सदैव सकारात्मक रहे
सदैव सकारात्मक रहे


डियर डायरी, तो आज है लॉकडाउन का दूसरा दिन। तो कैसा रहा आप सभी का लॉकडाउन का दूसरा दिन.? मेरे लिये तो कल एक अलग ही अनुभव था। ये दूसरा दिन मेरे लिए अच्छा भी था और बुरा भी। बुरा इसलिए क्योंकि मेरे पतिदेव जिन्हें न्यूज़ से बहुत लगाव है उनका घर पर ज्यादातर समय टीवी के सामने बैठकर सिर्फ न्यूज़ देखने में गुजरता है। कभी टीवी कोई और देख रहा हो तो मोबाइल पर न्यूज़। आजकर चारो तरफ सिर्फ कोरोना कोरोना की ही चर्चा है चाहे न्यूज़ चैनल हो, फ़ेसबूक, इंस्टाग्राम या कोई और सोशल साइट्स। सभी जगह कोरोना ही चल रहा है। तो बात यह है कि जब से इस वायरस ने फैलना शुरू किया है तब से मेरे पति इसकी एक एक छोटी से छोटी खबर से अपडेट थे और जब से यह भारत मे फैला वो और इसकी अपडेट रखने लगे। कहाँ कितने मरीज है, रोज नए कितने मामले आ रहे है, कितनी तेजी से ये बढ़ रहा है, वगैरह वगैरह। अब आप सोच रहे होंगे इसमे गलत क्या है ये तो अच्छी बात है।
तो भई यहां तक तो बात ठीक थी मगर इसका मेरे पति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वो हर एक घंटे में आंकड़े चेक करते कि फलाना देश मे मरने वाले अब कितने हो गए, कितने रोज नए केस आ रहे है, इसका परिणाम कितना भयानक है। इन सबसे वह इतने प्रभावित रहने लगे कि उनके दिमाग मे बस वही वही घुमने लगा। उनसे जब भी बात होती सिर्फ कोरोना की ही चर्चा होती।
घर परिवार रिश्तेदारों को जब भी फोन करते एक भी बात कोरोना से हटकर न होती। चूंकि मेरे पति एक बैंक अधिकारी है इसलिए उन्हें लॉक डाउन की दशा में भी बैंक जाना पड़ता था। उनके दिमाग मे ये डर कर गया कि कहि वो भी इसकी चपेट में न आ जाये। उन्हें हो गया तो परिवार का क्या होगा। वो इतने ज्यादा तनाव में आ गए कि रात को ठीक से नींद भी न ले पाते। रात को नींद खुलती तो चिंता में घण्टो जागते रहते। मैंने उन्हें इस परिस्थिति से उबारने की भी बहुत कोशिश की, की हम जरूरी सावधानी तो रख ही रहे है फिर घबराने की जरूरत नही है लेकिन जब तक कोई अपनी इच्छाशक्ति कोई काम मे न दिखाए तो सफल नही हो सकता। और कल इसी बात को लेकर मेरी उनसे फिर बहस हो गई थी इसलिए मैने कहा कि कल का दिन बुरा रहा।
अब अच्छी बात यह है कि कल ही उन्हें यह एहसास हो गया कि जो चीज हुई ही नही उसके बारे में सोच सोच कर क्यों परेशान होना। फालतू चीजे सोच कर मैं अपना आज भी खराब कर रहा हु। आखिरकार उन्होंने कल स्वयं निर्णय लिया कि अब वो इस विषय मे ज्यादा नही सोचेंगे और सकारात्मक रहेंगे। हम दोनों ने यह निर्णय लिया कि आपस मे भी कोरोना के बारे में चर्चा नही करेंगे। सबसे पहले उन्होंने कुछ दिनों के लिए फ़ेसबूक और इंस्टाग्राम से दूरी बना ली है, दो दिनों से उन्होंने न्यूज़ भी नही देखी। कल हम दोनों ने बहुत दिनों बाद साथ मे दो कॉमेडी मूवी देखी। दोस्तो नकारात्मक सोच का परिणाम कितना घातक होता है ये आप सब जानते है। सोशल साइट्स, मीडिया आदि से हमे उतना ही कनेक्ट रहना चाहिये जब तक वो हमारे निजी जीवन को प्रभावित न करे। जो चीज हुई ही नही उसके बारे में सोच सोच कर क्यों टेंशन लेना। अगर हम काँटे ही काँटे देखते रहे तो फूल भी कांटे लगने लगते है। कोई भी आदत चाहे वह अच्छी हो या बुरी जब हमारे जीवन को प्रभावित करने लगे तो उससे दूरी बना लेना ही ठीक होता है।