पुष्पेन्द्र कुमार पटेल

Tragedy

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पुष्पेन्द्र कुमार पटेल

Tragedy

किसान की बरसात

किसान की बरसात

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मौसम की बेरूखी से गाँव के किसान परेशान थे,हो भी क्यों न, बारिश न होने से नहर, तालाब सूखे पड़े थे तो वहीं बिजली की बेतहाशा कटौती से भी किसान बेहाल थे। बारिश न होने से खेतों में की गई बुआई भी सूखने लगी और अब किसानों को सूखे का डर सता रहा था।

" आधा सावन बीत गया, अब तक तो झमाझम बारिश हो जाती थी लेकिन लगता है इस बार इंद्रदेव रूठ गये। इसलिए तो बूंदाबांदी ही होकर रह गई । राम जाने इस बार हमारा क्या होगा ? " बड़ी ही निराश मुद्रा मे भीमा ने अपनी पत्नी श्यामा से कहा।

" आप धीरज धरिये जी, भोलेनाथ के घर देर है अंधेर नही सब भला ही होगा।

 दाल - भात बन गयी है हाथ मुँह धो लीजिए " श्यामा ने ढाँढस बंधाते हुए भीमा से कहा।

" अम्मा, सीता.. आ जाओ भोजन तैयार है, रे बंसी! चल आजा भोजन कर ले उसके बाद पढ़ते रहना " श्यामा ने अपनी सास, बेटी और बेटे को भी भोजन के लिये बुलाया।

" आज बड़ी जल्दी बन गया बेटी, ला खटिया पर ही परोस दे इतनी बखत नीचे बैठा नही जाता "

" जी अम्मा! ले सीता दादी को भोजन परोस दे। अभी से आदत डाल ले इन सब की, ससुराल मे सास के ताने न सुनेगी "

" माँ! मै शादी ही न करूँगी, बापू मै तो सदा यहीं रहूँगी "

" बावरी हो गयी है क्या छोरी? बूढ़ी दादी की बात गाँठ बाँध ले, छोरी तो पराया धन ही होती है "

माँ और दादी की ये बाते सुनकर सीता अपना मुँह बनाते हुए भोजन परोसने लगी।

" माँ.. मास्टर जी कह रहे थे सावन मे बारिश न हुई तो अकाल पड़ जावेगा। ये अकाल क्या है ? "

7 साल के बंशी ने बड़े भोले अंदाज मे अपनी माँ से पूछा।

" चिंता की कोई बात नही बेटा, तु अपनी पढ़ाई पर मन लगा। मै और तेरे बापू सब सँभाल लेंगे "बंशी की इन बातों ने भीमा को और चिंता मे धकेल दिया बड़ी मुश्किल से वह भोजन कर पाया।

" क्या हुआ जी? आज तो ठीक से भोजन भी नहीं किया आपने "

" क्या कहुँ श्यामा? सोचा था इ बखत अच्छी फसल होने से सीता के हाथ पीले कर देते। 18 बरस की हो गयी हमारी छोरी कछु पता ही न चला "

" हाँ जी, सही कहते हो और अम्मा के घुटनों का इलाज भी करा देते। घड़ी- घड़ी दर्द से कराहती है बेचारी "

" कौन जाने इस बार क्या हो, खेतों मे हरियाली आ पाये या नही "

" भोलेनाथ सब भला कर देंगे जी, सावन सोमवारी का पूरा बरत कर रही हूँ "

" हे भोलेनाथ किरपा दृष्टि बनाये रखियो "

आँख मूंदकर हाँथ जोड़ते हुए दोनों की आँखे भर आयी।भीमा एक मध्यमवर्गीय किसान था, कोई ज्यादा जमीन जायदाद तो नही थे उसके पास 1 एकड़ ही खेत थे जिसे उसके बापू उसके लिये छोड़ गये थे।सभी किसानों को उम्मीद थी कि इस बार मानसून की शुरूआत से ही अच्छी बारिश होगी, जिस वजह से उन्होंने खाद, बीज आदि का इंतजाम कर खेतों की जुताई और बुवाई भी कर दी थी, लेकिन जुलाई का आधा माह से अधिक बीत चुका और अब तक आधी बारिश भी नहीं हुई है। किसानों की बुआई पर पानी फिर गया है। किसान आसमान की ओर निहार कर थक चुके थे, लेकिन बारिश नहीं हो रही थी। खेतों में इस समय चरी, वन आदि की फसल प्रभावित हो रही थी। बाजरा की बुआई भी सूखने लगी, ऐसे में किसान बेहद चिंतित नजर आ रहे थे। बारिश न होने से फसलों की बुआई पर खराब असर पड़ रहा था। गत दिनों भीमा के गाँव मे एक किसान तप पर बैठ गया था।बारिश के लिए लोग अब टोने टोटकों का भी सहारा ले रहे थे।इसी तरह महीने बीत गए, अब तो हरियाली अमावस्या की छटा बिखर गयी । हरियाली अमावस्या का पावन दिन सहसा काले बदरा छा गये और बून्द - बून्द बरसने लगे। श्यामा मन ही मन भोलेनाथ को गुहार लगाने लगी।

" हे प्रभु! आज तो धरती मैया की प्यास बुझा दे "

" बहु ..देख तो बरसा रानी आ ही गयी, जल्दी से भीमा को बोल खेतों के मे महुए की टहनी गाड़ दे और नारियल फोड़ आये "अम्मा चहकती हुई श्यामा के पास आई।

" देखा अम्मा, भोलेनाथ ने सुन ली हमारी "

" हाँ श्यामा! सही कहती हो तुम। कितने बखत हो गये खेतों की सुध लिये "

भीमा नन्हे बच्चे की भाँति किलकारियां लेते हुए बोला।

" बापू, मै भी जाऊँगा "

" नही बछवा, तु भीग जाएगा घर मे रह अपना पाठ याद कर। मै जल्दी ही टहनी गाड़ कर आता हूँ तेरे लिए प्रसाद लेते आऊँगा "

" ले जाओ न जी, भला वो भी तो मालिक है इन खेतों का।

ये लीजिए नारियल और पास मे जो भी दिखे उनको प्रसाद बांटते आना "

" ठीक है, अम्मा का ध्यान रखना और आज गुड़ का चीला बनाना सबो झन मिलकर खायेंगे "

भीमा बंशी को साथ लेकर खेतों की ओर निकल पड़ा। जो हल्की सी झिमिर-झिमिर बारिश थी अब रौद्र रूप धारण कर लिए और तीव्र वेग से मेघराज गरजने लगे । बिजली भी जोरदार चमकारी के साथ झंकझोर गयी। सहसा मानो आकाशीय पिण्ड का एक भाग नीचे गिरा और भीमा के साथ बंशी को भी चपेट मे ले लिया। दोनो चित्त खाकर वहीं बेसुध पड़ गये। उमड़ -घुमड़ कर इन्द्र देव तीव्र वेगों से अपने बाण चलाते रहे।

" अम्मा जी, श्यामा भौजी,सुनती हो.. जल्दी चलो भीमा भाई बेहोस गिर पड़े "भीमा के मित्र हरिया ने ऊँचे स्वर मे कहा।

अम्मा, श्यामा और सीता पवन वेग से भागते हुए पहुँचे।लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था, श्यामा का जी घबराया वह तनिक आगे बढ़ी।

" नही ..... हे भोलेनाथ! तूने क्या दशा कर दी मेरे सुहाग और फूल से बच्चे की "जितने लोग भी वहाँ मौजूद थे सबकी आत्मा सिहर गयी ऐसी दर्दनाक मौत देखकर।

विधाता का ये कैसा खेल ? जिस बरसा रानी की राह महीनों देखते रहे उसी ने क्षण भर मे सर्वस्व लूट लिया। कितनी दुःखदायी थी भीमा किसान की ये बरसात......




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