सीता भाग 1
सीता भाग 1
मेरी कहानी कुछ अजनबी सी , कुछ जानी पहचानी सी है । मैं — सीता , छः भाई बहनों में पाँचवें नम्बर की । स्कूल में मेरा भी दाख़िला हुआ था । तीसरी कक्षा तक मैं स्कूल जाती रही, जब तक मेरे पिता ज़िंदा थे । एक दिन बिना किसी बीमारी अचानक पिताजी का देहान्त हो गया । बहुत रोना आया था , ख़ासकर के मुझे और मेरे छोटे भाई चँदर को । मेरा स्कूल जाना बंद करा दिया गया । पिता जी गाँव के मन्दिर में पुजारी थे । उनके जाने के बाद गुज़ारे के लाले पड़ गये । सबसे बड़े भाई रामचंद्र की शादी हो गयी थी । बिजली विभाग में क्लर्क हैं , पर घर आना जाना ही नहीं है उनका शादी के दो साल बाद से ।भाभी बड़े घर से आयी थी , बहुत सारा दहेज लेकर , उनको न हमारा गाँव का घर पसंद था न घर वाले । पिता जी की तेहरवीं के बाद बड़े भाई कभी नहीं आए । दूसरे भाई भानू ने पालीटेक्निक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो की, पर नौकरी न मिलने से मानसिक रूप से बीमार हो गए, डिप्रेशन का शिकार ! जब नौकरी मिली, तब भी ऑफिस बहुत कम जाते ! तनख्वाह नाम/ मात्र की मिलती ! किसी महीने दो दिन की किसी महीने चार दिन की ! तीसरे नंबर की बहन बबीता की शादी हो गई ! चौथे नंबर का भाई सुरेश कक्षा बारह तक ही पढ़ाई किया, बाबू जी के बाद वही मंदिर का काम देख रहा है, पर पूजा पाठ में उसका मन कम ही लगता ! मतलब घर मे पैसों की आमाद बंद ही थी !ऐसे हालात में, मैं अपनी सहेलियों की शादी होती देखती रही एक के बाद एक ससुराल चली गई और मैं रह गयी गाँव के बच्चों की इकलौती बड़ी उम्र की कुंवारी बुआ ! मेरे भी अरमान हैं शादी के !!
विशाल मेरी ज़िन्दगी में धीरे से दाखिल हो गया , पता नहीं कब ? न उसका पान मसाला खाना मुझे अखरा न दूसरी जाति का होना ।पहली बार जब उसने बोला “ कितनी ख़ूबसूरत हो तुम” मैं उसी दिन उसकी हो गयी थी । हाँ ! ख़ूबसूरत तो मैं यकीनन हूँ , पर वक़्त के थपेड़ों ने एक ग़म की चादर ओढ़ा उस ख़ूबसूरती को छुपा लिया था । मेरा आत्मविश्वास इतना कम हो गया था कि मुझे विशाल दुनिया का सबसे बड़ा झूठा लगा । पर उस दिन घर आकर शीशे में खुद को ध्यान से देखा था , जाने कितने सालों बाद ।बड़ी बड़ी आँखें वैसी ही हलके काले घेरों के साथ ख़ूबसूरत लग रहीं थी , रंग तो मैंने माँ से पाया एकदम गोरा , हाँ गाल अब वैसे नहीं रहे फिर भी मैं अच्छी लग रही थी । मैंने अपने भूरे बालों को सुलझाया , एक छोटी सी लाल बिन्दी अपने चोड़े माथे पर लगा ली , थोड़ा सा मुस्कुराई तो मेरे ऊपर वाले सामने के दाँत एक चमक बिखरा गये थे मेरे चेहरे पर । “ ख़ूबसूरत ” ! मैं खुद पर मोहित हो गयी थी । विशाल ने सच बोला था मैं हूँ ख़ूबसूरत । बस मेरा क़द छोटा है , चार फुट दस इंच । अब जब तब मैं सामान लेने ददाहु जाने के बहाने ढूँढने लगी । ददाहु तो बताया ही नहीं आप लोगों को मैं हूँ ही थोड़ी पगली सी , पिता जी भी यही कहते थे । ददाहु हमारे गाँव से लगभग डेड़ से दो किलोमीटर दूर छोटा सा कसबा है , हम लोग सारी ख़रीददारी वहीं से करते हैं ।विशाल ददाहु में एक होटेल में काम करता है । क्या काम करता है विशाल ,यह मुझे बहुत बाद में पता चला । अभी तो मैं ददाहु जा रही हूँ , एक झोले में अपनी सलवार डाले हुए , दर्ज़ी से ठीक करवानी है ना । यही बहाना बना कर आयी हूँ माँ से । सलवार मैं कोई कमी नहीं है , आप समझ गए ना ? मैं ददाहु की गलियों में घुस चुकी हूँ । विशाल का होटेल आने वाला है और मेरी धड़कन बढ़ गयी है , आप ने सुनी ना ? कितनी तेज धड़क रहा है दिल । चोर नज़र से होटेल से थोड़ा पहले बनी पान की गुमटी की तरफ़ देखती हूँ , विशाल सिगरेट पी रहा है , हाँ वही नीली जींस में , चारखाने की शर्ट पहने हुए ।क्या ? अच्छा नहीं दिखता , ठीक तो है ,सपनों का राजकुमार तो नहीं कह सकते पर औसत क़द का , नैन नक़्श भी ठीक हैं । “ भाई राजू , वो गाना लगाओ वो हाय हाय तेरी बिंदिया रे । विशाल ने मेरी बिन्दी देख ली , तभी तो पनवाड़ी राजू से गाना लगाने के लिए बोला उसने , इसीलिए बोला ना ? आपको भी यही लगता है ना । मेरी हालत तो ख़राब हो गयी , पसीना आ गया , पर विशाल को बहुत मज़ा आ रहा है , बदतमीज़ । मैं भी कहाँ इसके चक्कर में पड़ गयी , यह तो छिछोरा है , सड़क छाप चलिए क्या लेना , अब अकेले इस तरफ़ कभी नहीं आऊँगी । मैं दर्ज़ी की दुकान पर नहीं जाऊँगी , जा रहीं हूँ घर वापिस । सुनिए ! कौन , यह तो विशाल है । आप का नाम ? यह नाम क्यों पूछ रहा है । आप को क्या काम है मुझसे मैं दूसरी तरफ़ देख रही हूँ । “ काम तो कुछ नहीं ” देखा आपने घबरा गया छिछोरा , आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो । मैंने उसकी आँखों में देखा सीधे , यह तो सच बोल रहा है । मैंने दिखावे के लिए पूछ लिया “ तो मैं क्या करूँ ” ? आप जानते हो मुझे बहुत ज़्यादा अच्छा लगा ।
” चाय पीती हो आप या काफ़ी ” ? , एक कप पीते हैं साथ में ।
“मैं अनजान लोगों के साथ कुछ भी नहीं खाती / पीती । ” मेरी नज़रें झुक गयी ।
साथ बैठेंगे तो अनजान नहीं रहेंगे ना । एक दिलकश मुस्कुराहट है उसके चेहरे पर ।
ठीक है । यह कैसे कह दिया मैंने ??