दोस्त
दोस्त
अब्दुल ओर राम दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी । दोनों के परिवार वाले भी उनकी दोस्ती से खुश रहते थे ।दिवाली दशहरा में राम के नये कपड़े आते तो अब्दुल के भी साथ में आते ईद में अब्दुल के कपड़े बनते तो राम के भी बनते । दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती कोरोना काल में राम के पिताजी कोरोना की चपेट में आ जाते हैं। हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु होजाती है। राम घबरा जाता है वह क्या करे उसने सभी रिश्तेदारों को पड़ोसियों को फोन किया परंतु सबने आने से मना कर दिया । राम को समझ में नही आरहा था वह क्या करे । तभी उसे अब्दुल का ख्याल आया उसने तुरंत फोन किया ।"ओह ये तो बहुत गलत हुआ तुम घबराओ मत म़ैं पापा के साथ तुरंत पहुँचता हूँ ।" थोड़ी देर में अब्दुल अपने पिताचाचा ओर भाई के साथ हॉस्पिटल में आता है ।
अब्दुल के पिता ने राम को सांत्वना दी ओर अस्पताल से राम के पिता की डेथ बॉडी लेकर श्मशान जाकर अंतिम किर्या करवाई । राम रो रहा था अब्दुल के पिता ने राम को छाती से लगा लिया ओर बोले "उस रब के आगे किसी की नही चलती तुम्हारे सर से पिता का साया तो उठ गया है उसकी पूर्ति तो कोई नही कर सकता परंतु जब तक मेरे शरीर में प्राण है तुम्हारे सर पर इस चाचा का साया रहेगा ।तुम चिंता मत करो मैं ओर मेरा परिवार हमेशा तुम्हारे साथ है ।"
राम अब्दुल से चिपट कर सुबक रहा था ।जिसे भी इस बात का पता चला उसने ही इस दोस्ती का लोहा मान लिया । सच्चा दोस्त वही होता है दोस्तो जो हर सुख दुख में साथ निभाए ॥
