सिंगार

सिंगार

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तुम ढलती शाम बनो

मैं नीला आसमान बन जाऊंँ

तुम छिपता नारंगी सूरज बनो

मैं ध्रुव बन उस पर इठलाऊँ।।

तुम हरी हरी घास बनो

मैं पीली सरसों सा लहराऊँ

तुम नदी की कल कल धार बनो

मैं बन लहर तुम्हारी इठलाऊँ।।

तुम महका महका चंदन बनो

मैं लाल सिंदूर बन जाऊंँ

तुम बनो धानी चुनर

मैं गोटा बन उसमें इठलाऊंँ।।

तुम बनो मातृभूमि

मैं देशभक्ति बन जाऊंँ

तुम बनो तिरंगा प्यारा

मैं शहीद बन उसमें इठलाऊँ।।


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