Shilpi Goel

Abstract

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Shilpi Goel

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शौक

शौक

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गर्मी की चिलचिलाती हुई धूप और छोटे-छोटे बच्चों का आइसक्रीम के लिए ललचाना, अपने माता - पिता को आइसक्रीम पार्लर पर ले जाकर जिद्द करते हुए कभी कसाटा तो कभी टूटी- फ्रूटी का आर्डर देना देखकर ना जाने कब मैं भी अपने बचपन में खो गई।


हमारे समय में ना कोई आइसक्रीम ब्रांड होता था ना कोई आइसक्रीम पार्लर, जब भी टन-टन की आवाज आती थी सब बच्चे समझ जाते थे कुल्फी वाले अंकल गली में आ गए हैं, ना कोई जिद्द करता था ना ही मनमानी सब बच्चों को छूट होती थी अपनी पसंद की एक कुल्फी (हाँ, कुल्फी ही कहते थे हम सब आइसक्रीम तो आजकल का फैशन हो चला है।) खाने की।


कोई तिल्ली वाली लेता तो कोई मटके वाली। कभी अगर बड़े भाई या बहन ने डांट लगा दी या झगड़े में एक लगा दिया तो प्यार के तौर पर उस दिन एक कुल्फी ज्यादा मिलती थी और हमें लगता था उस दिन तो हमने दुनिया का सबसे बड़ा तोहफा हासिल कर लिया।सच कितना प्यारा था हम लोगों का बचपन हर छल-कपट से कोसों दूर।


तभी हार्न की आवाज सुनाई दी और मेरी तंद्रा टूटी तो देखा वो बच्चे वहाँ से जा चुके थे और आइसक्रीम पार्लर वाले भाईसाहब पूछ रहे थे "क्या चाहिए आपको मैडम।" मैंने कहा दो चाॅकलेट वैनिला और खुद पर ही हँसते हुए वहाँ से निकल गई, क्योंकि आजकल के सब बच्चों को यही सब पसंद है तो मेरे कहाँ पीछे रहने वाले थे।


कुल्फी का शौक तो बस हमें ही है आज भी, थोड़ी दूर जाने पर मैंने इन्हें कहा जरा गाड़ी तो रोकिए। इन्होंने पूछा क्या हुआ, मैंने कहा कुछ नहीं और पूछा कुल्फी खाााँगे आप। इन्होंने ना मेें गर्दन हिला दी और मैंंने वहीं सड़क किनारे कुल्फी वाली रेहड़ी से अपने लिए एक कुल्फी ले ली।


कहने लगे बड़ी अजीब हो यार इतने बड़े आइसक्रीम पार्लर पर लेकर गये थे तुमको वहाँ से क्यों नहीं ली, मैं बस मुस्कुरा दी, अब इन्हें कौन समझाए अजीब तो हम सच में हैं तभी तो शब्दों में अपनी सारी जिंदगी जी लेते हैं। 


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