सच्ची खुशी
सच्ची खुशी
घर में खुशी का माहौल था। मंद मंद स्वर में राखी के गीत बज रहें थे। रसोई से पकवानों की मीठी खुशबू आरही थी। मैं अखबार पढ़ रहा था। एकाएक मेरी नजर काम करने वाली बाई पर पड़ी वह बहुत उदास थी उसकी आँखो में बार बार आँसू आते जिन्हे वह अपने पल्लू से पूछ लेती मुझ से देखा ना गया मेने कहा मंजू वो बोली जी साहब मेने कहा आज खुशी के दिन तुम उदास तुम्हारी आंखों मैं आँसू क्या बात है , उसकी आँखे बरस गई आँसू पोछते हुए बोली साहब इस लाकडाऊन के चलते हमारा भाई राखी बंधवाने नहीँ आएगा। इसलिए मन उदास है। मैंने कहा मंजू इधर आओ और अपना हाथ उसकी और बढ़ा दिया।
कुछ दूर खड़ी पत्नी सब सुन रही थी ,उसकी भी आँखे भरी हुई थी ,वह आरती की थाली और राखी लेकर आई।
मंजू की आँखे बरस रही थी। उसने मेरे माथे पर तिलक लगाया आरती की और राखी बाँध दी। फिर मेरे कंधे से भईया कह कर चिपट गई। मेरी भी आँखे गीली होगई थी। मेने रूमाल से उसके आँसू पूछे फिर हमने एक साथ खाना खाया पत्नी ने उसे एक साड़ी और कुछ रुपये दिये वो बोली,
नहीं मेम साहब इसकी क्या जरूरत पत्नी बोली मेम साहब नहीं भाभी, यह कह कर उसे गले से लगा लिया।