पति बनने में वक्त लगता है
पति बनने में वक्त लगता है


संजना की आज शादी है ,बहुत खुश भी है संजना। परिवार की पसंद से अविनाश जैसा सुयोग्य पति उसे मिला है। संजना अपने मां बाबा की इकलौती बेटी ओर भाई की इकलौती बहन थी। घर में सब से छोटी और चुलबुली होने के कारण बचपन से ही सब का स्नेह उसे मिला। घर भी संपन्न था तो कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी मां बाबा ने। भाई भाभी का भी बहुत प्यार मिलता था संजना को। संजना आने वाली जिंदगी को लेकर बहुत उत्साहित थी। उसने अपने कल्पना में अविनाश की छवि फिल्म के हीरो की तरह कर रखी थी जो अपनी प्रेमिका के लिए चाँद तारे तोड़ कर लाने वाला होता है। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही होती है तभी तो कहा जाता है शादी का लड्डू जो खाए पछताए जो ना खाए पछताए। संजना विदा होकर अपने ससुराल आ गई। उसने सोच रखा था कि उसका कमरा फूलों से सजा धजा होगा । सोच कर ही संजना के गाल गुलाबी हो गए। सारी रस्में होने के बाद जब सास ने कहा जा कर कमरे में आराम कर लो संजना बहुत खुश हुई। पहली बार अपने कमरे को जो देखने वाली थी। लेकिन जैसे ही कमरे में घुसी देखा यहां तो कितने ही सूट केस पड़े है। किसी ने चाय पी के कप भी वहीं छोड़ रखा था। और पलंग पर ननद का बेटा जो अभी मात्र 3 साल का था सो रहा था। संजना तो कमरे को देखते ही निराश हो गई। अविनाश उसके बुझे चेहरे को देख कर समझ गया शायद संजना कुछ और ही उम्मीद लगा रखी थी।
अविनाश ने कहा "अभी बहुत मेहमान आए हुए है, घर में कमरे भी तीन ही है तो अभी तुम्हें थोड़ा एडजस्ट करना पड़ेगा। बाद में जब सब चले जाए तब तुम अपने पसन्द से कमरे को सजा लेना। "अविनाश की बात सुन संजना बस हल्का सा मुस्कुरा देती है। धीरे धीरे जिंदगी आगे बढ़ती है। संजना पति के उठने से पहले जैसा फिल्मों में होता है हीरोइन के गीले बालों के छिटें जब हीरो के चेहरे पर गिरते थे तो एक रोमांटिक माहौल बन जाता है। वैसा ही संजना ने करने की सोची। अपने गीले बालों को झटक कर सोते हुए पति को खुश करने की सोची। अविनाश हड़बड़ा कर उठ गया। उसे लगा अचानक बारिश कैसे आ गई। संजना झेंप गई। थोड़ा शरमाने लगी उसे लगा अभी अविनाश उसकी तारीफ करेगा और बाहों में भर लेगा। अविनाश ने अपने गुस्से को कंट्रोल कर के कहा ,संजना सर्दी का मौसम है अपने बाल सूखा लो वरना जुखाम हो जाएगा। बोल कर अविनाश बाथरूम में चला गया। संजना को बहुत गुस्सा आया। कैसा पति मिला है बिल्कुल रोमांटिक नहीं है। संजना अपनी कोशिश में लगी रहती। कैसे अविनाश को अपने सपनों के हीरो जैसा बनाया जाए। बड़े दिनों बाद आज बाहर जाने का प्रोग्राम बना था। संजना भी सज धज कर तैयार हो गई। अविनाश के साथ कुछ अच्छा वक्त मिलेगा बिताने को। पहले मूवी जायेंगे फिर बाहर खाना खायेंगे फिर आइस क्रीम खायेंगे। क्या क्या सोच लिया था। अच्छे से तैयार होकर दोनों पति पत्नी कार में रवाना होते हैं। "मॉल तो इस तरफ है ना अविनाश तुमने गाड़ी दूसरी तरफ क्यों ले ली। "संजना ने पूछा। "वो दीदी जीजा जी को भी लेना है ना वो भी तो चल रहे है ना। "अविनाश ने कहा। "अच्छा। मुझे बताया नहीं" संजना ने कहा। संजना का मन एक बार उदास हो गया। फिर सोचा कोई बात नहीं अविनाश तो उसके साथ ही है। फिर क्या है साथ के मज़े करेंगे। सब साथ में मॉल जाते है। पहले पिक्चर देखने जाते है। सब बढ़िया चल रहा था। लेकिन बीच में ननद का बेटा रोने लगता है। बाकी को कोई दिक्कत ना हो तो अविनाश बोलता है ,"मैं बाबू को बाहर ले जाता हूं,आप सब के पसंदीदा एक्टर की फिल्म है आप लोग देखिए मैं और बाबू बाहर जाते है।" संजना चाह कर भी अविनाश को रोक नहीं पाई। पूरी फिल्म अकेले ही देखनी पड़ी। बाद में खाना खाने जाते है तब भी अविनाश अपने बहनोई की पसंद के हिसाब से खाना मंगवाता है, वो संजना से पूछता ज़रूर है कुछ चाहिए क्या लेकिन संजना गुस्से में कुछ नहीं मंगवाती। संजना बहुत दुखी हो जाती है। जैसा सोचा था उसने शादी से पहले वैसा कुछ भी नहीं हो रहा था। उसे लगता था शादी के बाद पति सिर्फ पत्नी की सुनते है, लेकिन यहां तो पहले मां, फिर बहन उसके बाद उसका नंबर आता है।
संजना अपना मन बदलने के लिए कुछ दिनों के लिए मायके जाती है। वहां भी थोड़ी उदास सी ही रहती है। संजना की मां उससे पूछती है तब बहुत जोर देने के बाद संजना अपनी समस्या बताती है। मां हँसने लगती है। संजना को ओर गुस्सा आ जाता है "जाओ आप मुझे बताना ही नहीं चाहिए था आपको कुछ,आप नहीं समझोगे, पापा तो आपकी हर बात सुनते है आपकी हर पसंद का ध्यान रखते है आपको क्या पता कैसा लगता है जब पति के लिए पत्नी से ज्यादा बाकी लोगों की खुशी मायने रखती हो।" "ऐसा नहीं है मेरी लाडो, तेरे को क्या लगता है तेरे पापा हमेशा से ऐसे ही थे। क्या पहले दिन ही मेरे हर पसंद का ध्यान रखने लगे। आज तो जमाना बहुत बदल गया है। तेरी दादी के सामने तो हम बात भी नहीं करते थे। पूरा पूरा दिन बिना बात किए ही निकल जाता। तेरे पापा भी मां के पूरे भक्त ही थे। अगर तेरी दादी ने कहीं जाने से मना कर दिया तो मजाल है कहीं घूमने निकल जाए। शादी के पांच साल तक तो तेरे पाप को ये भी नहीं पता था मुझे क्या पसंद है क्या नहीं।" "तो फिर तुम्हें बुरा नहीं लगता था "संजना ने पूछा। "लगता था लेकिन फिर धीरे धीरे समझ आया कि हम बेटों को यही संस्कार तो देते है तो फिर उनकी क्या ग़लती। बेटियों को तो हमेशा यही सिखाया जाता है, ससुराल ही तुम्हारा घर है, पति परमेशवर है पति की खुशी में तुम्हारी खुशी है। लेकिन बेटों के लिए ऐसा कुछ नहीं कहा जाता उन्हें तो जोरू का गुलाम कहा जाता है। मां पिता के चरणों में स्वर्ग है ये कहा जाता है। उनके दिमाग में यही भरा जाता है अगर पत्नी के सामने झुक गए यानि तुम मर्द नहीं हो।" "फिर पापा कैसे बदल गए। "संजना ने आश्चर्य से पूछा। क्योंकि मैने खुद को नहीं बदला, मुझे जो पसन्द है धीरे धीरे बताया, कभी कुछ शिकायत है तो जताया भी। घर के सभी लोगो की पसन्द की चार चीज़े बनाती थी तो अपने लिए पसन्द का कुछ बना लेती थी। जिससे उन्हें भी पता चला मुझे क्या चाहिए। एक टाइम के बाद सब सही हो जाता है। पति भी अपनी जिम्मेदारी समझने लगते है। प्यार तो उन्हें भी होता है बस जताने में थोड़ा समय लेते है। आदमी को लड़के से पति बनने में वक्त लगता है, लड़कियाँ तो सात फेरे होते ही पत्नी बन जाती है। बस हमें लड़कों को भी यही संस्कार देने की जरूरत है कि पत्नी सिर्फ पत्नी नहीं अर्धाग्नी है जितना फर्ज़ तुम्हारा है उतना उसका। "समझी मेरी लाडो। अब मेरा दिल थोड़ा शांत हुआ है। संजना ने ठंडी सांस ली। संजना वापिस ससुराल गई। ननद नंदोई सभी घर आए हुए थे। सब ने कहा आज बाहर से खाना मंगा लेते है। अविनाश ने कहा हां सब को चाईनीज पसन्द है वो ही मंगा लेते है। संजना ने अविनाश को कहा "पर मुझे सोया सॉस की सुगंध पसन्द नहीं है।" अविनाश ने कहा,"ओह अच्छा हुआ तुमने बता दिया मैंने तो कभी पूछा ही नहीं, ठीक है तुम बताओ क्या मांगना है, आज तुम्हारी पसन्द का खाना मंगा लेते है।" संजना खुश हो गई ओर फिर से अपने फिल्मी सपनों में खो गई। धीरे धीरे अविनाश को भी अपनी जिम्मेदारी समझ आने लगी। कभी ऑफिस से आते वक्त संजना के लिए चॉकलेट लाता कभी गुलदस्ता। जब संजना मां बनी उस वक्त तो अविनाश ने बहुत ध्यान रखा था संजना का। संजना को समझ आया हर रिश्ते को संवारने में वक्त लगता है। और लड़कों को थोड़ा ज्यादा।