तुलसी की दादी
तुलसी की दादी
एक सदी पहेले की बात है।
बरगद बनने की ख़्वाहिश लिए एक बीज जमीन में धंसा जा रहा था।
उसे नहीं पता था वह एक वटवृक्ष है, जो सदी कि रौनक बनने वाला है।
उसी काल दरमियान एक नन्हीं परी ने जन्म लिया। उसकी माता तो उसे जन्म देते ही देवलोक प्राप्त कर चली गई।
उसके पिता ने उसे तुलसी नाम दिया। तुलसी का विवाह बल्या अवस्था में करीब १३ वर्ष की आयु में हो गया।
उसका सांसारिक जीवन अच्छे से चल रहा था लेकिन सालों बीत गए उसे बच्चे नहीं हो रहे थे। यह बात लोगो को ऐसे खूछ रहीं थी जैसे पाँव में कांटा घुस गया हो।
तुलसी की सास को कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन सास की सहेलियां और रिश्तेदारों ने उसके कान में अनाप शनाप बातें करना चालू कर दिया था।
उसकी सास काफी अनुभवी और समझदार होने से तुलसी को कोई शिकायत उसने की नहीं।
शादी के १५ साल बाद जब वह ३० वर्ष की हुई उसे एक लड़की हुई तीन साल बाद एक बेटा हुआ ऐसे उसे २ लड़की और लड़के हुए थे।
तुलसी काफी काबिल मां और बहू थी। उसके पति भी काफी अच्छे थे। जीवन गुजर रहा था कि एक पंडितजी घर पर आनेवाले थे।
तुलसी ने पूरी थाली बनाकर पंडितजी को जीमने के लिए आग्रह किया।
वह पंडित चतुर था लेकिन तुलसी के पति पूनम से जलता था। उसने कहा पूनमाराम तेरी घरवाली को रोटी सेकना नहीं आता।
बोलने में तो बहुत काबिल है भाई। पुनामराम के वैवाहिक जीवन पर जैसे ग्रहण लग गया।
तुलसी को पति के मन की बात पता नहीं चली। लेकिन वह बहुत सुलझी हुई थी।
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उसने सासु माँ को बातों बातों में पूछ लिया कि माजी उनको मेरी कोई बात का बुरा लगा है।
रात को पेट भर खाना भी नहीं खा रहे है।
माजी ने कहा बेटी चिंता नहीं करो।
उसका दिल बड़ा है वह उलझन को सुलझा लेगा।
१३ दिन के बाद तुलसी के लिए पुनमजी कंगन और झुमका लेकर आए।
फिर प्यार से कहा तुलसी पंडित की बातें गलत थी।
कल जब तू मेरे पाँव दबा रहीं थी तब मालूम पड़ा। इतने कोमल हृदय और हाथ किसी को भी जलन होगी कि पति पत्नी खुशी से जीवन बीता रहे है।
आग लगाने की कोशिश उस पंडित ने कि उसके कर्म उसको मुबारक।
मेरे कर्म मुझे। फिर दोनों प्यार से सो गए।
ऐसे हीं चढ़ाव उतार के साथ तुलसी और पूनम की जीवन गाड़ी चल रही थी कि अचानक तुलसी की दादी चल बसी।
तुलसी उसकी दादी से बहुत करीब थी।
उसकी दादी रत्ना ने अंतिम सांस लेते वक़्त तुलसी को कहा बेटी तू उस बरगद के वृक्ष की तरह शताब्दी से ज्यादा जिएगी।
अब ये जीवन तेरी अमानत है।
ख़ुशियाँ फैलाना और खुश रहना।
तुलसी ने तब ठानी की कभी पीछे नहीं मुड़ना।
आज वह १०७ वर्ष की है और पोते नाती ओके साथ खुशी से जीवन पसार कर रही है।
रोज अपनी दादी रत्ना को याद करके जीवन में उमंग भर के सब को खुश देखने के लिए खुद खुश रहती हैं।
वह बरगद का वृक्ष तुलसी से एक साल बड़ा है और उसकी तरह सबको छाया दे रहा है।
तुलसी आज भी कहती है कि मेरी दादी माँ जादूगर है जो मुझे हमेशा खुश देखना चाहती है। आकाश से मुस्कुरा रही है।