शेरु
शेरु
सुधा पेड़ों मे पानी डाल रही थी, गेट पर एक छोटा सा काले रंग का पिल्ला आ कर खड़ा हो गया। सुधा ने रोटी लाकर उसके सामने डाल दी।
अब तो रोज का नियम हो गया, सुबह वह सुधा के दरवाजे आकर पूँछ हिलाते खड़ा हो जाता, सुधा रोटी देती।धीरे-धीरे दोनो के बीच मूक प्रेम का रिश्ता कायम हो हो गया। सुधा उसे दुलारती, वो उसके पैर चाटकर कृतज्ञता दिखलता।
घर के सदस्यों ने भी उसे स्वीकार लिया। बच्चे कहते- "माँ हमारा छोटा भैया आ गया, लाओ उसे रोटी दे दे।" पति ने तो उसे सुधा का दत्तक पुत्र ही कह दिया और उसका नाम करण हुआ शेरु। शेरु ने उस घर को अपना माना,उस घर ने शेरु को। जब कभी शेरु अपने भाई बन्दो से पिट कर आते तो सुधा उसके घाव साफ करती, दवा लगाती और अतिरिक्त प्रेम के साथ दूध रोटी की दावत होती। शेरु जवान होने लगे।
उस रात आसमान बादलों से भरा था, बूंदा बांदी भी रुक-रुक कर हो रही थी, शेरु गेट के पास सो रहा था। सुधा के पति ने भी दरवाजे, लाइट बन्द किये। स्ट्रीट लाइट शायद खराब थी, सड़क पर अन्धेरा था।
आधी रात का समय होगा, कुछ पैरो की आवाज, शेरु के भौंकने की आवाजें, मोटरसाइकिल की आवाज और उसके बाद सब शान्त। सुधा और उसके पति गेट तक आये भी पर अन्धेरे की वजह से कुछ समझ नहीं पाये। सुबह गेट खोलते ही सुधा की चीख निकल गई सामने सड़क पर शेरु पड़ा हुआ था, मोटरसाइकिल उसे रौंदकर निकल गई थी।
घर पर मातम सा पसरा था। खाना भी बना पर किसी से खाया न गया।