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Anju Kanwar

Inspirational

4.8  

Anju Kanwar

Inspirational

स्त्री का संघर्ष

स्त्री का संघर्ष

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आज ऑफिस में बहुत लेट हो गया था। आते -आते रात होने लगी हमेशा तो जल्दी आ जाता हूं। ना जाने आज क्यों काम ज्यादा बढ़ गया था? ऑफिस से निकलते ही पार्किंग में खड़ी गाड़ी निकाली और गाडी स्टार्ट की।

।आज मौसम सुहावना हो रहा था, रात को हवाएं ठंडी चल रही थी। शायद बरसात होने वाली थी, आगे जाकर बरसात होने लगी मैंं गाड़ी चलाते रहा। 

अचानक से गाडी बंद हो गईं, मैंं बहुत परेशान हुआ इतनी भारी बरसात में घर कैसे पहुचुगा।

मैंंने बहुत कोशिश की गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। हार कर मैंंने गाड़ी का दरवाजा खोला और मदद के लिए ढूंढने लगा लेकिन यह तो सुनसान रास्ता था। यहां गाड़ियां तो क्या कोई इंसान ही नहीं दिख रहा था। मेरा गुस्से से माथा ठनक रहा था, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था फोन करना चाहा देखा तो फोन भी बंद था !

मैंंने इधर-उधर घूम के सब देखा लेकिन कोई मददगार नहीं मिला

मैंं गाड़ी में बैठ गया अचानक से टकटक आवाज आई मैंंने देखा तो कोई गाड़ी के पास खड़ा था।

मैंंने शीशा नीचे किया तो एक लड़की बरसात में भीगी हुई थी उसने साड़ी पहनी हुई थी वह शायद पूरी तरह भीग चुकी थी हो सकता है वह भी मेरी तरह मदद मांगना चाह रही थी मैंंने देरी ना लगाते हुए उनसे पूछा आपको मदद चाहिए उसने कहा नहीं मुझे आपकी मदद करनी है।

मैंं थोड़ा अचंभित हुआ मैंंने कहा" मेरी " उसने कहा हां।

मेरा पास ही मे घर है और मैंं यहां बीच रास्ते में लोगों की मदद करती हूं , और आपकी गाडी भी खराब हो चुकी है और यहां कोई मददगार भी नहीं है। 

अगर आपको कोई परेशानी ना हो तो आप मेरे साथ मेरे घर चलिए !

बरसात खत्म होने के बाद गाडी ठीक करवा के घर चले जाना। मैंंने थोड़ा शक जताया फिर लगा इतनी बरसात में घर नहीं जा सकता शायद ! मुझे यही करना होगा मैंंने गाड़ी का दरवाजा खोला। मैंंने गाड़ी लोक किया और कहा चलिए।

मैंंने उसे ठीक से नहीं देखा था अब वह मेरे आगे चल रही थी वह लड़की भीगी भागी सी जुल्फों को झटका रहे थी। वो आगे आगे चलने लगी मैंं उसके पीछे पीछे।

वह साड़ी में इठलाती चल रही थी। हाथों और पैरों से पानी की बूंदों से खेलती जा रही थी,,। मैंंने पूछा "कितनी और देर लगेगी " उसने कहा ' बस थोड़ा ही समय लगेगा 'पर मुझे आसपास कोई घर नहीं दिखा,। थोड़ा दूर जाने के बाद एक छोटा सा घर नजर आया हम दोनों वहां चले गए लड़की ने घर का दरवाजा खोला और बोला चले आइए। मुझे हिचकिचाहट हो रही थी डर भी लग रहा था।

ऐसे अनजान किसी लड़की के साथ अचानक से कैसे जाऊं घर के अंदर। कहीं यह फिल्मों की तरह भूतिया लड़की तो नहीं मेरे मन में हजारों सवाल खड़े थे आगे क्या हुआ अगर जानना चाहते हैं कि वह लड़की भीगी भागी सी भूतिया लड़की निकली या कोई मददगार तो उसने दरवाजा खोला। बोला आ जाइए अंदर।

मैं जैसे जैसे डर के मारे अंदर जाने की कोशिश करते हुए कदम बड़ाए।

घर में प्रवेश करते ही मैंंने चारो तरफ देखा।मैंंने सोचा कहीं डाकू छूपे हो और मुझे लूट कर मार से।मेरे मन में ना जाने कोन कोन सी तस्वीर और लोगो के चरित्र सामने आ रहे थे।मैं कई बार काल्पनिक दुनिया में खो जाता शायद ऐसे हो गया तो।उसने काल्पनिक दुनिया से हटते ही कहा " आप यहां बैठ जाइए।भीग गए आप। मैं कपड़े लाती हूं शायद आपको अा जाए।

उसने आकर मुझे कपड़े थमा दिए। मैंंने कपड़े देखे मुझे लगा एकदम ढीले आने वाले है।पर करता भी क्या।पहनने थे भीगा हुआ तो बैठ नहीं सकता।मैं कपड़े बदल कर आया, सच में वो कपड़े ढीले थे मैंंने कोशिश की कपड़ों को संभालने की।फिर सोचा कहीं गलती से गिर ना जाऊं कोई देख लेगा तो शर्मिंदगी महसूस होगी।मैं जैसे तैसे करके वहां पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।वो लड़की आई बोली " चाय ले ली जिए।उसने चाय का प्याला मेरे हाथो में थमा दिया।

कँपकँपाते हुए हाथो से मैंंने प्याला थामा। होटों से सटाकर शोर करते हुए पीने लगा। कापने की वजह से मेरे प्याले की आवाज़ ग्गड़ गड़ गड आरी थी।जैसे अभी छटकर नीचे जमीन पर गिरने वाला है।मेरा डर बढ़ते जा रहा था। कहीं चाय में जहर तो नहीं मिला हुआ। मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। खाली प्याला पास रखी मेज पर रख दिया।सोचा हो सकता है जहर का असर धीरे धीरे हो।मैं गला पकड़ के बैठ गया क्या पता कब असर हो मेरी सांसे रुकने लगे।

बहुत देर हो चुकी थी। कुछ हुआ ही नहीं।मैंंने धीरे से अपना हाथ हटा लिया हो। ओर सोचा हो सकता है चाय में जहर ना हो।वो गला दबा कर या पेट में छुरी घोप कर हत्या कर दे।मैंंने आस पास चारो तरफ देखा वो लड़की कहीं नजर नहीं आती थी। कहा गायब हो गई थी वो सच में भूतनी तो नहीं थी। मैंंने दूसरे कमरे झाक कर देखा।मुझे एहसास हुआ मैंंने नजर दुबारा फिराई। कमरे की बालकनी में कोई खड़ा था। वो वहीं लड़की थी।मेरे कदमों का अहसास हुआ। उसने पीछे मुडकर देखा।बोली "अरे आप यहां। चाय खत्म हो गई क्या आपकी।

मैंंने कहा " हा हो गई मैं आपको पूरे घर में ढूंढ रहा आप यहां। जैसे ही उसने बोला मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे।आगे बढ़ने के लिए। वो लड़की बोली " डरिए मत" आजाइए।

मैं उसके बगल में खड़ा हो गया।वो मुझे मुस्कुराकर देख रही थी।

सुनिए। मैं भूतनी या लुटेरी लड़की नहीं हूं।आप जैसा समझ रहे हो।मैं वैसी नहीं हूं।

मैं अचंभित हो कर उसकी तरफ देखा। कहा " माफ़ करना मैंंने गलत समझा।

अरे नहीं नहीं। माफी मत मागिए। यहां सब मुझे चुडैल या भूतनी ही समझते है।उसने हसते हुए कहा।।

मैंंने अपना हाथ बढ़ाया।मेरा नाम मोहित कुमार है।

 और आपका। उसने बिना हाथ बढ़ाए ही कहा " मेरा नंदिनी। बहुत ही अच्छा नाम है आपका।

मैंंने अपना बढ़ाया हुआ हाथ पीछे कर लिया।

 आप इस घर में अकेले ही रहते हो। डर नहीं लगता आपको मैंंने कहा"

उसकी हसी निकल गई। भूतनी को किसी से डर नहीं लगता। मैंंने कहा मजाक अच्छा करते हो आप।

अब बताइए आप अकेले रहते हो यहां।

हा मैं ओर मेरी तनहाई। यहां अकेले रहते है। यह आसपास अगर किसी को मदद करनी होती है।तो मैं मदद करती हूं। मैं भी सब्जी लाने बाजार जा रही थी।परन्तु बीच में बारिश शुरू हो गई।मैं रास्ते में रुक गई।

तभी मैंंने वहां आपकी गाड़ी देखीं।अपने शायद मुझे नहीं देखा।पर मैंंने आपको देखा था।

आप वापस गाड़ी में बैठ गए थे इसलिए मुझे आना पड़ा।

अच्छा अच्छा।मैंंने आपको भूत समझ लिया था।वैसे धन्यवाद आपका मदद के लिए वरना या तो मैं उस गाड़ी में रहता पूरी रात।या बरसात में भीगता हुआ घर जाता।

 कोई बात नहीं धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। मैंं तो बस यहां मदद करती हूं।धन्यवाद के लिए नहीं।मुस्कुराते हुए उसने कहा "

आपकी कोई तो वजह होगी। जो यहां रह रही हो।

हा वजह तो है।इसके पीछे भी कहानी है।

तो सुना दी जिए क्या कहानी है आपकी मैंंने कहा"

"नहीं नहीं।उसने कहा"

बता दी जिए।शायद हमारी मुलाकात कभी ना हो।अजनबी होने के नाते बता दी जिए। मैंंने कहा"

अच्छा ठीक है। मेरी कहानी बचपन से ही शुरू हो गई थी।

जब मैं 10साल की थी।आज भी याद है मुझे हम खुशी खुशी गाव में रहते थे। हम ज्यादा अमीर तो नहीं थे पर अपने घर का गुजर बसर हो जाता था।पापा वहीं मुनीम का काम करते थे।

 ओर मा घर का काम करते थे।मैं बड़ी थी और मेरा भाई छोटा था।

मेरा बचपन उही हसी खुशी से गुजर रहा था।एक दिन स्कूल से लौटते समय।एक दुकान पर रखी मिठाई से मेरा मन ललचा गया था।पर पैसे ना होने के कारण मैं निराश हो गई थी।

दुकानवाले ने मेरे कंधे पर हाथ रखा।बोला बेटा मिठाई चाहिए।

मैंंने कहा" हा पर पैसे नहीं है मेरे पास काका"

दुकानवाले ने कहा " कोई नहीं बेटा मैं ऐसे ही खिला दुगा बिना पैसे लिए।

 उसने मेरा हाथ पकड़ा।ओर अंदर ले गया और मेरे साथ बलात्कार किया।मैं रोई चीखी चिलाई।पर कोई सुनने वाला नहीं था।बाद में उसने मुझे बाहर छोड़ दिया।

घर आने के बाद मैं गुमसुम रहने लगी। खाना भी छोड़ दिया।पढ़ाई का भी मन नहीं करता था।

 एक दिन अचानक मा ने पूछा "बेटा क्या बात है आजकल गुमसुम रहती हो।कोई बात है तो बताओ"

 मैंंने रोते हुए बोला उसने उसने ना गलत काम किया मेरे साथ।

उसने कोन बेटा" बताओ कोन है।मा ने कहा 

दुकानवाले है ना वो मा। मैंंने कहा"

मा एक दम से गुस्सा हो कर बोली।तुझे क्या जरूरत थी जाने की वहा।वो पैसे वाले है।हम कुछ बोल भी नहीं पाएंगे उनको। तू ना तेरे बाबा को मत बताना।वरना गुस्सा करेगे वो।

मैं डर के मारे चुप हो गई।

समाज में लड़कियों को कितना कुछ सहन करना पड़ता है।ओर अगर कोई कुछ गलत करता है तो बता भी नहीं सकते।कैसा ओर कोनसा न्याय है यहां का।

मैं चुप थी पर में भी बहुत सवाल थे।मेरा बचपना ऐसे गलत इंसानों के बीच चला गया।

मैं जिंदा लाश की तरह घुटती रही।पर मेरी मा से मेरी खामोशियों देखीं नहीं गई।

कुछ दिन बाद मेरा हाथ पकड़ा और मुझे पिताजी के पास ले गई।उनको सब कुछ बता दिया।पिताजी को ये सब सुनकर पैरो के नीचे मानो जमीन खिसक गई हो।

उन दोनों के बहुत बहस हुई मुझे लेकर।मा ने मेरा हाथ पकड़ा और दुकान वाले के पास ले गई।

ओर कहा।तुझे शर्म नहीं आती तेरी बेटी जैसे है।ओर तेरी बेटी की उम्र की होगी।ओर ना जाने क्या क्या कहा

उसको।वो सुनता रहा ओर एक दम से सामने आकर खड़ा होगया बोला। अरे गांव वालो सुनो।ओर आकर देखो।कैसे कैसे इल्जाम लगा रही है। सारे गांव वाले वहा आकर इकठ्ठा हो गए।

वो दुकान वाला चिलाचिला कर बोला मेरी बेटी जैसे उमर की लड़की के साथ ये सब करूगा क्या।

देखो भाईयो हम पैसे वाले है तो क्या कैसे भी दोष लगा देगी।

 सारे गांव वाले दुकानवाले के पक्ष में बोलने लगे।हा सही बात है।

मेरी मा मेरे हित के लिए बोले जा रही थी।पर एक दम से अकेली हो गई वो।उसका साथ किसी ने भी नहीं

दिया।पिताजी भागे भागे आए।ओर मा का हाथ पकड़कर चुप करवाया।सारे गांव वालो के सामने हाथ जोड़कर बोले हमे माफ़ करदो ये झूट बोल रही है।

जैसे तैसे करके वहा सब संभल गया था।पर मेरी वजह से मा ओर पिताजी बहुत दुखी होने लगे थे।कुछ दिन बाद पिताजी मा को आकर बोले कि।मैं लड़का देख कर आया हूं।परिवार ठीक है।दहेज भी नहीं ले रहे।

बस दो बच्चे हैं उनके छोटे।कुछ दिन पहले पत्नी का देहांत हो गया था।बच्चो की देख रेख के लिए पत्नी की जरूरत है।

मा ने कहा हम ऐसे किसी लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी कैसे कर सकते है।

अभी वो छोटी है पढ़ना चाहती है। कम से कम उसका तो सोचो।

मैंंने सबका सोचा है। और सब सोचकर ही ये सब कर रहा हूं। मैं रिश्ता पक्का कर चुका हूं।ओर कुछ

दिन बाद अच्छा सा मूहूर्त निकल कर शादी कर देगे।

मां रो रही थी।पर पिताजी ने कुछ नहीं सुना।उनकी कहीं बाते मा के दिल पर लग रही थी।

कुछ दिन बाद मेरी शादी करदी।उस इंसान से जिसे मैं जानती भी नहीं थी। मैं नाबालिग थी केवल 14 साल की।जिसे शादी जैसे सम्बन्ध के बारे में कुछ पता ही भी था।

उस इंसान के 2 बच्चे थे जो केवल मुझसे 1,2 साल छोटे थे मेरे हम उम्र के।

शादी के बाद मैं वहा गई मैं वहा किसी को नहीं जानती थी।मैं केवल नौकरानी की तरह थी।

काम करती पर मुजपर किसी का ध्यान नहीं जाता।ओर रात को शराब के नशे में मेरे पिता जैसे उमर का वो इंसान मेरी आत्मा रोंधता था हर रात।

शादी के 2,3 महीने ही हुए थे।मेरे पति के शराब पीने के वजह से उनका लीवर खराब हो गया था।ओर उनकी आकस्मिक मौत हो गई थी।ससुराल वालों ने मुझे अप शगुनी कहना शुरू कर दिया था।

समाज के लोगो ने भी यही कहना शुरू कर दिया कि घर में क़दम रखते ही अपने पति को खा गई।

मैं बस सुनती रहती।सुनती रहती।सुनती रहती क्युकी मैं तो बस एक मिट्टी की गुड़िया बन गई थी।जिसमें ना जान थी ना भावनाएं।

पति के मौत के बाद वहां ससुर, जेठ, देवर पड़ोसी सब मुझे गलत नजर से देखने लगे।

कोई ना कोई हर रात मेरी इज्जत उतरता था।ओर मुझे केवल चुप करवा दिया जाता था।धमकियां देकर।

हद तो उस दिन हो गई।खेलते खेलते मेरे पति के एक बच्चे को चोट लगी और वो गंभीर हो गया।परन्तु सारा दोष मेरे ऊपर मंड दिया।

बात तो इतनी आगे तक पहुंच गई की लोगो ने मुझे।"डायन "

बोलना शुरू कर दिया था।घर से बाहर निकलती बच्चे ओर औरते भाग जाती मुझे देखकर की डायन अा गई।


एक दिन गांव किसी के घर काला जादू हो रहा था। काला जादू करने वाला बाबा भाग गया।

और लोगो ने मुझे गलत समझ लिया कि मैं काला जादू करती हूं।

डायन तो समझते थे।अब उनका शक मजबूत हो गया था कि गांव में जो भी 

हरकते होती थी मैं करती थी।

गांव वाले मेरे घर आए और मुझे जबरदस्ती पकड़ ले गए।मेरे ससुराल वालों ने कुछ नहीं बोला।उन्होंने मुझे बीच चौपाल पर रस्सियों से बांध दिया। ओर मुझे जलाने की कोशिश करने लगे।

पर किसी ने वहां कहा को अगर इसे जला देगे तो मरने के बाद भूत बनकर यही घूमेगी।ओर इस गांव में परेशानी का कारण बन जाएगी।

एक काम करो इस गांव से बाहर निकल दो जहां भी रहेगी रह लेगी। गांव में आने मत देना इसे।

मुझे लोगो ने वहां से धक्के मारकर गांव से बाहर निकल दिया।मैं रोती रही चिल्लाती रही।

मैंंने कुछ नहीं किया फिर भी उन लोगो ने कुछ नहीं सुना।मैं 18 साल की भी नहीं हुई थी।

मैंंने इतना कुछ सहन किया।

यहां तक मेरे माता पिता शादी के बाद मेरे खौरियत पूछने तक नहीं आए मैं कहा थी क्या थी कैसे थी।कभी नहीं पूछा उन्होंने।

बस जैसे तैसे करके। थोड़ी बहुत मेहनत करके ये छोटा सा मकान बना लिया।2,3 साल से यही रह रही हूं।

ओर जरूरत लोगो की मदद करती हूं।

पर यहां आस पास के लोग भूतनी समझते है।क्युकी मैं अकेली रहती हूं।सुनसान इलाके में।

यही कहानी थी मेरी। शायद छोटी थी पर मेरे लिए बहुत दर्दनाक थी।

ऐसे लोगो को तो गोली मार देनी चाहिए।समाज में रहने लायक नहीं है कलंक है ये लोग तो मैंंने कहा"

रहने दो। छोड़िए ये बाते शायद मेरी किस्मत में यही था।

"पहले को हुए सो हुआ।अब तो इस किस्मत को बदल सकती हो ना तुम। मैंंने गंभीर भाव से कहा"

 तुम मानती हो किस्मत अच्छी नहीं थी और तुम नाबालिग थी उस समय।इसलिए समझ ही आया तुमको की करना क्या है।

ऐसे ही समाज में अत्याचार होता है। औरतों पर ओर वो सहन करती है

कई तो आत्महत्या भी कर लेती है।काई मानसिक बीमार हो जाती है।पर ऐसी रोकथाम तो हमे खुद करनी चाहिए।

और तुम्हारी उम्र ही कितनी हुई है 18 साल बस।अभी तो तुम में समझने की शक्ति अाई है।तुम अबला नहीं हो।खुद की रक्षा करना सीखो।

मैं तुम्हे नहीं जानता।पर आज कहानी सुनकर लगा।तुमने ज़िन्दगी में हार मान ली।ओर इस सुनसान इलाके में छुपकर रह रही हो।अगर चाहती ना तो तुम पढाई करती आगे बढ़ने की कोशिश करती तुम पर हुए अत्याचार को रोकती।

पर नहीं कर सकी तुम।।

क्या करती मैं।उसके आंखो मैं आंसू आरे थे। काई बार समाज के साथ चलना पड़ता है। मा बाबा भी समाज के पीछे भागे ओर मेरी ज़िन्दगी खराब करदी।

तुम मेरे साथ चलो।शहर वहा पढ़ाई के साथ मैं कोशिश करेगा कि तुम्हे आगे बढ़ा पाऊं।

मुझे तुम में मेरी छोटी ओर मासूम बहन दिखीं।मैं चाहता हूं मैं अनजान एक भाई का फ़र्ज़ नी भाऊ। 

 नहीं नहीं।ये समाज है हमारा। हमारा ऐसे संबंध को गलत मानता है।

एक अनजान औरत ओर पुरुष को अवैध संबध मानता है। बेशक आप मुझे अपनी बहन मानो।फिर भी समाज गलत समझता है।

चलिए रात बहुत हो गई। आप सो जाइए।मैंंने कमरे में बिस्तर लगा दिया आपका।

वो कहकर चली गई। मैं अपने बिस्तर पर चला गया।सोचते सोचते ना जाने कब आंखे लग गई।पता ही नहीं चला।

सुबह हो चुकी थी।मैं उठा।बारिश भी नहीं आरी थी।

चाय ली जिए।उसने कहा।मैंंने चाय का प्याला उठाया।

तुम मुझे भाई बोलो।मैंंने मुस्कुराते हुए कहा।वैसे भी मैं तुमसे बड़ा हूं। और मेरी कोई बहन भी नहीं है छोटी।

अच्छा अब जाने का समय हो गया मैं चलता हूं।आसपास गाड़ी भी ठीक करवानी है।मैंंने कहा।

मैं हाथ मुंह धोकर जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला आवाज़ अाई पीछे से।भैया।

मैंंने पीछे मुड़कर देखा।वो दरवाजे पर खड़ी थी।मैं मुस्कुराइए वाह छोटी तुमने भाई बोला मुझे।

 भैया।आप सब जैसे नहीं हो।आप अलग हो सबसे।काफी याद आए तो मिलने अा जाना मुझसे।

हा आउगा छोटी ओर तुम अपना ध्यान रखना।बाय

मैंंने उसके सर पर हाथ फेरा।उसकी आंखो में खुशी के आंसू झलक रहे थे।वो मुजमे अपना परिवार ढूंढ रही थी।जो परिवार उसका खो गया था।

मैं वहा से निकला गया।अपनी गाड़ी गरैज में ठीक करवाई।ओर घर अा गया।

घर आने के बाद मुझे नींद नहीं आई।मैं सोचता रहा लोग कैसे कैसे होते है।औरत को लोग अपना हुकूमत समझते हैजो में में आए करते है फिर डायन बता देते है।

औरत जितने दर्द सहन करती है पुरुष उन दर्दों पर नमक छिड़क देता है।जिंदगी भर उहि संघर्ष करती रहती है और संघर्ष के बदले में उनको क्या मिलता है ताने"

चाहे समाज कितना भी पढ़ा लिखा हो जाए।पर कहीं ना कहीं औरतों के लिए उनके दिमाग में छोटी सोच होती है।दहेज हो घरेलू हिंसा रेप ओर छेड़छाड़ जैसी गलत कामो की खुद पहल करता है और अगर कोई रोकने की कोशिश करता है तो उसे भी रोक दिया जाता है।

"पहले को हुए सो हुआ।अब तो इस किस्मत को बदल सकती हो ना तुम। मैंंने गंभीर भाव से कहा"

 तुम मानती हो किस्मत अच्छी नहीं थी और तुम नाबालिग थी उस समय।इसलिए समझ ही आया तुमको की करना क्या है।

ऐसे ही समाज में अत्याचार होता है। औरतों पर ओर वो सहन करती है

कई तो आत्महत्या भी कर लेती है।काई मानसिक बीमार हो जाती है।पर ऐसी रोकथाम तो हमे खुद करनी चाहिए।

और तुम्हारी उम्र ही कितनी हुई है 18 साल बस।अभी तो तुम में समझने की शक्ति अाई है।तुम अबला नहीं हो।खुद की रक्षा करना सीखो।

मैं तुम्हे नहीं जानता।पर आज कहानी सुनकर लगा।तुमने ज़िन्दगी में हार मान ली।ओर इस सुनसान इलाके में छुपकर रह रही हो।अगर चाहती ना तो तुम पढाई करती आगे बढ़ने की कोशिश करती तुम पर हुए अत्याचार को रोकती।

पर नहीं कर सकी तुम।।

क्या करती मैं।उसके आंखो मैं आंसू आरे थे। काई बार समाज के साथ चलना पड़ता है। मा बाबा भी समाज के पीछे भागे ओर मेरी ज़िन्दगी खराब करदी।

तुम मेरे साथ चलो।शहर वहा पढ़ाई के साथ मैं कोशिश करेगा कि तुम्हे आगे बढ़ा पाऊं।

मुझे तुम में मेरी छोटी ओर मासूम बहन दिखीं।मैं चाहता हूं मैं अनजान एक भाई का फ़र्ज़ नी भाऊ। 

 नहीं नहीं।ये समाज है हमारा। हमारा ऐसे संबंध को गलत मानता है।

एक अनजान औरत ओर पुरुष को अवैध संबध मानता है। बेशक आप मुझे अपनी बहन मानो।फिर भी समाज गलत समझता है।

चलिए रात बहुत हो गई। आप सो जाइए।मैंंने कमरे में बिस्तर लगा दिया आपका।

वो कहकर चली गई। मैं अपने बिस्तर पर चला गया।सोचते सोचते ना जाने कब आंखे लग गई।पता ही नहीं चला।

सुबह हो चुकी थी।मैं उठा।बारिश भी नहीं आरी थी।

चाय ली जिए।उसने कहा।मैंंने चाय का प्याला उठाया।

तुम मुझे भाई बोलो।मैंंने मुस्कुराते हुए कहा।वैसे भी मैं तुमसे बड़ा हूं। और मेरी कोई बहन भी नहीं है छोटी।

अच्छा अब जाने का समय हो गया मैं चलता हूं।आसपास गाड़ी भी ठीक करवानी है।मैंंने कहा।

मैं हाथ मुंह धोकर जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला आवाज़ अाई पीछे से।भैया।

मैंंने पीछे मुड़कर देखा।वो दरवाजे पर खड़ी थी।मैं मुस्कुराइए वाह छोटी तुमने भाई बोला मुझे।

 भैया।आप सब जैसे नहीं हो।आप अलग हो सबसे।काफी याद आए तो मिलने आ जाना मुझसे।

हा आउगा छोटी ओर तुम अपना ध्यान रखना।बाय

मैंंने उसके सर पर हाथ फेरा।उसकी आंखो में खुशी के आंसू झलक रहे थे।वो मुजमे अपना परिवार ढूंढ रही थी।जो परिवार उसका खो गया था।

मैं वहा से निकला गया।अपनी गाड़ी गरैज में ठीक करवाई।ओर घर आ गया।

घर आने के बाद मुझे नींद नहीं आई।मैं सोचता रहा लोग कैसे कैसे होते है।औरत को लोग अपना हुकूमत समझते हैजो में में आए करते है फिर डायन बता देते है।

मन तो करता है उसकी मदद करने का उसे किसी NGO में दाखिला करवा दू।पर उसने भी सच कहा था कोई अनजान पुरुष किसी औरत की सहायता करता है तो लोग उसे अवैध संबंध की शक से देखते है। 

ना जाने कदम अपने आप रुक जाते है वो बचपन से इतने दर्द झेल रही है संघर्ष करती आई है।आगे भी वो डटकर ओर निडर रहकर संघर्ष करेगी।

अगले दिन मैंंने उठते ही जल्दी से तैयार हुआ।ओर आस पास के दोस्तो से NGO के बारे में पूछा।दो दिन में एक NGO मिला जो बेसहारा औरतों को पढ़ता है और पैरो पर खड़ा करता है।

मैंंने वहा जाकर बात की ओर सारी बात बता दी अगले दिन ही टीम उसके घर गई और NGO ले आई

 आज वो अपने मुकाम पर है पढ़ रही है साथ ने अपने पैरो पर खड़ी है।मैं NGO से उसके बारे में पूछता हूं कभी भनक नहीं होने दी ये सब मैंंने किया था।क्यूंकि वो शायद अहसान नहीं मानेगी। और मैंंने अनजान भाई बनने का रिश्ता निभाया।

कहानी का अंक यही खत्म होता है। कहानियां कभी खत्म नहीं होती वो चलती रहती है केवल पात्र खत्म होते है और एक स्त्री का संघर्ष जीवन भर चलता रहता है।


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