े मंगला देवी के बंगले की ओर विभावरी को विदा कराने।

    मधुसुदन हाथों में सारा सामान लेकर विभावरी को ढूंढने लगा, तभी मंगला देवी बोली, आप जिसे ढूंढ रहे हैं वो तो शायद बगीचे में टहल रही है।

     डाक्टर साहब जैसे ही बगीचे में पहुंचे उधर नवल किशोर, विभावरी से कह रहा था कि माना कि हम एक-दूसरे को तुम्हारी शादी से पहले पसंद करते थे, डाक्टर साहब ने इतना सुना तो उनके हाथों से सारा सामान छूट कर नीचे गिर पड़ा, जिसकी आवाज़ से नवल और विभावरी उस ओर आए, सारा सामान उठाकर विभावरी बोली लगता है हमारी बातें किसी ने सुन ली है और जैसे ही भाग कर आए उन्होंने डाक्टर साहब को पीछे से जाते हुए देखा।

    मंगला देवी ने मधुसुदन को आवाज भी दी___

डाक्टर साहब.... डाक्टर साहब.... सुनिए, लेकिन मधुसुदन बिना कुछ कहे वहां से चला गया।

     दोनों ने मंगला देवी से सारी बात बताई, उधर यामिनी और श्रद्धा भी आवाज सुनकर कमरे से बाहर निकल आए__

  अब सबकुछ साफ हो चुका था कि डाक्टर साहब ने सिर्फ इतना ही सुना था कि विभावरी की शादी के पहले नवल और विभावरी एक दूसरे को पसंद करते थे और उन्हें गलतफहमी हो गई थी कि इसलिए विभावरी उन्हें पसंद नहीं करती और उनके साथ नहीं आना चाहती।

      तभी मंगला देवी बोली, ड्राइवरों से कहो कि दोनों मोटर निकाले ताकि हम जल्द से जल्द डाक्टर साहब के पास पहुंच जाए हमें उनकी गलतफहमी कैसे भी करके दूर करनी होगी।

     सब डाक्टर साहब के घर पहुंचे लेकिन डाक्टर साहब वहां नहीं मिले, श्रद्धा बोली, मुझे पता है कि मामा जी कहां हो सकते हैं?

  मंगला देवी ने पूछा, कि कहां?

श्रद्धा बोली, मंदिर में,

सब मंदिर पहुंचे, देखा तो मधुसुदन रोनी सी सूरत बनाकर तालाब की सीढ़ियों में तालाब के पानी में पैर लटका कर बैठा था।

     विभावरी ने फ़ौरन जाकर मधुसुदन के पैर छू लिए___

मधुसुदन ने देखा और बोला, यहां क्या कर रही हो?

आपको ढूंढते ढूंढते आ पहुंची, आपके पास, विभावरी बोली।

लेकिन क्यों? मधुसुदन ने विभावरी की ओर बिना देखे तालाब में एक पत्थर फेंकते हुए पूछा।

   क्योंकि आपने मुझसे ब्याह जो किया है, विभावरी मुस्कुराते हुए बोली।

  मधुसुदन बोला, लेकिन वो जो तुम्हारे और नवल के बीच जो बातें हो रही थी,

    तभी मंगला देवी बोली, डाक्टर साहब आप सिर्फ आधी बात सुन कर ही वहां से चले आए, वो तो शादी से सिर्फ पच्चीस दिन पहले की बातें हैं, ना उसमें कोई इजहार, ना कोई किस्में वादें, वो तो बस नई उम्र का एक आकर्षण था जो सभी को ना चाहते हुए भी हो ही जाता है और फिर ऐसा कुछ होता तो नवल किशोर जिस दिन मेरे घर में पहली बार विभावरी से मिला था तभी विभावरी, नवल से सब कह सकती थी लेकिन उसके मन में तब तक कुछ बचा ही नहीं था, वो तो सिर्फ आपको ही अपना मानने लगी थीं, मैंने देखी है डाक्टर साहब उसकी आंखों में आपके लिए प्यार और इज्ज़त इसलिए उसे अब ज्यादा इंतजार ना करवाइए और मेरे घर चलिए हम बेटी वहीं से विदा करेंगे।

     विभावरी को मधुसुदन के लाए गए उपहार से सजाकर लाया गया, तब मंगला देवी ने कहा ये रहा सिंदूर और मंगलसूत्र___

   मधुसुदन ने विभावरी की मांग में सिंदूर भरकर गले में मंगलसूत्र डाला, विभावरी ने डाक्टर साहब के पैर छुए, डाक्टर साहब बोले_बस ..बस...

    और मंगला देवी बोली आज श्रद्धा हमारे घर रहेगी और ड्राइवर मोटर से दोनों लोगों को छोड़ आएगा।

    अब इधर नवल और श्रद्धा के बीच बातें होने लगी।

राहुल ने सारी बातें दीपक को बता दी और कहा कि वो यामिनी को अपनाने के लिए तैयार हैं, दीपक ने भी घरवालों को राहुल और यामिनी के ब्याह के लिए मना लिया और दोनों का ब्याह भी मंदिर में हो गया ‌।

     यामिनी और विभावरी ने मंगला देवी से कहा कि वो अपने बेटों के पास ना रहे लेकिन उन्हें माफ कर दे और मंगला देवी ने अपने बेटों को माफ कर दिया।

     इधर नवल और श्रद्धा भी एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे।

 

     



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