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Prabodh Govil

Abstract Others

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Prabodh Govil

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सेहरा में मैं और तू -18

सेहरा में मैं और तू -18

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( 18 )

भिनसारे ही जो सूरज निकला, वो और दुनिया के लिए चाहे जैसा भी हो, कबीर के लिए तो ठंडी आतिश और दहकती बर्फ़ सरीखा था। ज़िंदगी की डोर जैसे फिर हाथों में आ गई थी। ज़िंदगी लौट आई थी बदन में।

बराबर में रोहन बेसुध होकर सोया पड़ा था।

कबीर को सोते हुए रोहन पर एक वात्सल्य भरा प्यार उमड़ आया।

इसे देखो, कैसा ड्रामा किंग निकला। न जाने क्या- क्या बातें बना कर रात भर कमरे से गायब रहा और न जाने कैसे छोटे साहब को कबीर के कमरे में भेज दिया।

यार ऐसे ही होते हैं जो यारियों के मकसद भी समझते हैं और दर्द भी।

कबीर के तन बदन में बिजलियां दौड़ने लगी थीं।

जल्दी ही अलार्म की आवाज़ से रोहन भी उठ गया।

दोनों झटपट प्रतियोगिता की तैयारियों में जुट गए। अपने कागज़, कार्ड आदि संभाल कर बैग में रखे। तैयार होकर नाश्ते के बाद ही मैदान पर पहुंचना था।

रोहन के जागते ही कबीर बोला - क्यों रे, मुझे उल्लू बना गया रात को? कबीर ने रोहन से शिकायत की तो रोहन बुद्धू की तरह उसकी शक्ल देखने लगा।


- क्या हुआ? मैंने क्या किया? रोहन बोला।

- साले, न जाने क्या- क्या बोल कर यहां से गायब हो गया और यहां छोटे साहब को भेज दिया? कहां सोया रात को??

रोहन हैरान रह गया। उसे कुछ समझ में नहीं आया। उसे सचमुच कुछ पता नहीं था। वह आश्चर्य से बोला- क्या? छोटे साहब रात को यहां आए थे???

ये सुन कर रोहन चकित रह गया। उसे लगा कि कहीं उसकी कोई शिकायत तो नहीं हो गई कि रात को वो अपने कमरे पर नहीं था?


रोहन की बात सुनकर कबीर हैरत में पड़ गया। उसने सोचा - तो क्या सचमुच रोहन को कुछ नहीं पता? तब उसने बेकार ही बता दिया। वो तो समझ रहा था कि छोटे साहब को यहां भेजने की प्लानिंग रोहन की ही थी। पर इसे तो कुछ भी नहीं पता।

कबीर रोहन को हक्का- बक्का छोड़ कर वाशरूम में घुस गया।

रोहन ने एक ज़ोरदार अंगड़ाई ली और फिर से सो गया। उसके पास अभी कुछ समय और था। नाश्ते के लिए नौ बजे पहुंचना था।

प्रतियोगिता ग्यारह बजे से थी।

दोनों की ही नींद रात को ठीक से पूरी नहीं हो पाई थी पर फिर भी नहा कर दोनों तरोताजा हो गए। आज ड्रेस कोड भी पूर्व निर्धारित था। दोनों को सफ़ेद कपड़े ही पहनने थे।

सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद हॉफ पैंट और सफ़ेद जूतों में चमचमा रहा था कबीर। चेहरे पर भी आज एक गज़ब की चमक थी। जैसे बदन को कोई खुफिया टॉनिक मिल गया हो।

रोहन वाशरूम से निकला तो कबीर को देख कर ठिठक गया।

- बॉस, नाश्ते के लिए चलना है न, फिर अभी से सफ़ेद हो गए ? कहीं कोई दाग - धब्बा लग गया तो? रोहन ने कहा।

कबीर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - किस्मत में होगा तो जिंदगी संवर ही जाएगी। कोई दाग नहीं लगेगा।

- मैं तो ऐसा जोखिम नहीं लूंगा। नाश्ता तो तबीयत से ही करना है। कपड़े बाद में आकर बदलूंगा। रोहन कुछ लापरवाही से बोला और रंगीन टी शर्ट पहनने लगा। उसने पैरो में भी सैंडिल ही डाल लिए।

आज कैफेटेरिया का नज़ारा भी देखने लायक था। ज्यादातर खिलाड़ी सज संवर कर ही वहां आए थे। बर्तनों की खनक और व्यंजनों की महक मिल कर वातावरण को और भी पुरकशिश बना रही थीं।

लोग अपनी अपनी टोलियों में एक दूसरे को शुभकामनाएं और दुआएं दे रहे थे।

कबीर और रोहन ने इस समय हल्का ही नाश्ता लिया। अब भी लगभग पौन घंटे का समय बाकी था। कमरे में आकर रोहन अब आराम से तैयार होने लगा। कबीर इधर - उधर चहल- कदमी सी करता रहा।


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