Varsha abhishek Jain

Tragedy

4.5  

Varsha abhishek Jain

Tragedy

दो रोटी का हक

दो रोटी का हक

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"मीता,मीता यहां देखो क्या पूरे दिन मोबाइल में गेम खेलती रहती हो। देखो जरा ऑफिस को लेट हो रहा हूं मैं।"

"आती हूं,एक मिनट ये लेवल मेरा पूरा होने वाला है।"मीता ने लापरवाही से जवाब दिया।

"कांता बाई मेरा टिफिन बना दिया है ना आप ने,बस वो से दीजिए में निकलता हूं।"

"मीता पूरा दिन देखते रहना मोबाइल अभी देर हो रही है यार।"नमन गुस्से में था।

"पर साहब बस चाय बनने वाली हैं,आप बैठिए मैं ले कर आती हूं ना।"

"नहीं कांता बाई बस पूजा पाठ करके जल्दी से निकलूंगा।नहीं तो बस छूट जाएगी।"

"अरे यार मेरे मोजे,ये मीता भी ना सुबह सुबह मोबाइल लेकर बैठ जाती है ।"

"कांता बाई ,प्रथम को उठा कर जल्दी तैयार कर देना ,वरना मीता के भरोसे तो मेरा ऑफिस और उसका स्कूल सब बंद होने वाला है।"

नमन ने अपने जूते पहनते हुए मीता की और देखा उसका ध्यान अभी भी अपने गेम को पूरा करने में था।नमन बिना कुछ बोले ,खाए गुस्से में घर से निकल गया।धड़ाम से दरवाज़ा बन्द हुआ जो नमन के गुस्से की सीमा को बता रहे थे।दरवाज़े की आवाज़ ने मीता का ध्यान फोन से हटाया।

"नमन गए क्या।

कांता बाई चाय ले कर आना।"

"मेम साहब ,साहब आज भी बिना खाए पिए निकल गए।ऐसे घर से भूखे पेट जाना अच्छी बात नहीं ।"

"तो मैं क्या करूं,जब नाश्ता बना हुआ है,तो कर लेते ,इसमें इतना गुस्सा करने की क्या बात थी।"

आपको तो पता ही है ,साहब चाहते है आप अपने हाथ से उनके लिए खाना परोस दिया करे।"

"तू जायदा बोलने लगी है, कांता जा दूसरी चाय बना कर ला ,पूरी ठंडी हो गई है चाय,पोहे भी बना दे साथ में।"

और सुन देख प्रथम उठ गया क्या"

मीता एक मनमौजी लड़की थी।बस उसे खुद के आराम से मतलब था ,ना बेटे की फिकर ना पति की।नमन भी अच्छा कमाता था ,इसलिए घर में सुख सुविधाएं उपलब्ध थी।पूरे दिन नौकर चाकर रहते थेनमन के मां बाप भी उसी शहर में रहते थे।लेकिन मीता के मनमौजी स्वभाव और आलस्य के वजह से अलग रहना ही उचित समझा।

"हां वो तो कब का ही उठ गया , और स्कूल के लिए तैयार भी कर दिया।"कांता बाई ने जवाब दिया।

"तो आया क्यों नहीं मेरे पास।"मीता ने पूछा।

"आया था ना वो आपके पास,मम्मी मम्मी आवाज़ भी लगाई पर आप अपनी सहेली से बात के रही थी।तो आपने सुना ही नहीं "

"प्रथम भी ना,जब भी किसी का फोन आता है ,उसी वक्त उसके काम उसे याद आते है।"मीता बड़बड़ाई।

मीता ने फिर फोन उठाया और अपने व्हाट्सएप के मैसेज देखने लगी।मीता की यही दिनचर्या थी,फोन फोन और फोन।

जब और कुछ नहीं होता था तो कभी किट्टी या शॉपिंग।


दूसरी तरफ नमन साधारण व्यक्ति जिसे अपने परिवार के साथ वक्त बिताना पसन्द था।बस उसे इतनी सी ही इच्छा थी जब वो घर पर हो तो मीता उसके साथ वक्त बिताये अपने हाथों से खाना खीलाए।नमन का आज ऑफिस का काम जल्दी ख़तम हो गया ,उसने सोचा आज मीता और प्रथम को पार्क ले जाएगा।कब से बोल रहा था प्रथम बाहर जाना है पार्क जाना है।ये सोच नमन ने मीता को फोन कर दिया की वो जल्दी आ रहा है।बाहर पार्क में सेर करने चलेंगे प्रथम भी खुश हो जाएगा।नमन घर पहुंचता है ,मीता भी बहुत खुश होती है।


"थैंक्स नमन अच्छा हुआ तुम जल्दी आ गए।आज मेरा बाहर जाने का प्रोग्राम कब से बना हुआ था।आज हम सब मैक्सिकन रेसटोरेंट्स जा रहे है।मुझे तो लगा प्रथम को कांता बाई को ही देखना पड़ेगा।पर अब तुम हो तो मुझे देर भी हो जाए तो कोई चिंता नहीं।"मीता अपने ही धुन में कान में बालियां डालते हुए बोली जा रही थी।


"पर मीता मैंने कहा था ना अपने तीनों पार्क चलेंगे।फिर मुझे रोज़ रोज़ तो छुट्टी मिलती नहीं।नमन ने नाराजगी जताई।"

"मुझे नहीं जाना ये पार्क वार्क में,तुम बाप बेटे जा सकते हो।"मीता ने अपना पर्स लटकाया और दरवाज़े की ओर चल दी।"

"सच मीता पैसे ओर चका चोंध के आगे तुम्हें कुछ भी नहीं दिखता।"

"अरे यार अब फिर शुरू मत हो जाओ । और हां तुम्हारे लिए कांता बाई खिचड़ी बना देगी ।बाय"

ऐसे ही मीता बिना किसी की परवाह के अपनी ही जिंदगी जीती थी।कुछ दिन बाद -


रात के खाने में आज नमन की पसंदीदा सब्जी बनी थी।

"मीता रोटियां ठंडी कैसे हो गई !"

"अरे आज कांता बाई को कहीं जाना पड़ा खुद के काम से तो उन्होंने पहले ही रोटियां बना कर चली गई।"

"मीता आज तुम ही दो गर्म रोटियां सेंक दो,आज तो मेरी पसंद की सब्जी भी है, ओर एक अरसा हो गया तुम्हारे हाथ की रोटियां खाए।"

"अरे नमन अब क्या पैं - पें शुरू कर दिया तुमने।खा लो ना , दो तो रोटियां खानी है उसमें भी कितने नखरे है तुम्हारे।"

"कितनी बदल गई हो मीता तुम।जब मेरी कमाई कम थी कम से कम दो गर्म रोटियां तो मिलती थी।लेकिन कमाई बढ़ने के साथ मेरे रोटियों का हक भी छीन गया।इससे अच्छा होता कि मैं कमाता ही नहीं।"

"अरे अब क्या इमोशनल अत्याचार शुरु कर दिया।अब पैसे है तो काम वालों से काम कराने में क्या हर्ज है तुम को तो आदत हो गई है अपनी मां की तरह मुझे ताने सुनाने की।"

'मां को क्यूं बीच में ला रही हो,तुम्हारे स्वाभाव की वजह से मुझे आज उनसे अलग रहना पड़ रहा है।"

"तो चले जाओ ना अपने मां की गोद में,खा लेना वहां जाकर गर्म रोटियां, मैं भी देखती हूं कब तक खिलाती है तुम्हारी मां तुम्हें।"बेपरवाही से कहते हुए,मीता फिर अपने मोबाइल में घुस गई।

"मां ने तो मुझे 25 वर्षों तक खाना खिलाया है, वो क्या थकेगी।"

नमन अपने कमरे में गया और अपने दो तीन जोड़ी कपडे डाले और अपनी मां के घर चला गया।मीता ने अहंकार में रोका भी नहीं नमन को।"ह्मम ,दो दिन में खुद आजाएंगे लाइन पर। मैं तो वहीं करूंगी जो करना है।"दो दिन बीत गए ना ही नमन ने मीता को फोन किया ना मीता ने नमन को।बेटे ने बार बार ज़िद की पापा से मिलना है पापा के पास जाना है । हार कर मीता को नमन को फोन करना पड़ा।

"हेल्लो

तुम्हें तो चिंता है नहीं अपने बीबी बच्चों की, ऐसा नहीं की एक फोन भी कर लूं।"

"हेल्लो,बहू मैं बोल रही हूं।"

"अच्छा मां जी ,माफ कीजिए मुझे लगा नमन है ।"

"वो नमन की तबीयत ठीक नहीं थी ।दो दिन से ।उसने मना किया था तुम्हें बोलने से ।इसलिए चाह कर भी फोन नहीं किया तुम्हें।"

"क्या हुआ मां जी।"

"तुझे तो पता है , कैसा है वो उसके पास बैठ कर जब तक प्यार से खाना ना खिलाओ तो वो खाना खाता ही नहीं खाता भी है तो आधा अधूरा सा ।इसलिए डॉक्टर ने कहा है छ सात महीने से ये बहुत कमजोर होगया है, बीपी की समस्या भी हो गई है। मन में गुस्सा दबा के रखता है अंदर से टूट गया है।"


मीता के आंखो में आंसुओ की धार बहने लगी।जल्दी से अपने बेटे को लेकर अपने ससुराल पहुंची।नमन गहरी नींद में सो रहा था।नींद की दवा दी हुई थी डॉक्टर ने।डॉक्टर पारिवारिक थे।उन्हें पूरी बात पता थी।उन्होंने ने मीता को बताया ,"आप दोनों साथ में समय बिताया कीजिए।नमन बहुत भावुक लड़का है।उसके मन में ढेरों बातें है , एक आदमी जब घर से बाहर काम पर जाता है तो ना जाने कितनी परेशानियों का सामना कर अपने परिवार के लिए पैसे कमाता है।ओर जब घर लौटता है तो वो चाहता है कि घर में कोई तो हो जो उसका इंतजार कर रहा हो ।

पर जब नमन घर आता है तो नौकर ही उसे खाना पानी पूछते है,घर से निकलता है तो तुम्हें मोबाइल में घुसा देखता है।तो उसके मन में ये विचार आना स्वाभाविक है कि वो जो इतनी मेहनत कर रहा है किसके लिए।बेटी ये भी एक तरह की बीमारी ही है , जब आदमी अंदर से हतास हो जाए।"


मीता फूट फूट के रोने लगी।उसे समझ आ गया पैसे से सुख साधन रखे जा सकते है पर खुशियां नहीं ।उसने खुद को बदलने की ठान ली।वापिस पाना चाहती थी नमन को वो।

'नमन उठो देखो तुम्हारे लिए अपने हाथों से खाना बना कर लाई हूं। उठो ना ।"

"नमन ने आंखे खोली।अपने मां बीबी बच्चों को अपने सामने पाकर मुस्कुरा दिया।"

मीता ने खुद खाना बनाया और मां ने अपने बेटे को हाथों से खाना खिलाया।




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