शादी का पहला सावन
शादी का पहला सावन


" सुमन, ये रही तुम्हारी सावन महोत्सव के लिए साड़ी। सरला भाभी ने बताया था ठीक उसी तरह की लाया हूँ "
बृज ने अपनी पत्नी सुमन के हाथों मे हरे रंग की चमकीली साड़ी थमाते हुए कहा।
" किसने कहा कि मैं सावन महोत्सव मे जा रही, घर के कामों से जान छुटे तो कहीं और जाऊँ, फिर किट्टू भी तो आपसे सँभला नहीं जाता "
सुमन ने साड़ी बिस्तर पर पटकते हुए कहा।
" शादी के बाद पहला सावन है तुम्हारा।
भले ही हमारा बन्धन विषम परिस्थितियों का दास हो, पर तुम अपनी इच्छाओं से मुँह न मोड़ो "
" अब कोई इच्छा शेष नहीं मेरी, जब से आप ब्याह कर लाये हैं हर क्षण घुट रही हूँ मैं। चूल्हे-चौके, बर्तन, कपड़े और बच्चे बस यही तो आपसे मिला उपहार है "
" तुम्हारी इन बातों का क्या अर्थ है, समझौते कि अग्नि पर तो मै भी जल रहा हूँ "
" समझौता.. और आप! आपको ये बाते शोभा नहीं देती।
मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है मुझे सोने दीजिये। ज्यादा चिल्ल पो हुई तो किट्टू भी जाग जाएगा "
" लेकिन तुमने खाना ..."
बृज आगे कुछ कह पाता इससे पहले ही सुमन कमरे की बत्ती बुझाकर भीतर गयी। सावन का महीना मेढकों के टर्र टर्र की आवाज और बादलों की गड़गड़ाहट उसे कर्णभेदी लगने लगे। सहसा झमाझम बारिश शुरू हो गई और उसकी आँखों से भी गंगा की धार बहने लगी।
बृज और सुमन की शादी को अभी तीन महीने ही तो हुए हैं पर आज तक उसने बृज से सीधे मुँह बात नहीं की।
ये जीवन भी बीच मझधार मे फँस गयी है, न जाने उसने कितने स्वप्न बुने थे। यौवन की दहलीज़ पर जब उसने पाँव बढ़ाये थे उसकी सखियाँ बस उसे यही कहा करती थी- रे सुमन! तेरा पति तो सपनों का राजकुँवर होगा और तेरा प्रेम विवाह ही होगा देख लेना तु " पर उन्हें कहाँ पता कि विधना के ये खेल बड़े निराले है। वो तो पढ़ लिखकर एक डॉक्टर बनना चाहती थी और पूरा करना चाहती थी अपनी आकांक्षाओं को परन्तु आज भी स्मरण है वो काली अँधियारी रात जब उसकी दीदी सिया अपने बच्चे किट्टू को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गयी। कितनी रोयी थी वह उस दिन किट्टू को गोद मे उठाकर उसके स्पर्श से वह नन्ही सी जान उसे ही माँ मानने लगा था। इन्ही परिस्थितियों को उचित जानकर दोनो परिवार वालों ने सुमन का विवाह उसके जीजा बृज से करा दिया। विद्युत विभाग मे सरकारी पद होने से उसे बृज अपनी गाँव से दूर शहर मे ही छोटे से किराये के मकान मे रहा करता था। सिया की कितनी स्मृतियाँ इस चाहरदीवारी मे समाये थे इसलिए उसने यहाँ रहना ही उचित समझा।
बृज ने रसोईघर मे प्रवेश किया, आज खाने की मनमोहक सुगंध भी उसे रास न आया। उसे आभास हो ही गया था कि सुमन ने भी खाना नहीं
खाया होगा, तभी एकाकक किट्टू के रोने की आवाज से घर गूँज उठा। वह दबे पाँव कमरे की ओर भागा जहाँ सुमन और किट्टू सोये थे।
किट्टू को गोद मे उठाते हुए उसने सुमन की झाँका और माथे को स्पर्श किया। अरे! उसकी देह तो अंगारे उगल रही थी, उसे तीव्र ज्वर हो ऐसा लग रहा था। पर अभी तो रात्रि के 12 बज रहे और चहुँ ओर बारिश की झमाझम ही दिखाई दे रहे थे। अभी कैसे वह सुमन को लेकर किसी डॉक्टर के पास जाये ? वह सहसा बाहर की ओर भागा और खिड़की से झाँकते हुए सरला भाभी को आवाज लगाया जो उनकी पड़ौसन थी , बृज से बहुत अपनेपन का रिश्ता था उनका।
बहुत आवाज लगाने के बाद सरला भाभी भीगते हुए आयी और किट्टू को गोद मे लेकर सँभालने लगी। बृज सुमन के सिरहाने बैठा और पानी की पट्टियाँ उसके माथे पर लगाते रहा। सुमन को होश न था वो बस दर्द से कराहते हुए बड़बड़ाने लगी थी , बृज ने जैसे तैसे उसे दवाई दिया फिर चादर ओढ़ाकर सोने को कहा। किट्टू भी अब शान्त हुआ और सो गया। सरला भाभी भी सुबह आने की बात कहकर वहाँ से चली गयी। सावन की पहली बारिश जो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
.....................
सुबह के 7 बज रहे थे रात भर बारिश की छटाओं के बाद हल्की हल्की गुनगुनी धूप खिलने लगी थी। सुमन किट्टू के रोने की आवाज से झट उठी और अब तनिक सहज महसूस करने लगी।
" कैसी हो सुमन "
सरला भाभी की आवाज उसके कानो मे पड़ी। उन्होंने रात की पूरी व्यथा उसके सामने जाहिर की कैसे बृज पूरी रात भर सिरहाने बैठा रहा और पट्टियाँ बदलते रहा। उसकी आँखें को से भी आँसू बहे जा रहे थे, और जब तक दवाई लेने के बाद सुमन की आँख न लगी वह टस से मस न हुआ।
" लेकिन वो अभी कहाँ है "
सुमन ने भाभी का हाथ पकड़ते हुए कहा।
भाभी ने बताया कि आज सावन का पहला सोमवार है और बृज शिव जी के मंदिर गया है उसने कल सुमन के स्वास्थ्य के लिये मन्नत माँगी थी इसलिए वह सावन के सारे सोमवार व्रत करेगा।
" तुम कितनी भाग्यशाली हो सुमन, तुम्हे बृज जैसा पति मिला। वह अक्सर मुझे कहा करता था कि सिया के जाने के बाद वह तुम्हे कभी नहीं अपना पायेगा, लेकिन तुम्हारे घर वालों की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा। तभी तो किट्टू के खातिर उसने तुम्हारा हाथ थामा "
सरला भाभी की बातों से सुमन के अन्दर सिहरन सी पैदा हो गयी और वह उनके गले लगकर जोरदार रोने लगी।
सच मे वह तो समझती थी कि बृज कसूरवार है पर उसने तो बस दो परिवारों का मान रखते हुए सुमन से ब्याह रचाया है
सुमन ने भी अब तय कर लिया अपनी शादी के इस पहले सावन को अब अविस्मरणीय बना देगी और अपना जीवन बृज के नाम कर देगी।