मेरी दादी माँ
मेरी दादी माँ


इन दिनों दादी की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी। रात में अचानक जोर-जोर से खाँसना, खर्राटे लेना या फिर बीच-बीच मे उठकर पानी पीना इन सब वजहों से घर वालों ने उन्हें अलग ही कमरा दे दिया।
अक्सर सुबह होते ही
"बहू.. कुछ खिला दे पेट मरोड़ रहा है"
"बहू टीवी पे भजन लगा दे"
जैसी आवाजें दादी के कमरे से सुनाई देती थी।पर माँ के जवाब में रूखापन नजर आता था,
"ला रही हूँ.. पूरी तरह सुबह हुई नही की मुर्गा बांग देने लग गया"
"थोड़ा रुकिये माँ जी. मर नही जाओगी थोड़ी देर खाली पेट रहकर"
भजन वाले बात पर माँ तो और ज्यादा चिढ़ती
"मोनू के पापा को न्यूज देखने दीजिए उसके बाद आप भजन सुनते रहना, केबल के इतने पैसे क्या भजन के लिए देते हैं"
सुबह का नाश्ता और रात का खाना लेकर दादी के पास मै ही जाया करता था। तुम्हारी 5वीं की बोर्ड परीक्षा है अच्छे से पढ़ो ऐसा कहकर माँ अक्सर मुझे दादी से दूर ही रखती।दादी कभी-कभी कहती
"बेटी आज लौकी की सब्जी बना देना"
"आज मेरे लिए जलेबी ले आओ"
"मुझे मन्दिर ले चलो"
पर कोई न कोई बहाने बनाकर माँ पापा उनकी बात टाल देते,पापा को तो उनके पास बैठने की फुर्सत भी न रहती।
माँ तो मेरी हर बात मानती थी मेरे पसंद की मैगी और समोसे हर हफ्ते बनाती थी।पर न जाने क्यों? दादी की बातों को क्यो अनसुना कर देते थी !
कभी-कभी रात में उनकी खाँसी बढ़ जाती थी और माँ जाकर उन्हें जोर से डाँट देती थी बेचारी अपना मुँह दबाकर सोने की कोशिश करती,उनकी आँखों से आँसू लगातर बहते रहते।
रोज की तरह एक दिन मै शाम को स्कूल से घर आया।घर के पास कुछ ज्यादा ही भीड़ थी
लोग दादी को घेरकर खड़े थे उन्हें गीता सुनाई जा रही थी।वह जोर-जोर से साँस ले रही थी शायद कुछ कहना चाहती हो,मै झट से उनके पास गया और उनका हाथ पकड़ना चाहा इतने में ही उन्होंने आँख बंद कर लिए।
माँ और पापा जोर-जोर से रोने लगे, मुझे कुछ अजीब लगा क्योंकि दोनों तो दादी से प्यार से बात करते ही नही थे फिर आज...
मैं भी जोर जोर से रोने लगा।
आज दादी को गए 10 दिन हो गए थे,घर मे भोज भी रखा गया था।
लौकी की सब्जी,जलेबी आदि सभी चीजें उनकी पसंद के ही बने थे।
उनकी फोटो की पूजा भी की जा रही थी उनको भोग भी लगाया गया।
पड़ोस वाली चाची बता रही थी ये सारी चीजें दादी खुश होकर खायेंगी और पूजा से उनको मुक्ति मिलेगीl