सेठ की बहू
सेठ की बहू
सेठ की बहू एक दिन कुआं पर पानी लेने गई। अपना घड़ा भर के कुछ दूरी पर रख दी, और अपना हाथ पैर धोने लगी, तभी चार राहगीर आए जो प्यास के से व्याकुल थे सेठ की बहू से बोले कि बहन जी कृपा करके मुझे आप पानी पिला दीजिए। सेठ की बहू के तन पर कपड़े सही ढंग से नहीं थे, इसलिए उन्होंने पानी पिलाने से थोड़ा झिझक उठी।
बोली कि आप कौन हैं। तो पहला राहगीर बताया कि मैं एक पथिक हूं। बहू ने पूछा कि संसार में बस दो ही पथिक हैं उनमें से आप कौन हैं। अगर इस प्रश्न का आप जवाब दे देते हैं तो आपको पानी मैं पिला दूंगी। वह राहगीर जवाब नहीं दे पाया और वहां से हट गया।
दूसरा राहगीर आता है और बोलता है कि बहन जी थोड़ा मेहरबानी से मुझे पानी पिला दे, मैं बहुत ही प्यासा हूं फिर बहू ने उनसे भी सवाल की, कि आप कौन हैं उन्होंने बोला कि मैं एक गरीब हूं।
बहू बोली कि इस संसार में बस दो ही गरीब हैं, उनमें से आप कौन हैं, बताइए तभी आप को पानी पिलाया जाएगा। वह राहगीर भी नहीं बता पाया और वहां से हट गया।
तीसरा राहगीर आता है और बोलता है कि बहन जी मुझे पानी पिला दो मैं बहुत दिनों से भूखा और प्यासा हूं। तो बहू ने पूछा कि आप कौन हैं, उन्होंने बताया कि मैं अनपढ़ गवार हूं।
सेठ की बहू बोली की इस संसार में अनपढ़ गवार बस दो ही हैं, उनमें से आप कौन हैं, अगर इसका जवाब आप बता देते हैं तो आप को पानी पिला दिया जाएगा। वह भी राहगीर नहीं बता पाया पीछे हट गया।
अब चौथा राहगीर आता है और बोलता है, बहन जी मुझे पानी पिला दो सेठ की बहू बोलती है कि आप कौन हैं। वह राहगीर बोला कि मैं मूर्ख हूं मैं कुछ नहीं जानता।
बहू बोली कि इस संसार में बस दो ही मूर्ख हैं उनमें से आप कौन हैं, बता दीजिए और आप को पानी पिला दिया जाएगा। चौथा राहगीर भी उनके सवालों का जवाब नहीं दे पाया और वहां से पीछे हट गया।
इसके बाद बहू बोली कि यहां से आप लोग थोड़ी दूर पर जाइए और मेरा घर मिलेगा वहीं पर मैं आप लोग को पानी पिला दूंगी। चारों राहगीर वहां से चल पड़े और बहू भी वहां से अपने घड़े को ली और छोटे वाले रास्ते से अपने घर पहुंच गई।
घर पहुंच कर अपने तन पर सही ढंग से कपड़े पहन ली, तब तक चारों राहगीर आ गए। अब बहू उन चारों को अच्छे ढंग से पानी पिलाई इसके बाद चारों राहगीर वहां से चल पड़े।
सेठ ने बैठकर सब अपनी बहू को देख रहा था कि मेरे बेटे के ना होने पर के अनजान व्यक्तियों से बोल रही है। अगर मैं इतना देखते हुए भी इसको कुछ नहीं कहता तो हम से मूर्ख कोई नहीं होगा।
सेठ ने अपने बहू से कुछ भी नहीं पूछा और तुरंत राजा के पास गया और सारी बातें बता दिया।
राजा ने तुरंत बहू को बुलवाने का उपदेश दिया, राजा के द्वारा दरबारियों ने बहू के घर गए और बोले कि चलिए आपको राज दरबार में बुलाया गया है।
बहू ने उन लोगों से भी सवाल की, कि जाओ राजा से पूछो कि मुझे किस रूप में बुलाए हैं बहू या बेटी।
वहां से वे लोग गए राज दरबार में, और बोले कि आप उनकी बहू को किस रूप में बुलाए हैं बेटी या फिर बहू के रूप में। राजा ने तुरंत डोली दी और बोला कि जाओ कह दो तुम्हें बहू के रूप में बुलाया गया है। सेठ की बहू उस डोली में बैठकर राज दरबार में आती है। राजा ने सारी बातें उस बहू से पूछे कि तुम इनके बेटे के नोहे रहने पर ऐसा क्यों करती हो तो बहू ने कहा कि महाराज वे चारों राहगीर प्यासे थे, और मेरे तन पर सही ढंग से कपड़े नहीं थे, इसलिए मैंने उन चारों राहगीरों से ऐसा सवाल की, कि वे लोग नहीं बता पाए। और उनको घर आकर मुझे पानी पिलाना उचित था, इसलिए मैं उनको पानी पिलाई
राजा के मन में इच्छा जागृत हुई उन सवालों को जानने के बारे में। बहू से बोलें, कि मैं भी उन प्रश्नों को जानना चाहता हूं कि ऐसे कौन से प्रश्न थे जो भी लोग नहीं बता पाए। बहू ने सभी प्रश्न राजा के सामने की। राजा बोले राजा बोले की बहू इन सभी प्रश्नों का उत्तर तुम ही बताओ।
बहू ने पहले प्रश्न का उत्तर बताई, सूर्य और चंद्रमा, दूसरे का बहू और गाय, तीसरे का भूख और प्यास, और चौथा बताने में थोड़ा सा उनके अंदर डर सा हो गया।
बोली कि महाराज मुझे राज अपराध ना मिले तो मैं चौथे का उत्तर बता सकती हूं। राजा ने बोला कि ठीक है, बताओ कोई भी तुम्हें दंड नहीं मिलेगा।
"मेरे नजर में इस समय दो ही मूर्ख देख रहे हैं उनमें से पहला मूर्ख मेरे ससुर जी हैं। " जो अपने घर का अपने बहू का मर्यादा ना देखते हुए सीधे राज दरबार में बुलाए हैं। घर पर हमसे कोई भी बात पूछे बिना राज दरबार तक यह बातें पहुंची।
"दूसरा मूर्ख इस राज दरबार का राजा स्वयं है जो अपनी बहू से यह सब बातें पूछ रहा है।"
राजा को उनकी बातों पर बहुत गुस्सा आया, और कुछ बोले नहीं फिर उनकी बातों को समझे और सेठ की बहू को बहुत सारा पुरस्कार के साथ उनको उनके घर बहू के रूप में पहुंचाया गया।