SANGEETA SINGH

Thriller

3  

SANGEETA SINGH

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शापित अप्सरा का सफर

शापित अप्सरा का सफर

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देवराज इंद्र का दरबार सजा था, अप्सराएं नृत्य कर रही थी, गंधर्व गण गायन और वादन में व्यस्त थे।


देवराज मुदित मुद्रा में नृत्य का आनन्द उठा रहे थे।

उर्वशी, रम्भा , सभी अपने नृत्य ने डूबी थी, लेकिन आज नयनतारा का मन नृत्य में नहीं लग रहा था, वह देवराज इंद्र की सुंदरता पर रीझी हुई थी, बार बार नज़रें चुरा उन्हें निहार रही थी।

अचानक देवराज की नज़रे उसकी ओर गई , और उनकी आंखो ने जैसे उसके मन की बात जान ली ।

आंखें चार हुई, इशारों इशारों में कई संदेश आपस में प्रेषित हुए।


नृत्य खत्म हुआ। देवराज नयनतारा के पास आए, । रूप लावण्य रोम रोम से प्रस्फुटित हो रहा था। देवराज रूप के पुजारी , नयनतारा सब कुछ उन्हें अर्पण करने को प्रस्तुत थी।

कंचन काया देवराज को देख लता की तरह देवराज से लिपट गई।

कालांतर में नयनतारा इंद्र की प्रेयसी बन गई।

नयनतारा और इंद्र अब ज्यादातर एक दूसरे में ही खोए रहते।

अमरावती में इन्द्र और नयनतारा के प्रणय की चर्चा आम थी, शचि (इंद्र की पत्नी) दुखित थीं, उन दोनों का सानिध्य उन्हें बहुत पीड़ा दे रहा था।


देवराज और नयनतारा अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे तभी प्रहरी ने खबर दी _देवेंद्र व्रजा नामक एक ऋषि अत्यंत कठोर तप कर रहे हैं।

देवताओं के द्वारा अनेकानेक परीक्षा के बावजूद भी वे टस से मस नहीं हुए।

इंद्र 


इंद्र का भीरू स्वभाव जो अपने इंद्रासन के खोने के डर से आशंकित रहता है।

सभा बुलाई गई।

गुरु बृहस्पति अपने आसन पर विराजमान थे। उन्होंने सलाह दी पूर्व में भी अनेकों ऋषियों की तपस्या भंग करने हेतु अप्सराओं की मदद ली गई है, इस बार भी यही करना होगा।

देवराज ने कहा _आप सही कह रहे हैं गुरु देव। परंतु इस बार किस अप्सरा को भेजा जाए।

देवेंद्र ये तो निर्णय आप ही कर सकते हैं।

फिर एक बार परेशान हुए इंद्र , उन्हें नयनतारा की आंखों के जादू का भलीभांति अहसास था , उन्होंने निर्णय लिया कि ऋषि व्रज्रा की तपस्या को भंग करने हेतु नयनतारा को भेजना उचित रहेगा।

इंद्र मुदित मन से नयनतारा के पास आए ।

प्रिये , हमारा सिंहासन खतरे में है _इंद्र ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा।

मैं क्या कर सकती हूं देवेंद्र , आदेश करें_नयनतारा ने कहा।

मुझे लगता है कि , रंभा, मेनका, तिलोतमा, और अन्य अप्सराओं में तुम बुद्धि, रूप, , चेष्टा मुद्राओं में श्रेष्ठ हो ,

"नयनतारा अपनी तारीफ इंद्र के मुख से सुन गदगद हो रही थी। "

इंद्र ने आगे कहा _मैं चाहता हूं तुम ऋषि की तपस्या को भंग करो।

अगर तुम्हें किंचित भी अपनी हार का अंदेशा हो तो , फिर मैं दूसरे अप्सराओं में से किसी एक को भेजूं? इंद्र ने चाल चलते हुए कहा।

नहीं देवेंद्र पृथ्वी लोक में कोई ऐसा नहीं जो मेरी चेष्टाओं से बच सके ।

और नयनतारा ऋषि की तपस्या भंग करने निकल गई।

नयनतारा ऋषि के तप को अपनी यौवन की मादकता से भरसक तोड़ने की कोशिश करनी शुरू की।

कामदेव ने कई तीर छोड़े, नयनतारा से अपनी भाव भंगिमा , नृत्य सबका प्रदर्शन कर दिया ।

अंत में वह ऋषि के तप तोड़ने में कामयाब रही , लेकिन ये क्या अपनी तपस्या में विघ्न उत्पन्न होने के कारण क्रोधित ऋषि वज्रा ने उसे राक्षसी होने का शाप दिया।

हालांकि नयनतारा को इसका परिणाम पता था कि अनावश्यक ऋषियों के तप तोड़ने पर हो सके उसे कठोर दण्ड मिले , लेकिन देवेंद्र की नजर में खुद को ऊंचा, और अन्य अप्सराओं से ईर्ष्या उसे इस राह में ले आया।


नयनतारा के बार बार माफी मांगने पर उन्होंने कहा तुम्हारा उद्धार अब प्रभु अपने अवतार में करेंगे.....तब तुम प्रभु के अवतार में उनकी मदद करोगी।


नयनतारा देखते ही देखते सुंदर अप्सरा से राक्षसी बन गई।

इस बार वह केकसी और ऋषि विश्वरवा

की पुत्री और महाबली रावण, कुंभकरण और विभीषण की बहन बनी।

  

भाई तुमने मुझे विधवा बना डाला, अब मैं कैसे अपना शेष जीवन बिताऊंगी "- सूर्पनखा ने अपने भाई रावण से कहा। उसका सुहाग उजड़ चुका था , आंखों से अश्रुधारा निरंतर उसके अंगवस्त्रों को भिगो रही थी।

रावण जीत की खुशी में मदहोश था, नृत्य चल रहा था, मदिरा का पान करते सभी राक्षस अत्यधिक प्रसन्न थे।

कोई भी सूर्पनखा की बात नहीं सुन रहा था।  

सूर्पनखा रुदन करती, अपने कमरे में चली गई , अगले दिन राजदरबार में क्रोधित हो पहुंची, उसने अपने भाई हे भ्राता तुमने मेरे पति विद्युत जिह्वा मार कर मुझे वैधव्य पुरस्कार में दे दिया।

रावण को कोई ग्लानि नहीं थी, उसने बेशर्मी से जवाब दिया अरे बहना ", संग्राम हुआ, विद्युतजिह्वा  मेरे सामने लड़ने आया तो, मैं क्या करता??" जोर से अट्टहास करने लगा रावण।


कालकेय जाति के राक्षस पाताल में निवास करते थे, विद्युतजिह्वा राजा का सेनापति था। त्रय लोक विजय के क्रम में रावण ने पाताल विजय किया अपने बहनोई को यमपुरी पहुंचा दिया यह सोचे बिना कि विद्युतजिह्वा उसकी बहन का सुहाग है।


तू बिल्कुल चिंता ना कर, _ तुझे भोग विलास की कोई कमी ना होगी।


14, 000 राक्षसों और भाई खर दूषण के संग तू  जनस्थान में निवास कर।


पति की मृत्यु के बाद सूर्पनखा बिल्कुल अकेली हो गई थी, उसने मन ही मन रावण को शाप दिया , की मैं तुम्हारी मृत्यु का कारण बनूंगी।

और उसके बाद , उसने दंडकारण्य में अपनी राक्षस सेना के साथ आतंक मचा दिया।

राम , लक्ष्मण और सीता के वन आने पर प्रणय प्रस्ताव , अस्वीकार होने के बाद वो हिंसक हो, सीता पर हमला करती है। जिसमे परिणामस्वरूप उसके नाक और कान लक्ष्मण के हाथों काट दिए जाते हैं।


और फिर रावण द्वारा सीता का हरण , और फिर राम द्वारा, राम रावण युद्ध संपादित होता है।

और इन सबका परिणाम रावण के वध से पूर्ण होता है।

और इस तरह सूर्पनखा का शाप फलित होता है।

रावण वध के बाद सूर्पनखा , तपस्या में लीन हो जाती है। उसके बाद उसे राक्षस योनि से मुक्ति तो मिल जाती है लेकिन द्वापर युग में वह कुब्जा के रूप में भगवान कृष्ण से मिलती है। और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने उसके कुब्जा रूप से उद्धार कर दिया, और अपनी पत्नी के रूप में स्थान दिया।



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