शिकारी
शिकारी
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जो हथियार कभी बेहद ताक़तवर हुआ करते थे,तलवार,भाले, खंजर और बिचवें वे सब तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है।आज की तारीख़ में वह सब म्यूजियम में पाये जानेे लगे है।आदिमानव जंगलों में घूम घूम कर अपने पत्थरों के हथियारों से शिकार करता रहता था।लेकिन अब तो वह आदिमानव नहीं रहा वह तो अब आदमी बन गया है।लेकिन वह शिकार करना नहीं भूला है।अब भी वह शिकार करता है लेकिन उसने अब तरीके बदल दिए हैं।न जाने किस किस हथियारों से अब वह शिकार करने लगा है।हथियार भी एक से बढ़कर एक। कभी वह ताक़त का इस्तेमाल करता है।कभी सत्ता तो बहुत बार रुपया पैसा!और कभी जब पावर,पैसा और ताक़त एक साथ मिल जाये तब क्या कहने!!!इस बदले हुए जमाने मे आदमी अब बिना किसी हथियार के भी शिकार करने लगा है।खुद भी निहत्था और शिकार भी निहत्था....किसी राह चलती औरत को सिर्फ नज़रों से ही.....बस वह पसंद आ जाये....उस औरत की पसंदगी और नापसंदगी? उसकी क्या कोई
अहमियत भी होती है?
कभी कभी वह ऑफिस मे साथ काम करती औरतों पर उन्ही नज़रों से तीखा हमला बोल देता है जब उनका प्रमोशन होता है और उसका नहीं। बहुत बार वह मुखर होकर भी हमला कर देता है कि तुम्हारा प्रमोशन इसलिए हुआ है क्योंकि तुम एक सुंदर औरत हो।
घर मे भी वह कई तरह के शिकार को अंजाम देता रहता है।घर मे काम करती जवान नौकरानी को बीवी के सामने ही कनखियों से देखना और मौके बेमौके से उसका हाथ पकड़ना क्या शिकार का नया तरीका नहीं है?घर मे और छोटीमोटी शिकार चलते ही रहती है।अपने से ज्यादा काबिल बीवी से वह कहते रहता है, "पता नहीं तुम्हे कब अक्ल आएगी?" या फिर "तुम्हारी अक्ल तो घुटने में है।"
आजकल उसने एक और हथियार की खोज की है।नज़रअंदाज करने की!!! आजकल वह नजरअंदाज करते हुए शिकार करता है।उस वक्त शिकार को खामोशी से वह नश्तर चुभोता है और खंजर से वार करता है.....