सच्चा प्यार
सच्चा प्यार
दादाजी लाइन में खड़े अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। बहुत बड़ी लाइन थी क्योंकि डॉक्टर मोहित का नाम शहर के मशहूर डॉक्टर्स में था ,इसलिए वे भी पिछले पाँच सालों से अपनी छोटी मोटी बीमारी के लिए यहां आते थे ।ऑज लाइन कुछ ज्यादा लंबी थी। जब भी यह बरसात का मौसम आता तो बीमारियां बढ़ जाती और लोगों की भीड़ ज्यादा हो जाती। इंतजार में बैठे बार-बार वह घड़ी देख रहे थे। दूर बैठी मैं उन्हें देख रही थी। मेरी नजर जब उनसे मिली तो हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर आ गयी।मुझसे रहा न गया ।मैंने उनके पास जाकर पूछा -"दादा जी ,आपको कहीं जाना है क्या ?आप बार-बार घड़ी देख रहे हैं?" उन्होंने कहा "हां बेटी, मुझे पास के ही हॉस्पिटल में छः बजे जाना है, पर यहां तो बड़ी लंबी लाइन है शायद मैं आज पहुंच न पाऊंगा।" मुझे उनसे हमदर्दी होने लगी ।अंदर जाकर मैंने बात की तो थोड़ी देर में ही डॉक्टर मोहित ने उन्हें अंदर बुला लिया। दादाजी को देखते ही डॉक्टर ने कहा- "मैंने सुना है आप पास वाले हॉस्पिटल में जाना चाहते हैं, क्या बात है मुझ पर भरोसा नहीं है"? दादाजी ने कहा -"नहीं नहीं ,ऐसी बात नहीं है ,पास वाले हॉस्पिटल में मेरी पत्नी पिछले दो महीने से एडमिट है। मुझे शाम के छः बजे उसके साथ चाय पीनी होती है।" डॉक्टर ने पूछा -"क्या बीमारी है उन्हें"? दादाजी ने मुस्कुराते हुए कहा- "सबसे बड़ी बीमारी तो बुढ़ापा है बेटा ,इस उम्र में छोटी बड़ी कई बीमारियां होती रहती है ।मेरी पत्नी को भूलने की बीमारी है दो महीने से उसकी बीमारी बहुत बढ़ गई है इसलिए हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा।" डॉक्टर ने कहा -"यदि उन्हें भूलने की बीमारी है तो वह आपको कैसे पहचानती है"? दादाजी झेंपते हुए बोले- "वह मुझे नहीं पहचानती ,पर मैं तो उसे जानता हूं न। पिछले साठ सालों से हम साथ में शाम की चाय पीते हैं, और देखो न आज यह भीड़ की वजह से मैं उसके पास पहुंच न पाता पर तुमने जल्दी बुलाकर मेरा ये काम आसान कर दिया ।" डॉक्टर मोहित की आंखें भर आई। उसने दादाजी का चेकअप करते हुए कहा -"आज भी आप छः बजे ही अपनी पत्नी के साथ चाय जरूर पिएंगे।" बाहर निकलते हुए दादाजी ने मेरी तरफ देखा और धन्यवाद किया। मैंने बड़ी सहजता से कहा- "इसमें धन्यवाद की क्या बात है, यह तो मेरा फर्ज है ,पर आप हॉस्पिटल क्यों जा रहे हैं?" उन्होंने अपनी पत्नी की बातें बताई और कहा- "अब मुझे मत रोको मुझे वहां जल्दी पहुंचना है।"
उनके जाने के बाद मैं सोचने लगी दादी जी तो दादाजी को पहचानती नहीं फिर भी दादा जी का इस उम्र में उनके लिए यह प्यार "सच्चा प्यार "है जो अब विरले ही दिखाई देता है। कितनी खुशनसीब हैं दादीजी जिन्हें इस उम्र में भी ऐसा प्यार मिल रहा है।