आंखो की चमक
आंखो की चमक
नगद देख कर वो देखते ही रह गया।
जिज्ञा को चिकित्सालय से छुट्टी मिल गई।
बात असल में सरल थी कि जीज्ञा की बीमारी बीमा कंपनी की योजना की सूची में शामिल नहीं थी। जिज्ञा को मानसिक बीमारी थी और उसको कभी भी दोहरा पड सकता था।
उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, वह एक फ्रीलांस उद्घोषिका के तौर पर कार्यरत थी।
उसके चाचा चाची के साथ ही वह रहती थी।
डॉक्टर को जैसे ही उसकी फिस मिली उसने जिज्ञा को दवाइयां देकर आश्वासन दिया कि चिंता की बात नहीं।
कुछ लोग इशारों में समझते है, कुछ बातों से और जो बातों से भी नहीं समझते वह समझते है लातों से। लेकिन अपनी जिज्ञा लोगों की आंखों से ही समझ जाती थी कि बंदा या बंदी कितना पानी है।
गोल मटोल जलेबी की तरह बात क्यों करे
दो साल पहले की बात है, जिज्ञा का करीबी दोस्त शेखर का एक रोड अकस्मात में निधन हो गया यह खबर जिज्ञा ने टीवी कि खबरों में सुनी
और उसको सदमा लगा बस तब से उसका मानसिक संतुलन हिल सा गया।
शेखर उसको अक्सर कहता था जिज्ञा तुम सब को भाप लेती हो, कौन कितना अच्छा और कौन बुरा। और जिज्ञा तुरन्त बोलती शेखर आपके आंखों कि चमक से में हिल सी जाती हूं। शेखर तब एक ही वाक्य बोलता था कभी बताऊंगा मेरी आंखों की चमक का राज।
शेखर के अकस्मात की घटना के बाद जिज्ञा जिसे भी करीबी मानती उसमें शेखर की आंखों की चमक ढूंढती पर वह बात किसी की भी आंखों में उसको नहीं दिखाई देती।
एक शाम को गीत सुनते सुनते जिज्ञा को नींद आ गई और वह नींद में कुछ बड़बड़ा रही थी और अचानक से शेखर...चिल्ला के उठी।
क्या हुआ जिज्ञा उसकी चाची ने पूछा, जिज्ञा बोली शेखर शेखर का सपना देखा। चाची ने पूछा क्या देखा बेटा, उसने कहा उसकी आंखों की चमक का राज मेरा चेहरा और मेरी मुस्कान थी बस इतना कह कर वह ओझल हो गया।
चाची ने जिज्ञा को सहला कर कहा बेटा इस दुनिया में शेखर जैसा दोस्त शायद तुम्हें फिर से ना मिले लेकिन इतना जरूर याद रखना कि शेखर की आंखें तुम्हें ढूंढती थी अगर ऐसी चमक कहीं और अगर तुम ढूंढ पाई तो उसका हाथ थाम लेना।