शिवजी ने दिया समाधान
शिवजी ने दिया समाधान
एक तपस्वी था। जो कई सालो से मौन व्रत लिए हुए था।
उसकी तपस्या से खुश हो कर शिवजी उसके स्वप्न में आए। शिवजी ने कहा, वरदान मांग बेटा।
तपस्वी बहुत ही आश्चर्यचकित हो गया। वो कुछ बोल ही नहीं पाया। थोड़ी क्षणों में उसे ज्ञात हुआ की वे स्वयं भगवान है।महादेव है। सब कुछ जानते है।
उसने शिवजी को नमन किए और कहा हे प्रभु में पहले बहुत बोलता था। बहुत ही अनाप शनाप बकवास करने के कारण मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। लेकिन आत्मग्लानि से मैंने मौन व्रत स्वीकार किया। मुझे बस इतना जान ना है की जो हम मनुष्यों के साथ निरंतर होता है प्रेम, उद्वेग, तनाव, गुस्सा, ईर्ष्या, लगाव ये भावना ऐ आती क्यों है और क्या ये सब पहले से निर्धारित होता है।
भगवान शंकर उसके मन की उलझन जानते थे। उन्होंने कहा बेटा, में शिव हूं और मैं ही सब कुछ हूं फिर भी मैं सबसे परे हूं।
में परमात्मा हूं ।कर्म के बंधन से मुक्त हूँ। हर
एक मनुष्य कर्म से बंधा हुआ है।
जो मेरी भक्ति करता है मैं उसे समाधान का रास्ता बताता हूं। मैं सब स्थाई भाव से देखता रहता हूं। लेकिन किसी भी प्रपंच में पड़ता नहीं। क्योंकि में कार्य से परे हूं।
जिस घटना ओ से तुम चिंतित हो उसका समाधान ध्यान और एकाग्रता है। एकाग्र चित से बिना किसी भावना से जुड़े तुम देखो क्या हो रहा है। तुम स्वयं ही समझ पाओगे कि ये सिर्फ एक ऊपर कि क्रियाये है जो मानसिक शारीरिक क्षमताओं से हो रही है। तुम्हें क्षमता सही दिशा में लगानी है फिर तुम इनसे कभी भी विचलित या चिंतित नहीं होगे।
ध्यान और एकाग्र चित और बिना किसी भाव से जुड़ कर देखो बेटा तुम सही दिशा की तरफ चलो बेटा।
अचानक तपस्वी की नींद खुल गई और उसे लगा समस्या के हल मिल गए हो।
उसने अपनी पत्नी से सालों के बाद बात की। दोनों फिर से खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।