शुक्रिया महर्षि सर
शुक्रिया महर्षि सर
किसी भी तरह के आगाज के लिए आपको किसी न किसी तरह का जरिया चाहिए।
और किसी आगाज को किसी विकल्प कि जरूरत नहीं होती है।
जाहिर सी बात है कि आपको कुछ सहारा चाहिए होता है।
मैंने 10 कक्षा में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।
लेकिन मेरे पास किसी भी तरह का कोई भी प्लेटफॉर्म नहीं था।
मुझे पता ही नहीं था कि आगे क्या करना है।
2 साल तक मैं सिर्फ अपने आपको ठगा महसूस कर रहा था क्योंकि किसी को कहा तो जवाब मिला ,
"अभी बन जाएगा राइटर बेवकूफ कहीं का।"
तो मैंने खुद को समझना बन्द कर दिया।
तभी मेरी मुलाकात एक शख्सियत से हुई जो किसी काम से एक दुकान पर अपनी कविता को ई-मेल कर रहे थे।
मैंने उनसे कुछ बात की तो
उन्होंने कहा कि - " तेरे बोलने के लहजे से लग रहा है कि तू एक टूटा हुआ इंसान है।"
और तुझे किसी हेल्प कि जरूरत है।"
तो मैंने कहा - "सर मैं एक राइटर बनना चाहता हूं और मेरे पास कोई प्लेटफॉर्म नहीं है।"
तो उन्होंने कहा - "तेरी एक कविता मेरे पास भेज मैं देखूंगा।"
मैनें उनके पास व्हाट्सएप पर भेजी।
उन्होंने देखकर जवाब दिया - बहुत आगे जाएगा तू।
और उस शख्सियत का नाम है " विनोद महर्षि अप्रिय"