STORYMIRROR

Author Anju Kanwar

Abstract

3  

Author Anju Kanwar

Abstract

सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती

4 mins
132

        

                     

"ओए ए ए रागिनी क्या सोच रही है खड़े खड़े चल आजा खाना खा ले...रागिनी की मां ने कहा"

 आई मां.. रागिनी ने ये कहकर गहरी सांस ली..

सोचने लगी..वक्त कितनी जल्दी बीत जाता है ना किसी को कोई खबर नहीं होती..कुछ लम्हे ऐसे होते है जिन्हे जीवन में कैद करना चाहते हैं, परन्तु वो हाथो से रेत को तरह वक्त निकाल जाता है..चाहे कितनी भी कोशिश करो रुकते नहीं है....स्कूल से कॉलेज आते आते..बीच का जीवन जीने के लिए होता है..ये वो वक्त होता है जहां दोस्त..प्यार सब मिल जाते हैं.

कुछ मिल जाते है तो कुछ बिछड़ जाते है....मैंने भी स्कूल से कॉलेज वाला सफर पूरा किया था...

कॉलेज के दिन कितने अच्छे होते हैं ना जहां लोगो को अच्छे ओर बुरे लोगो के जानने का मौका मिल जाता है..ओर भविष्य की फिकर भी होने लगती है......


मुझे आज भी याद है जब स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिला लेने कॉलेज पहुंची...सब अलग था मेरे लिए अलग दुनिया...

"कणिका "हा कणिका ही ऐसी दोस्त थी मेरी जो दाखिले के मिली थी जिसने मेरी बहुत मदद की..मदद करते करते बहुत गहरी दोस्ती हो गई थी उससे...

घर से कॉलेज दूरी पर होने के कारण मुझे हॉस्टल में रहना पड़ा...मै सोचती को अकेली कैसे रहूंगी..पर कणिका भी मेरे साथ मेरे कमरे में रहने लगी..3, लड़कियां भी हमांरे कमरे में रहने लगी उनसे भी हमांरी अच्छी दोस्ती हो गई थी..अब हम कुल मिलके 5 लड़कियां थी..हमांरा अलग ही ग्रुप था... हम पूरे दिन बहुत मोज मस्ती किया करते थे..

मांनसून शुरू हो गया था...बारिश ज्यादा होने के वजह से कॉलेज की कक्षाएं बंद हो गई थी..मांनसून में बरसात में हमने पढ़ना छोड़ कर लेट लतीफ सुरु कर दिए थे...

देर रात तक हमांरा बाते करना.. जमकर हुडदंग मचाना..शाम को सड़क पर गप्पे मांरना..वह के भुने हुए मक्के की सुगंध हमे अपनी ओर खींच लेती थी..हम गरमांगरम मक्के चटपटे चाट खाके आते..पर शाम को जल्दी आना पड़ता वरना हमे हॉस्टल का वार्डन अन्दर जाने नहीं देता था...कणिका तो ऐसी थी अगर वार्डन हमें अंदर जाने नहीं देता तो..झगड़ बैठती..लोहे के दरवाजों के सरियो में बची जगह से निकलने की कोशिश करती...

हमे सबको बहुत हसी आती...तालियां बजा बजा कर ठहाके मांरते थे....


एक दिन बरसात के बाद हम बाहर निकले....कणिका ने मेरे को कोहनी का हल्का धक्का मर कर बोला...

रागिनी देख " वो लड़का तुझे रोजना देखता है..हॉस्टल तक पीछे आता था बाइक से..

मैंने कहा " अरे कणिका पागल है क्या..मुझे कोई नहीं दिखता ओर मै फालतू में ध्यान नहीं देती ऐसी चीजे पर..

2,3 दिन बाद हम घूमने बाहर निकले ..एक लड़का अचानक से मेरे पास आया और प्रपोज किया मुझे कुछ समझ नहीं आया..किसी को जानती नहीं तो बेवजह ये सब...पर सारी दोस्तों ने हुल्लड़ मचा दिया..रागिनी " हा " बोल दे रागिनी " हा " बोल तालियां बजाने लगी..

ना कहते हुए भी मैंने उसे हा कह दिया" अब धीरे धीरे हमांरा सिलसिला ऐसे ही चलता रहा..हम बाहर घूमने जाते..सारी दोस्त साथ रहती ओर मुझे उस लड़के के साथ बैठा देती..ना चाहते हुए भी मुझे बात करनी पड़ती..धीरे धीरे लगतार ऐसा हुआ कि...

 मुझे महसूस होने लगा कि हमांरा ग्रुप टूटने लगा था..सारी सहेलियां मुझसे ओर उन सबसे दूर होने लगी थी..आजकल वो मस्तिया ओर वो ठहाके नहीं होते थे..हॉस्टल के कमरे की बिजली आजकल जल्दी बंद होने लग जाती थी..बाहर घूमने भी कोई नहीं निकलता था...मेरे भीतर ही भीतर लहरों का तूफान उमड़ रहा था..मै बात करने की कोशिश करती वो ना जाने कही ना कहीं व्यस्त हो जाती...

.मेरे चेहरे पर उदासी छा रही थी...पर अगर देर ना हो जाए तो मुझे कुछ फैसले लेने हैं.

इससे पहले कि सारे रिश्ते टूट जाए...मै शाम को अकेले बाहर गई ओर उस लड़के से मिली जिसकी वजह से मेरे अपने रिश्ते को मजबूती से बनाए थे..

 मैंने कहा " मुझे मांफ़ कर देना पर मै इस रिश्ते को ओर ना निभा पाऊ गी.. अब तक रिश्ता इसलिए निभाया की मेरे दोस्तो की खुशी थी इसमें...पर वो सब हो मुझसे दूर होने लग गई तो ये रिश्ता कैसा है..वो रिश्ता मैंने मजबूती से विश्वास की डोर से बनाया था..ओर ये रिश्ते में तो मै आपको 2 दिन से जानती हूं...

उस लड़के को शायद मेरी बाते समझ आ गई थी..उसने हां कहके सर हिला दिया..मेरे मन में आस जगी दोस्ती पाने की...मै वहां से भागी हुई हॉस्टल की तरफ आई..कमरे में घुसते ही मैंने..मैंने कणिका को गले लगाकर रोने लगी मुझे मांफ़ कर दो मेरी वजह से दोस्ती टूट गई हमांरी..

सारी दोस्त मेरे पास आ गई थी वो बोली अरे र रागिनी हम अलग कहा हुए थे हम तो चाहते थे तुम उस लड़के के साथ खुश रहो..इसलिए हम तुमसे दूर हो गए थे... पर बाद में हमे लगा तुम ये रिश्ता जबरदस्ती निभा रही हो हमांरी खुशी के लिए...हमे मांफ़ करदो रागिनी कहीं ना कहीं हम सब की गलती थी..जो दोस्ती जैसे मजबूत रिश्ते को तोड़ने की कोशिश की...।।

हम सबने लगे लगा लिया एक दूसरे को...हमांरे शोर शरबो ओर ठहाको से फिर से हमांरा हॉस्टल गूजने लगा था...हमे ये कॉलेज वाला मांनसून हमेशा याद रहेगा..हमने दोस्ती को वापस पा लिया था....

गर्मियों की छुट्टियों में घर थी..अब मांनसून आने वाला है फिर से हमांरा हॉस्टल ओर हम मांनसून कि बरसात में भीग जाएगे....

"अरे री र रागिनी बिटिया आजाओं जल्दी खा लो खाना ठंडा हो रहा है".....रागिनी के पापा ने कहा!

"धतत्त्त त त ...मै कितनी से सोच रही थी मांनसून कि बरसात में......   हाथ धोकर आती हूं पापा"

      



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract