Shilpi Goel

Tragedy

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Shilpi Goel

Tragedy

गरीबी का दंश

गरीबी का दंश

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परिवार किसी भी व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत होता है, खासकर हमारे समाज में जहाँ अमीर व्यक्ति दिन-ब-दिन पैसा कमाने की खातिर अपने परिवार से दूर होता जा रहा है वहीं गरीब व्यक्ति हर मुश्किल का सामना सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार के साथ होने के दम पर कर पाता है।

क्या हो जब वही परिवार जिसे हम अपना सब कुछ मानते हैं, हमारे बारे में कुछ ऐसा सोचता हो जिसे सुनकर हमारे पैरों की जमीन खिसक जाए।आइए जानते हैैं हमारी इस कहानी में, जो है हमारी कहानी के नायक हरिया की कहानी।

हरिया एक बहुत ही सीदा-सादा और हँसमुख स्वभाव का किसान था। जो मिलता जितना मिलता वह हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता था। उसके परिवार में उसके अलावा, उसकी माँ, बीवी, दो बेटियाँ और एक बेटा रहते थे। हरिया के पास एक छोटा सा खेत था जो उसे पुश्तैनी रूप से प्राप्त था, जिसमें खेती-बाड़ी कर वह अपनी और अपने परिवार की दैनिक जरूरतों को बमुश्किल पूरा कर पाता था।वह फिर भी अपने परिवार का साथ पाकर बहुत ही खुश रहता था और एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था अपने परिवार के साथ।


एक बार हरिया खेतों मेें फसल अच्छी करने की खातिर बीज की खरीददारी करने के लिए शहर जाता है, इससे पहले वो कभी शहर नहीं गया था, जब तक उसके बाबूजी थे वही शहर से बीज लाने का काम करते थे। हरिया तो बस यूँ ही अपना काम चला लेेेता था।लेकिन परिवार की बढ़ती जरूरतो के कारण अब यह जरूरी हो गया था कि अब वह भी कुछ नये और अलग नस्ल के बीजों का प्रयोग कर फसल को बेहतर बनाए जिससे ज्यादा पैसा कमाया जा सके।

हरिया शहर की चकाचौंध देखकर हैरान रह जाता है, वहाँ किसी को किसी से प्यार नहीं।पति-पत्नी हो या बच्चे सबके सब सरेआम सड़क पर लड़ाई करते हैं। कोई बड़े-छोटे का लिहाज नहीें था यहाँ।यह देखकर हरिया सोचता है कि वह कितना खुशनसीब है, जो उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है, सब मिल-जुल कर एक साथ रहते हैं।


हरिया सब खरीददारी करकर जब वापिस गांव जाने के लिए गाड़ी लेता है तो वह गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और उस हादसे मेे बहुत से लोगों की जान भी चली जाती है।हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को सरकार मुआवजे के तौर पर दो-दो लाख रुपये प्रदान करती है।


हरिया खुद को बड़ा खुशनसीब समझता है कि उसकी जान बच गई और अब वह वापिस अपने परिवार से मिल पाएगा।साथ ही हरिया यह सोचकर परेशान भी रहता था कि उसके इतने दिनों तक वहाँ ना होने से उसके परिवार पर क्या बीतती होगी और घर का खर्चा कैसे चल पा रहा होगा।मैडिकल कैंप में कुछ दिन रहकर, ठीक होने के पश्चात जब हरिया वापिस गांव जाने के लिए निकलता है, तो यह सोच कर फूला नहीं समाता कि उसका परिवार कितना खुश होगा उसे जीवित देखकर।

उधर उसका पूरा परिवार कुुछ दिन तो हर संभव कोशिश करता है उसे जीवित या मृत ढूंढने की मगर कोई खबर हाथ ना लगने पर चुप बैठ जाता है। 

एक तो पहले ही गरीब किसान का परिवार और उस पर भी कमाने वाला ही ना रहे तो आप और हम सोच भी नहीं सकते कि उन पर क्या बीतती होगी।


"अम्मा आज बाबूजी साथ होते तो हमें इस तरह भूखा ना सोए देते कभी", हरिया की बड़की बेटी ने कहा।


"क्या खाक भूखा ना सोए देते, वो थे तब कौन सा हमको छप्पन भोग नसीब होइत रहा", हरिया की बीवी बोली।


"ये कैसी बातें करित हो अम्मा", बड़की बिटिया बोली।


"बिल्कुल सही कह रही अम्मा", हरिया का बेटा बोला।


"अरे कम से कम तुम्हारे बाबूजी की लाश ही मिल जाती तो जो सरकार ने दो लाख रुपए मुआवजे के दिए हैं मरने वालों के परिवार को हमेें भी मिल जाते, कम से कम उससे घर का खर्च ही चलता रहता।" हरिया की अम्मा बोली।


"जिंदा थे तब भी कुछ काम के ना रहे और मरन पर भी कुछ काम ना आईन", छुटकी बिटिया बोल पड़ी।सब अपनी अपनी बात बोलने में इतना मशगूल थे कि किसी को भनक भी ना लगी, यह सब हरिया दरवाजे पर खड़ा सुन रहा था।यह सब सुनकर उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहे जा रहे थे, यह सोच कर कि जिस परिवार पर उसको इतना गर्व महसूस होता था और लगता था कि वो सब उससे कितना प्यार करते हैं, वो सब उसकी मरने की राह देख रहे थे।


एक बार तो उसका मन किया कि वो वापिस चला जाए और अपनी जान दे दे पर फिर सोचा उससे क्या लाभ होगा, ऐसा करने से परिवार वालों को तो कुछ मुआवजा मिलेगा नहीं।आज भी जब कोई दुर्घटना होती है और सरकार सबको मुआवजा देती है तो वो खुद को बदनसीब मानता है कि उस दुर्घटना में उसकी जान क्यों नहीं चली जाती।


हमें शायद सुनने मेें अजीब लगे यह बात, लेेेकिन ऐसा नहीं है कि हरिया का परिवार उससे प्यार नहीं करता था या उन्हें हरिया की चिंता नहीं थी। परन्तु भूख गरीब की जिंदगी की सबसे बड़ी और कड़वी सच्चाई है। और जब पेट खाली होता है ना तो प्यार नहीं सिर्फ और सिर्फ रोटी दिखाई देती है।


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