Dr. Shikha Maheshwari

Abstract Inspirational Children

4.8  

Dr. Shikha Maheshwari

Abstract Inspirational Children

शिक्षा

शिक्षा

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“हाय फ्रेंड्स कैसे हो सब ? हम रोज स्कूल आते थे तभी अच्छा लगता था। अब ये ऐसे पढाई मुझे तो अच्छी नहीं लग रही है।” “एक तरह से ठीक भी है कि गर्मी, धूप, बारिश से बच रहे हैं। ट्रैफिक से बच रहे हैं। रोज-रोज पचास रुपए लेट फीस के पैसे भी बच रहे हैं। कितनी बार ड्राइवर को बोला था बस टाइम पर लाया करे। लेकिन कभी टाइम पर आता नहीं था और रोज लेट फीस के पचास रुपए भरने पड़ते थे। डायरी में रिमार्क मिलता था वो अलग।” “पर फिर भी यार तब संडे की छुट्टी, फेस्टिवल की छुट्टी और तो और ज्यादा बारिश हो जाने पर ‘रेनी डे’ की छुट्टी भी मिलती थी। पर अब तो कुछ अच्छा नहीं लगता है।” “पर दूसरी बात अच्छी यह हुई है कि पहले मोबाइल, लैपटॉप ज्यादा चलाने पर मम्मी-पापा से डांट सुननी पड़ती थी। अब तो पूरा दिन ऑनलाइन रहो कोई नहीं डांटता है।” “हाँ यार ये तो सुपर कूल हुआ है।”

“रिया तुम्हारा कांफ्रेंस कॉल ख़त्म हुआ या नहीं ?” “हे गाइज बाय मॉम इज कालिंग।” “हाँ मॉम इट्स ओवर नाउ। वी वर डीस्कसिंग अबाउट साइन्स फोर्थ चैप्टर।” “अच्छा है कि तुम सब इतनी मेहनत कर रहे हो। इस बार बोर्ड के एग्जाम में तुम्हें टॉप करना है। पिछले साल ९८ प्रतिशत आये थे। इस बार १०० प्रतिशत आने चाहिए।” “श्योर मॉम, दिस टाइम आई विल रॉक।”

आज की एक्सक्लूसिव खबर, केरला में एक लड़की के पास ऑनलाइन पढाई करने की सुविधाएँ नहीं थी इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। सब डाइनिंग टेबल पर बैठकर डिनर कर रहे हैं। रिया के पापा टीवी बंद करते हुए कहते हैं कि, “देख लो रिया, तुम्हें सारी सुविधाएँ मिल रहीं हैं। अच्छे से पढाई करना।” “आज ही इसने १०० प्रतिशत लाने का प्रॉमिस किया है।” रिया की मम्मी ने कहा। “दैट्स लाइक माय डॉटर।” रिया के पापा ने रिया के सिर पर हाथ रखते हुए कहा।

“हैलो मिस्टर रघुवंशी आपको ये काम अर्जंट करने के लिए कहा गया था। अभी तक काम पूरा हो कर ईमेल क्यों नहीं भेजा ? कब रिपोर्ट बनेगी ?” “जी सर अभी भेजता हूँ। सॉरी फॉर डिले।” “आपको याद है ना! ये दो महीने में दूसरी गलती है, तीसरी गलती पर आपको फायर कर दिया जायेगा।” “सर तीसरी गलती नहीं होगी सर, आई प्रॉमिस सर, सॉरी वंस अगेन सर।” “मच बेटर।” “क्या हुआ इतने परेशान क्यों हो ?”-पत्नी ने कहा। “कुछ नहीं बस एक छोटा-सा काम भूल गया था तो बॉस ने माँ-बहन एक कर दी। एक तो २० घंटे काम करो उसमें भी सैलरी आधी मिल रही है। नोटिस भी दे दिया कि निकाल देगा।” “डोंट वरी वी विल हैंडल।” “हाउ वी विल हैंडल यार ? रिया की स्कूल फीस भी भरनी है।” “हम अपनी एफ.डी. तोड़ देंगे। डोंट वरी हम कुछ न कुछ मैनेज जरुर कर लेंगे।”

“हे भगवान! सुबह-सुबह ये व्हाट्सअप इतना क्यों बज रहा है ?” रिया की मम्मी ने मुँह बनाते हुए कहा। व्हाट्सअप ऑन करके देखा कि किसके इतने लगातार मैसेजस आ रहे हैं। ये तो रिया के स्कूल का पेरेंट्स व्हाट्सअप ग्रुप मैसेज है। सुबह-सुबह २५०-३०० मैसेजस। सब पेरेंट्स भड़क रहे हैं। स्कूल वाले लगातार फीस के लिए मैसेज भेज रहे हैं। कल सब पेरेंट्स को स्कूल बुलाया है। बुक्स, ड्रेस, शूज, सॉक्स, सैनीटाईजर, मास्क, ग्लव्स, बैग, नोटबुक्स लेने के लिए। सब तो पढाई ऑनलाइन हो रही है। घर में मौजूद डायरिज में बच्चे थोडा-बहुत कुछ लिख रहे हैं। सब तो ऑनलाइन हो रहा है। पीडीएफ के हम प्रिंटआउट घर में ही निकाल कर दे रहे हैं। स्कूल ड्रेस का क्या करना है। लगता है कल जाना ही पड़ेगा। तभी इन सवालों के जवाब मिलेंगे।

हे भगवान! ये क्या है ? इतनी बारिश में तीन किलोमीटर लंबी लाइन। कब नंबर आयेगा ? रिया की मम्मी ने रिया के पापा से कहा। “हाय मिसेज रायबहादुर। हाय हाउ आर यू ?” “आई एम ओके। व्हाट अबाउट यू ?” “सेम हियर। ये स्कूल वालों ने परेशान कर के रख दिया है।” “आप कब से खड़ी है। एक घंटा हो गया है। लगता है और दो-तीन घंटे ऐसे ही खड़े रहना पड़ेगा।” “हाँ, इतनी लंबी लाइन देखकर तो यही लगता है। सुना है शोभित के पापा की नौकरी चली गई।” “हाँ, चली तो गई। उसकी मम्मी भी वर्किंग नहीं है।” “तो स्कूल वालों से अगर अपनी परेशानी कहें तो सुनेंगे। होपफुली मान जाये तो अच्छी बात है वरना तो आप हाल देख ही रही हैं।” “हर साल समय से फीस दी है। इस बार कुछ तो कन्सेशन होना चाहिए।” “मानना तो सभी पेरेंट्स का यही है। सरकार ने भी कहा है।” “हुह सरकार का कहा मानते तो बात ही क्या होती।” “हाँ ये भी आप सही ही कह रही है। अरे वो देखो मिसेज लोखंडे जा रही हैं।” रिया की मम्मी ने आवाज लगे। मिसेज लोखंडे इधर आइए। “आपका नंबर जल्दी आ गया।” “कहाँ जल्दी ? सुबह ६ बजे से लाइन में लगी थी। तब जाकर अब काम हुआ है।” “आर यू सीरियस ?” “जी हाँ, कुछ लोग तो ५ बजे से लाइन में खड़े थे।” “कुछ बताया अंदर कि क्या होगा ?” बैग में से सामान निकालते हुए मिसेज लोखंडे ने दिखाया, “ये देखोय स्कूल बैग २००० रूपए का, जबकि बच्चे घर में ही पढ़ रहे हैं। ये स्कूल ड्रेस जिसमें २ शर्ट, २ पैंट, १ ब्लेजर, १ टाई, १ बेल्ट, शूज, २ सॉक्स, १ सैनीटाईजर, २ मास्क हैं। इसके ५००० रूपए लिए हैं। बोलते हैं ऑनलाइन क्लास में स्कूल ड्रेस पहन के बैठना है। १००० रूपए महिना ऑनलाइन क्लासेस का अलग से जोड़ दिया है। ये देखिये फी रिसिप्ट। लाइब्रेरी फीस, मेंटिनेंस फीस, इवेंट फीस, बस फीस, फेस्टिवल फीस, कम्प्यूटर फीस, क्राफ्ट फीस, डांस फीस, म्यूजिक फीस, स्पोर्ट्स फीस।” “लेकिन मिसेज लोखंडे ये सब तो एक्टिविटीज हो ही नहीं रही है। और जहाँ तक इन सब की बात है इन सब एक्स्ट्रा क्युरिक्युलर टीचर्स को तो निकाल दिया गया है कि ऑनलाइन ये सब क्लासेस नहीं होंगे।” “ऑनलाइन क्लास में टीचर्स सिर्फ रीडिंग ही तो कर रहे हैं। एक दिन मेरे बेटे ने मैथ्स का सवाल वापस समझाने को कह दिया तो मैथ्स टीचर ने उसे ऑनलाइन क्लास से निकाल दिया। मेरे छोटे सारांश के लिए तो ये लोग पीपीटी बनाकर भेज रहे हैं। पहले मैं उस पीपीटी को देखती हूँ फिर बेटे को पढ़ाती हूँ। जबकि फोर्थ स्टैण्डर्ड तक सरकार ने नो स्टडी का रुल भेजा है।” “मिसेज लोखंडे मेरी बेटी रिया के तो चश्मा लगने की नौबत आ गई है। कहाँ हम कहते थे लैपटॉप, मोबाइल का ज्यादा यूज मत करो। कहाँ अब पूरा दिन बैठना पड़ता है।” “हाँ सारांश का भी यही हाल है। उसका भी सिर और कान दर्द करने लगे हैं। मास्क और सैनीटाईजर की क्या जरुरत थी पर ? ये देखिये मास्क पर स्कूल का नाम छपा हुआ है और ये मिला है ७०० रूपए का। ये कॉपी किताब इनके दस हजार लिए हैं।” “हम मिडिल क्लास लोग चाहते हैं बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़े-लिखे कुछ बने। पर लगता है कि बच्चे तो क्या कुछ बनेंगे हमारा दिवालिया ये स्कूल वाले जरुर निकला कर रहेंगे।” “ये सैनीटाईजर की बोतल हर १५ दिन में आकर यहाँ से खरीदनी है।” “पर बच्चे तो घर पर पढ़ रहे हैं। घर का सैनीटाईजर लगेगा। यहाँ क्यों आये खरीदने ?” “हर १५ दिन में इनकी वजह से यहाँ सैनीटाईजर के लिए लाइन लगाओ। सरकार कह रही है घर में बैठो। पर ऐसे तो रोज-रोज बुलायेंगें नई-नई बात के लिए इससे तो रोज महामारी फैलेगी। हर स्कूल के यही चोंचले हैं।” “वो आपको बीच में स्कूल पड़ा होगा उसका भी यही हाल है।” “हे भगवान! कहाँ से इतने खर्चे उठा पायेंगे। मुझे तो लगता है बच्चों का स्कूल से नाम कटवाना पड़ेगा। अगले साल पढ़ा लेंगे। इस बार घर में पढ़ लेगी रिया।” “हमने भी सारांश के लिए यही सोचा था। पर स्कूल वालों ने कहा जब सारांश का एडमिशन हुआ था तब ५० हजार डोनेशन लगा था जो कि कह रहे हैं रिफंडेबल रहेगा अगर वो दसवीं तक यहीं पढ़ता है तो। और अभी उसका एक साल के लिए नाम कटवा देंगे तो ५० हजार वापस नहीं मिलेगा और अगले साल सवा लाख डोनेशन भरना पड़ेगा। यही सोच के हम चुप रह गए।” “सवा लाख ? कहाँ से लायेंगे इतना पैसा ? हम तो १०० रूपए महिना में पढ़ लिए। यहाँ तो १०० रूपए की गिनती ही नहीं है कहीं भी।” “क्लासेस, ट्यूशन वाले भी ऐसे ही कर रहे हैं। उन्होंने भी फीस बढ़ा दी ऑनलाइन क्लास के नाम पर। अच्छा मैं चलती हूँ।” “हाँ बाय मिसेज लोखंडे।”

“मैडम फीस में कोई रियायत दे दीजिये।” रिया की मम्मी ने प्रिंसिपल से कहा। “सॉरी वी कांट। अगर आप फीस नहीं भर सकते हो तो नाम कटवा लो। प्राइवेट फॉर्म भर लेना टेंथ का। आज हम आपके लिए फीस में रियायत देंगे कल सारे पेरेंट्स खड़े हो जायेंगे। हमें नुकसान हो जायेगा। सॉरी वी कांट अफ्फोर्ड।” “हम बाद में फीस दे देंगे।” “तो ऑनलाइन क्लास भी बाद में ज्वाइन करना।” रिया की मम्मी निराशा भरे चेहरे और आँसू भरी आँखों से प्रिंसिपल ऑफिस से बाहर आ जाती है। पूरे रास्ते मोबाइल में बैंक एकाउंट्स चेक करती रही कि कैसे रिया की पढाई का साल भर खर्चा उठाएंगे। जिस हिसाब से स्कूल वाले खर्चे पर खर्चे दे रहे हैं। तीन महिना बस एकाउंट्स के पैसे चल पाएंगे। उसमें भी रिया के पापा की हाफ सैलरी मेरी भी हाफ सैलरी, ई.एम.आई, कैसे होगा सब। “घर आ गया। चिंता मत करो दोनों मिलकर कुछ कर लेंगे। रिया का साल बर्बाद नहीं होने देंगे।” हस्बैंड ने कहा।

डोर बेल बजती है। रिया दरवाजा खोलती है। “ये लो बेटा तुम्हारा स्टडी मटेरियल।” मम्मी ने कहा। “वाओ दैट्स ग्रेट। लव यू मॉम डैड।”

मम्मी कमरे में प्रवेश करती है, “ये लो बेटा दूध पी लो। सुबह से ऑनलाइन पढाई कर रही हो। थोड़ी देर बंद कर दो लैपटॉप।” “नो मॉम, बहुत होमवर्क दिया है। ये देखो इतने सवाल सोल्व करने हैं।” “ठीक है बेटा।”

“तुम्हें नहीं लगता स्टडी का लोड ज्यादा ही है।” “हाँ पर क्या करे ?” “तीन महीने से दिन-रात पढाई-पढाई, असाइनमेंट्स, लैपटॉप, मोबाइल, इंटरनेट। दिन-ब-दिन रिया डिप्रेसिव लग रही है।” “क्या करें बाहर तो जा नहीं सकते। जब सब स्टार्ट हो जायेगा तब चलेंगे दो-तीन दिन को घूमने।” “हाँ सही कह रहे हो।”

“रिया सो जाओ रात के १२ बज रहे हैं।” “हाँ डैड बस थोड़ी देर और। आप लोग सो जाइए। गुड नाईट डैड।” “गुड नाईट बेटा।”

“आज रिया ज्यादा देर तक सो रही है।” मम्मी ने नाश्ता बनाते हुए कहा। “सोने दो कल देर रात तक पढ़ रही थी और वैसे भी आज संडे है।”-डैड ने व्हास्टअप चलते हुए कहा। “हाँ सही कह रहे हो। सुनो १०० प्रतिशत नहीं लाएगी चलेगा। ६०-७० प्रतिशत ही ले आये वो भी चलेगा।” “हम्म सही कहा, उठ जाए फिर बात करेंगे।” “अब उठा देती हूँ ११ बज रहे हैं।” “अच्छा ठीक है उठा दो।” “रिया रिया बेटा दरवाजा खोलो।” “रिया दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है ?” दरवाजे को डुप्लीकेट चाभी से खोला जाता है। रिया पंखे से लटक रही है। मम्मी-पापा की चीख निकल पड़ती है। कमरे में किताबें फैली पड़ी है, लैपटॉप खुला पड़ा है। मोबाइल बंद पड़ा है। टेबल पर सुसाइड नोट रखा हुआ है। “डियर मॉम डैड मैंने बहुत ट्राय किया ऑनलाइन पढाई अच्छे से करने का। पर सच में ७० प्रतिशत चीजें समझ ही नहीं आ रही थी और इस तरह से मैं कभी बोर्ड में १०० प्रतिशत नहीं ला पाऊँगी। आई एम सॉरी। बाय। मॉम डैड की मुंह से जोरदार चीख निकली। “रिया ऐसा क्यों किया बेटा ?”


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