सिसकता चाँद
सिसकता चाँद
"माँ मुझे चाँद चाहिए ! " बच्चे ने ऊपर आसमान की ओर इशारा करते हुए कहा।
"चाँद ! चाँद तो बहुत दूर है। कैसे लाऊँ? "
"नहीं मुझे चाहिए।"
बालक बार बार जिद करने लगा, "मुझे चाँद चाहिए .....मुझे चाहिए।"
बालक की जिद्द देखते हुए माँ ने उसे अपनी गोद से उतारते हुए कहा, "अच्छा ठीक है अभी लाती हूँ चाँद।"
माँ एक बड़े परात में पानी भर कर ले आई और जमीन पर रख दिया। उसमे चाँद का प्रतिबिंब दिखा कर बेटे से कहा, "ये देखो चाँद ।"
बालक देखते ही खुश हो गया और लपक कर चाँद को पकड़ना चाहा किंतु पानी में हाथ डालते ही चाँद की परछाई बिखर गई। यह देखते ही बच्चा रोने लगा। तत्क्षण उसने ऊपर आसमान की ओर ध्यान से देखते हुए, कहा, "माँ वो चाँद चाहिए। " माँ से फिर बार बार जिद्द करने लगा ।
माँ बच्चे को गोद में उठाते हुए मन ही मन बुदबुदाई 'मैं समझ रही हूँ मेरे बच्चें कि तुझे वो स्थिर चाँद चाहिए। पर मैं तुझे कैसे समझाऊँ , कि आज संसार में स्वयं इंसान द्वारा निर्मित विषाद के कारण धरती पर फैली लाशों की ढेरी से इस प्रतिच्छाया चाँद से भी अधिक वह चाँद हिला हुआ है।'