घोड़ा खरगोश की मित्रता
घोड़ा खरगोश की मित्रता
एक गांव में एक घोड़ा और एक खरगोश रहता था । दोनों में बड़ी मित्रता थी । घोड़ा जहां जाता ,खरगोश भी उसी के साथ जाता था । एक दिन खरगोश ने अपने अपने मित्र से नाराज हो गया ,और न ही बोलता न ही खाता उस दिन । घोड़ा भी सोच में पड़ गया की आज मेरे प्यारे मित्र क्यों नाराज लग रहे हैं।
" क्या हुआ मित्र आज नाराज है क्या ?" खरगोश कुछ नही बोला , खामोश होकर वहां से चला गया । घोड़ा सोचा कि आज मैं इन्हें अपनी पीठ पर नही बैठाया इसी लिए नाराज हो गए हैं।
‘ खरगोश को नाराज होने का यहीं कारण था । ’
खरगोश के पास जाकर बोला मित्र भाई आज हम लोग कुछ दूर घूमने चलते हैं ,आप मेरी पीठ पर बैठिए और यहां से अब निकलते हैं ।
" खरगोश खुश हुआ " अब गांव से कुछ दूर निकल गए हैं दोनों रास्ते में एक कुआं मिला घोड़े को प्यास भी काफी लग चुकी थी , थक भी चूका है, लेकिन अपने मित्र को खुश रखने के लिए वह कही रुका भी नहीं ।
प्यास से व्याकुल था , अब चल नही सकता । "बैठ जाता है " खरगोश सोचता कि अब मैं कहां जाऊं ? ये तो पता नही कहां ला कर मुझे छोड़ दिए हैं । एक पथिक मिलता है , खरगोश बोला, भाई मुझे अपने साथ ले चलो अब मैं अपना दूसरा मित्र बनाऊंगा ।
जब घोड़ा इतना बात सुना तो खामोश हो गया । "अब अपना दम छोड़ देता है ।"