मजबूरियां
मजबूरियां
मेरा सफर बस से था रोजमर्रा का यही कार्य था, हालांकि मुझे सफर करना जीवन का सबसे कठिन कार्य लगता है परंतु पढ़ाई भी जीवन का महत्वपूर्ण अंग है, पढ़ाई के लिए सफर करते करते हम अनजान जगह को भी अपना बना लेते है।
ऐसे ही समय बीतता गया, बस के पहुंचने का समय अधिक था, मैं समय से जाकर अपनी बैठने को व्यवस्था कर ली, कुछ समय पश्चात मुझे प्रतीत हुआ मुझे भूख लगी, इधर उधर देखा कुछ नहीं दिखा खाने का
फिर खिड़की में झांक कर देखा तो एक छोटा सा बच्चा खाने पीने का सामान बेच रहा था, मैंने बुलाया इधर आओ
वो बस में चढ़कर मेरी बगल वाली सीट पर बैठ गया।
मैंने उससे खाने का सामान लिया और पैसे दे दिए
उसने मुझे कहा, " मैडम आप तो बहुत पढ़ी लिखी लगती हो"
मैं हंसने लगी, और उससे पूछा " तुम पढ़ाई नहीं करते क्या,
उसका जवाब आया " मैडम पढ़ने का मन है, मैं बहुत होशियार हूं, चौथी कक्षा तक पढ़ा हूं, फिर मेरे घर की आर्थिक हालत अच्छे नहीं है, हमारा खुद का घर नहीं है, फूट पाथ ही घर है अब,
मेरे से छोटे भाई बहन है वो पढ़ते है, मैंने अपनी घर की मजबूरियों में पढ़ाई छोड़ दी।
मैं इक टक उसको निहारती रही, आठ ,नौ साल का बच्चा जिसके पढ़ाई की उम्र थी, केवल घर की मजबूरियों ने उसके सपनों का गला घोट दिया, मैंने कहा " तुम यही आस पास रहते हो ना इस समय बस में आया करो, मैं तुम्हें पढ़ाया करूँगी।
उसने हामी भर दी, और चला गया, अगले दिन मैंने उसका बस में इंतजार किया वह नहीं आया, मैं रोजाना उसका इंतजार करती रही वह कहीं नहीं दिखा। मेरी नजर उसको ढूंढने में आज भी लग जाती है, पर वह कभी नहीं आता।