हिंदी ने बढ़ाया मान
हिंदी ने बढ़ाया मान
स्वरा एक मध्यम वर्गीय परिवार में पली थी। जिस गांव में वह रहती थी वहां एक सरकारी स्कूल ही था। बारहवीं तक की पढ़ाई स्वरा ने हिंदी मीडियम स्कूल से ही की थी।पढ़ाई में तो शुरू से ही अच्छी थी। इसलिए मां पिताजी ने भी स्वरा की पढ़ाई की रुचि को देखते हुए,दिल्ली के कॉलेज में उसका दाखिला करवा दिया।
स्वरा की रुचि हिंदी विषय में थी।उसकी हिंदी अच्छी ही,अंग्रेजी में थोड़ी कच्ची थी।इसलिए हिंदी विषय में ही उसने अपनी मास्टर की डिग्री प्राप्त की।
इसी बीच स्वरा के पिताजी के दोस्त का घर आना हुआ। स्वरा के रूप और गुण से प्रभावित होकर उन्होंने अपने बेटे के लिए स्वरा का हाथ मांग लिया।
"बाबा वो इतने पढ़े लिखे लोग, डॉक्टर का परिवार है मैं कैसे उन सब के बीच अपनी जगह बना पाऊंगी। वे सब तो आपस में ही अंग्रेजी में ही बात करते है।" स्वरा ने अपने पिता जी से अपनी मन की बात कही।
"हां तो तुम भी तो पढ़ी लिखी हो, मास्टर की डिग्री है। वो तो वे सब दक्षिण भारत में रहते है तो उन सब को हिंदी थोड़ी कम आती है।देखना तुम अपनी समझदारी से अपनी जगह बना ही लोगी।" स्वरा के पिताजी ने स्वरा को समझाया।
कुछ दिनों बाद अच्छा मूहर्त देख कर स्वरा के हाथ पीले कर दिए गए। स्वरा चेन्नई आ गई थी अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने।
स्वरा के ससुराल में पति अमित, सास ससुर दो ननदें थी। पति और ससुर जी डॉक्टर थे। सास स्कूल में अध्यपिका थी। दोनों ननद अभी पढ़ रही थी।
जब स्वरा ससुराल आई तो देखा यहां का रंग ढंग तो उतर भारत से बिल्कुल अलग। अलग भाषा अलग रहन सहन। यहां तमिल बोली जाती है या अंग्रेजी।घर में काम करने वाले नौकर भी अंग्रेजी बोल लेते थे।
"भाभी आपको बिल्कुल भी अंग्रेजी नहीं आती।" स्वरा की ननद ने पूछा।
"आती है,मतलब समझ तो आ जाती है पर कभी बोला नहीं तो हिचक होती है।" स्वरा ने शर्मिंदगी से कहा।
"दोनों ननद एक दूसरे को देख कर हँसने लगी। और बोली फिर तो आपकी पढ़ाई ओर मास्टर की डिग्री का यहां कुछ नहीं होगा, घर में ही बैठे रहो आप तो।" स्वरा को बहुत बुरा लगा।
स्वरा के पति अमित इस बात को समझते थे। अमित स्वरा की काफी मदद कर रहे थे कि स्वरा का मन लग जाए नए माहौल में। स्वरा में भी सीखने की प्रबल इच्छा थी, इसलिए धीरे धीरे उसने अंग्रेजी और तमिल के कुछ शब्दों को सीख लिया।
धीरे धीरे आस पड़ोस के लोगों से अच्छी जान पहचान हो गई।
एक दिन एक पड़ोसी मित्र ने स्वरा से कहा,"तुम्हारी हिंदी इतनी अच्छी है, तुम क्या मेरे दोनों बच्चों को हिंदी पढ़ा दोगी। यहां हिंदी पढ़ाने वाले टीचर्स बहुत कम है, और मेरे बच्चों को हिंदी में बहुत दिक्कत होती है।"
"अरे हिंदी इसमें क्या दिक्कत, मैंने हिंदी में ही अपनी पढ़ाई पूरी की है, तुम अपने बच्चों को भेज देना मैं सीखा दूंगी।" स्वरा ने उत्साह से कहा।
दोनों बच्चे हिंदी पढ़ने के लिए स्वरा के पास आने लगे। इस बार परीक्षा में बच्चों के नंबर बहुत अच्छे आए। जिस वजह से दो तीन अभिवाकों ने भी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए स्वरा से संपर्क किया।
कुछ महीनों में ही स्वरा को हिंदी की टीचर के नाम से लोग जानने लगे। यहां तक कि जिस स्कूल में स्वरा की सास अंग्रेजी पढ़ाती थी उस स्कूल से स्वरा को हिंदी पढ़ाने के लिए नौकरी मिल गई।
स्वरा आज बहुत खुश थी कि जिस हिंदी की वजह से ननदों ने कहा था कि यहां चेन्नई में उनकी पढ़ाई लिखाई का कोई मतलब नहीं है, उसी हिंदी की वजह से आज दक्षिण भारत के एक स्कूल में वह अध्यापिका की तरह कार्यरत है। हिंदी भाषा की वजह से ही उसने एक अलग पहचान बना ली।