Nirdosh Jain

Classics

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Nirdosh Jain

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घमंड

घमंड

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महेश एक बड़े घर का लड़का था उसके पिता एक बड़े व्यापारी थे।महेश कक्षा पांच का छात्र था।भोलू भी उसी स्कूल ओर उसी कक्षा में पढ़ता था वो गरीब परिवार का लड़का था।उसके पिता महेश के यहां ड्राइवर की नौकरी करते थे वो रोज लक्जरी गाड़ी से महेश को स्कूल छोड़ने लेने जाते थे।भोलू ओर उसका परिवार महेश के बंगले के बगल में बने सर्वेंट क्वाटर में रहते थे

महेश भोलू को बड़ी हीन भावना से देखता उसका व्यवहार भी अच्छा नहीं था हमेशा उसका मजाक उड़ाता उसे अपनी अमीरी पर घमंड था महेश ओर भोलू एक स्कूल एक कक्षा के छात्र थे महेश रोज गाड़ी से स्कूल जाता भोलू को अपने साथ नहीं ले जाता भोलू पैदल कभी साइकिल से आता जाता था।

एक दिन महेश को किरकेट खेलते समय माथे में चोट लग गई माथे से खून बहने लगा उसे अस्पताल में भर्ती करा कर उसके पापा को खबर की पापा मम्मी घबराते हुए अस्पताल पहुंचे भोलू के पापा भी साथ थे।महेश का खून ज्यादा निकल गया था डाक्टर ने उन्हें खून का इंतजाम करने को कहा अस्पताल में महेश के ग्रुप का खून नहीं था महेश के पापा मम्मी का ग्रुप भी महेश के ब्लड ग्रुप से मेचनहीं किया वो घबरा रहे थे महेश की जिंदगी बचाने के लिये तुरंत खून की जरूरत थी।

भोलू के पिता को जब पता चला तो वो बोले मालिक शायद मेरा ग्रुप छोटे मालिक के ग्रुप से मिल जाए भोलू के पापा का ग्रुप महेश से मिल गया उनका खून महेश को चढ़ा दिया इस से उसकी जान बच गई।

महेश के पिता ने उन्हें गले से लगा लिया बोले आज तुमने जो अहसान किया वो हम कभी नहीं भूल पाएंगे उन्होने एक लाख रुपये उन्हें देने चाहे उन्होने मना कर दिया बोले साहब मेने भोलू ओर छोटे साहब को कभी

अलग नहीं समझा ओर आपका तो मैंने नमक खाया है नमक का कुछ कर्ज अदा किया है साहब।महेश सारी बात सुन रहा था उसकी आंखे भर आई उसके पिता ने भोलू के पिता को गले से लगा लिया।

अस्पताल से घर लौटने पर महेश भोलू से मिलने उसके घर गया उसे लगाकर अपनी गलतियों की माफी मांगी। उसका अहम घमंड खत्म होगया।

अब दोनों अच्छे दोस्त थे साथ साथ स्कूल जाते ओर आते थे।


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