कर्ज ओर फर्ज
कर्ज ओर फर्ज
सेठ रामदयाल अपने चेंबर में अभी आए हीं थे तभी मिल के गेट से फोन आया सर मिस्टर क्रांति I.S.अफसर आपसे मिलने आए है। सेठजी ने कुछ सोचा ओर बोले भेज दो। कुछ हीं देर में एक सुंदर सभ्य युवक उनके सामने खड़ा था। वो स्वागत में खड़े हो गए तो युवक ने झुककर उनके पैर छुए। वो बोले सर ये आप क्या कर रहे। सर नहीं बेटा बोलिये, अंकल !
"मेंने आपको पहचाना नहीं" सेठजी बोले।अंकल मेरे पिता शंभू सिह आपके दरबान थे। ओर दो लाख का चेक सेठजी के सामने रख दिया। ये क्या?पूछा सेठजी ने। अंकल आज मैं जो भी हूँ आपकी दया से हूँ| पिताजी कॊ अपने दो लाख रुपये मेरी पढ़ाई के लिये दिया था।
नहीं तो मैं भी कहीं चपरासी की नौकरी कर रहा होता। सेठजी की नजरों के सामने पाँच साल पुराना वाकिया चलचित्र की तरह घुमने लगा।सेठ जी दयालु व्यक्ति थे| घमंड नहीं था।अपने सभी मजदूर स्टाफ से अच्छा व्यवहार करते उनके सुख दुःख का हमेशा ख्याल रखते थे। शंभू उनका पुराना दरबान था।सेठजी उसकी बहूत इज्जत करते थे। वो उम्रदराज व्यक्ति था। एक दिन सेठजी ने अपने चेंबर में बुलाया।बोले मैं कई दिन से देख रहा हूँ,तुम परेशान चिंतित रहते हो। स्वास्थ्य तो ठीक है| कुछ दिन आराम करलो शंभू की आँखों में पानी छलक गया।वो आँखे पोंछते हुए बोला ! नहीं मालिक तबीयत ठीक है।बस जरा लड़के की पढ़ाई की चिंता सताती है। मेंरा एक लड़का है क्रांति पढ़ाई में तेज है।अब दो साल की पढ़ाई बाकी है। उसका सपना है I.S.बनने का उसका सपना मैं पूरा करने में असमर्थ हूँ।दो लाख रुपये चाहिये,आगे पढ़ाई के लिये यही परेशानी है। ओह! तो तुम्हें बताना चाहिये।चिंता करने से क्या फायदा। सेठजी ने दो लाख का चेक शंभू कॊ दे दिया। शंभू की आँखें भीग गई।
वह उनके चरणों में झुक गया। सेठजी ने उसे उठाया - बोले लड़के कॊ पढ़ाओ,यदि ओर जरूरत पड़े तो बोल देना। शंभू बोला मालिक आपका उपकार मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। मैं आपका ये कर्ज जरूर उतारूंगा। सेठजी ने हंसते कहा चिंता मत करो। फिर कुछ दिन
शंभू बीमारी में मर गया। शंभू की पत्नी अपने बेटे के साथ चली गई। आज इतने दिन बाद उसका बेटा
एक अफसर के रूप में उनके सामने था। सेठजी उससे बहूत प्रभावित हुए। बोले- ये चेक अभी तुम रखो। शाम कॊ माँ के साथ बंगले पर आना,रात का डिनर हम साथ में लेंगे।क्रांति बोला ठीक है उनके पैर छू कर वो शाम कॊ आने का वादा कर चला गया। सेठजी की एक लड़की थी रीता।
उसकी शादी के लिये परेशान थे। उन्हे क्रांति अच्छा लगा। वो परिवार के सदस्यों से उसे मिलाना चाहते थे। रीता कॊ यदि वो अछा लगा तो वो उसकी शादी क्रांति से कर देंगे।शाम कॊ क्रांति माँ के साथ आया सेठजी ओर उनके परिवार सभी कॊ वो पसंद आया रीता भी बड़ी उम्मीद भरी नजरों से उसे देख रही थी।
सबकी पसंद कॊ जानकर सेठजी ने क्रांति की माँ से रीता की शादी क्रांति से करने की इच्छा जाहिर की।
माँ कॊ बहुत खुशी हुई रीता जैसी लड़की उनकी बहू बनेगी। क्रांति की भी खुशी का ठिकाना नहीं था।
वो बड़ी उम्मीद से रीता कॊ देखनें लगा। रीता भी उसे देख कर मुस्कराई,और शरमा कर नजरें झुका ली।क्रांति ने चेक जेब से निकाल कर सेठजी कॊ देना चाहा उनहोने लेने से इंकार कर दिया बोले तुम्हारी यही बातें हमें आकर्षित कर गई। तुम पिता के प्रति अपने फर्ज कॊ नहीं भूले।