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Author Anju Kanwar

Tragedy Inspirational Children

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Author Anju Kanwar

Tragedy Inspirational Children

कागज़ की कश्ती

कागज़ की कश्ती

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बचपन की कश्तियां कब जवानी के लाल जोड़े में सिमट जाती है, इस पड़ाव का पता ही नहीं चलता।

 कहानियां तो सिर्फ गड़ी जाती है पर असलियत में कहानियां तो जीवन खुद लिख रहा होता है। हर पड़ाव की अपनी कहानियां बन जाती हैं। कागज की कश्तियों में बचपन डूब गया पता ही नहीं चला।

 कागज की कश्ती कब पानी में डूब गई महसूस ही नहीं हुआ, सोचते सोचते बस यूं ही जिंदगी गुजर जाती है !

 शादी के बाद केवल दूसरों के लिए समय मिलता है कभी खुद जाना ही नहीं खुद का समय तो कहां खो गया।

ख्वाबों में उलझते उलझते न जाने कब मेरी कुकर की सीटी बज उठती। मेरा ध्यान कुकर में चढ़ी दाल पर हो जाता।

कब खुद के आलू के पकोड़े दूसरों के पसंद के प्याज के पकौड़े बन गए।

 सोचते सोचते बस दिल यूं ही गुजर जाता है बरसात का मौसम आने वाला था,

 मुझे आज भी याद था कि हर बरसात में मां के हाथ के चाय पकौड़े मिलते थे और हम निकल पड़ते थे दोस्तों के साथ अपने कागज की कश्ती डुबोने में देर शाम तक मम्मी के डांटने पर हम मुंह लटका ते हुए घर आते थे।

बरसात के बाद साफ सफाई करते हुए बालकनी में पर्दा समेट रही थी।

 अचानक से देखा कुछ बच्चे बाहर खेल रहे थे पानी के गड्ढों में उछल रहे थे मुझे बहुत खुशी हुई। मैं फिर से साफ सफाई करने लगी पर ना जाने आज क्यों मन उछल रहा था।

 लगा कि यह सब छोड़कर बाहर भाग जाऊं और उन बच्चों के साथ खेलू!!

फिर काम छोड़कर मैं बाहर गई बारिश का सुहावना मौसम देखकर मन में अंदर ही अंदर बहुत खुशी हुई बाहर खेल रहे बच्चों को मैंने अपने पास बुलाया मैंने पूछा "आप लोग पढ़ाई नहीं करते क्या ऐसे मस्ती कर रहे हो। हमेशा खेलते ही रहते हो" उन बच्चों में से एक बच्चे ने मुझसे कहा 'हम पढ़ाई भी करते हैं पर ऐसा समय दोबारा नहीं मिलता' "

 मैंने उस बात को गंभीरता से सोचा शायद! उसने सच ही कहा है कि समय दोबारा नहीं मिलता मैंने देरी ना लगाते हुए उनसे कहा"बच्चों आपको कागज की कश्ती बनाने आती है क्या" उन्होंने कहा "हमें अच्छी तो लगती है पर बनानी नहीं आती" मैंने खुशी से चहकते हुए कहा " मुझे आती है तुम यहीं रुको मैं अभी कागज लेकर आती हूं"। 

मैं भागती हुई घर में गई रद्दी पेपर को ढूंढा और सारे पेपर उठा ले आई और बच्चों को साथ में बैठा कर उन्हें कागज की कश्ती बनाकर सिखाने लगे। हमारी एक से एक बढ़कर कश्ती तैयार हो चुकी थी।

हमने इधर उधर बहती नदी देखीं।

अपनी कागज की कश्ती को हमने छोड़ दिया। बच्चे ताली बजा रहे थे किसकी नौका आगे जाएगी। मेरी कश्ती आगे निकल गई।मैंने गहरी सास ली। आज बच्चो ने मुझे अपना बचपन कागज की कश्ती के साथ वापस ला दिया था। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। घर आते आते मैं भी बच्चो की तरह गढ़ो में भरे पानी में उछल रही थी। मेरा बचपन वापस आ गया था।


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