शीश महल

शीश महल

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सपना का जब रिश्ता पक्का हुआ था, तब सभी उसके भाग्य की तारीफ करते ना थक रहे थे। करते भी क्यूँ ना! शहर के एक ऊँचे रईस खानदान में रिश्ता जो हुआ था। बहुत ही भव्य तरीके से शादी हुई थी, सपना के परिवार वाले साधारण लोग थे। रायजादा खानदान की बराबरी करना उनके बस की बात नहीं थी, फिर भी बेटी को इतना अच्छा घर मिला है तो उसकी खुशी के लिए अपनी हैसियत से बढ़कर ख़र्च किया।

सपना भी अपने नए जीवन को लेकर बहुत उत्साहित थी। इतना बड़ा आलीशान घर, हर चीज करीने से रखी हुई। महंगी महंगी पेंटिंग्स दीवार पर झूल रही थी, हर तरफ कांच के शो पीस लगे थे, बीच में बड़ा सा झूमर लटक रहा था, ज़मीन पर क़ालीन बिछा था। लेकिन कहते हैं ना चमक धमक से सच्ची खुशी नहीं मिलती।

सपना के पति मिलिंद को हर चीज अपनी जगह पर चाहिए होती थी। टीवी का रिमोट भी टेबल पर ही होना चाहिए, ऐसा नहीं सोफे पर या कहीं भी रख दिया। बेडशीट पर एक सलवट नहीं होनी चाहिए। ज्यादा जोर से घर में नहीं बोल सकते। ना ही मुंह खोल कर खुल कर हँस सकते हैं। सपना और मिलिंद अपने हनीमून के लिए गए। सपना हमेशा से अल्हड़, खुल के जिंदगी जीने में विश्वास रखती थी। मिलिंद हर चीज में सपना से रोक टोक करता, कैसे कपड़े पहने हैं, पांच सितारा होटल है ढंग से रहो।

मिलिंद और सपना होटल के रेस्टोरेंट में खाना खा रहे थे। सपना ने पहला निवाला ही लिया था कि मिलिंद गुस्से में बोलने लगा "कैसी गंवार हो, चम्मच से खाना नहीं आता क्या, हाथ से खा रही हो। और ध्यान से खाना कुछ भी नीचे बिखरना नहीं चाहिए।" सभी वेटर और आस पास के लोग सपना को देखने लगे। बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी सपना को। सपना की आँखें नम हो गईं। जिस किस्मत पर सभी नाज़ कर रहे थे आज उसे अपना नसीब सबसे बेमान लग रहा था।

ऐसे ही दिन गुजरते रहे, सपना की हँसी गुम हो गई। घर की किसी चीज़ को ना तो छू सकते हैं, कहीं उनमें दाग लग जाए ना ही अपने पसंद का खाना बना सकते थे। कुछ कभी अपने हिसाब से कर ले तो बाद में मिलिंद उसे गंवार, अनपढ़ बोल कर नीचा दिखा देता था।

एक दिन सपना की सास ने सपना को कहा "अब तो तुम्हें जल्दी ही मुझे दादी बना देना चाहिए। हमारे खानदान का चिराग आ जाए तो रौनक आ जाएगी घर में। "

सपना ने कहा, "रौनक! कैसे आएगी रौनक? ना आपके बेटे को शोर पसंद है, ना हँसना पसंद है, ना घर में बिखरा सामान पसंद है। बच्चे तो घर भी गन्दा करेंगे, हँसेंगे भी, रोएंगे भी। मैं नहीं चाहती मेरा बच्चा इस जेल में रहे जिसमें किसी चीज की आज़ादी नहीं। कम से कम हम होटल में पैसे देकर तो अपने हिसाब से रह सकते हैं, इस शीशमहल में नहीं रह सकते। मैं भी अब थक चुकी हूं ज़िल्लत की जिंदगी से, नहीं चाहिए ऐसा पैसा नहीं चाहिए सोने का पिंजरा। मैंने फैसला किया है कि मैं अब और इस शादी में नहीं रह सकती। मैं अब पहले पढ़ाई पूरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होंगी कि कोई भी मिलिंद मुझे अनपढ़ गंवार ना कह सके। "

अपनी बात कह कर सपना अपने कमरे में अपना समान बांधने लगी, जानती थी आज उसका आखिरी दिन है कैदी के रूप में।

क्या आप सहमत हैं सपना के फैसले से?


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