Rashmi Sinha

Classics Inspirational

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Rashmi Sinha

Classics Inspirational

सबसे बड़ा रुपैया

सबसे बड़ा रुपैया

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लोग कहते हैं हैसियत बनाने के लिए खून, पसीना एक करना पड़ता है तब जाकर इंसान उस अवस्था मे पहुंचता है जिसे सुख की संज्ञा दी जा सकती है।

पर प्रखर के साथ, ऐसा कुछ न था, चांदी का चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुआ था। इकलौता होने के कारण दुलार भी भरपूर।

शहर के महंगे स्कूल में उसका नाम औसत दर्जे का विद्यार्थी होने के बावजूद, आसानी से हो जाता और क्यों न होता मंत्री पुत्र

जो था। 

जो मांगा हाज़िर, महंगी महंगी कारों में घूमता, लेटेस्ट फैशन के कपड़े पहनता, और तो और उसकी ही मांग पर पिता ने लंदन भी पढ़ने भेज दिया।

दोस्त ऐसे जिनके साथ उसने ज़िन्दगी का मजा छक कर लूटा

डिस्को, पब, कार में बियर की बोतलें तेज म्यूजिक----

नौकरी की चिंता न थी , पिता की अकूत संपति, और डाले हुए बिज़नेस उसे ही तो संभालने थे।

मां किटी पार्टीज में व, गहने खरीदने में व्यस्त----

यानी बेशुमार धन का सदुपयोग, पूरा परिवार मिल कर कर रहा था। किसी के पास एक दूसरे के लिए वक़्त न था।

प्रखर गाना अच्छा गा लेता था, और सीटी की धुन पर गाना निकालने में माहिर।

जब कहीं बाहर जाता ,स्टाइल से अपने बाल संवारते बालों में

पानी लगा, उंगलियां फिराते हुए हुए ओठों पर सीटी की धुन होती," न बीबी न बच्चा, न बाप बडा न भैया, द होल थिंग इस दैट कि सबसे बड़ा रुपैया----

फ़ेवरिट धुन थी उसकी, क्योंकि सार्थक जो कर रहा था इन पंक्तियों के आशय को।

आज अंजली के साथ डेट तो कल अमिता के साथ, फेस बुक पर फैले बीसियों प्रेम प्रसंग।

तब ही जीवन में कुछ अघटित घटा, कोई उसे सचमुच अच्छी लगने लगी थी, उसके साथ समय बिताना, बातें करना, अपनी हर समस्या उसके साथ शेयर कर लेना , मनीषा थी भी तो ऐसी ही, निश्छल वाकपटु और सहज , बनावट से कोसों दूर।

प्रखर अक्सर कार बदल बदल उसे घुमाने ले जाता, महंगे होटल्स और रेस्टोरेंट में खाना भी खिलाता, पर मनीषा वहां भी उतनी ही सहजता से बैठी हंसती ,खिलखिलाती बातें करती रहती

जितना स्ट्रीट फूड कहते समय रहती।

उसके हाव- भाव से लगता ही नही था कि वो उन आलीशान होटल्स में जाकर रंचमात्र भी प्रभावित हुई हो ,जबकि प्रखर उसकी आँखों मे अपने धन की स्वीकृति देखने को बेताब---

प्रखर एक कदम आगे जाकर उसको आभूषणों की भेंट देना चाहता पर मनीष की ओर से ये भेंट शालीनता के साथ इनकार कर दी जाती।

क्रोध के आवेश में प्रखर उसको मन ही मन गाली देने से भी नही चूकता, साली, नौटंकी---, भला ऐसा भी कभी हुआ है कि धन दौलत के जाल में कोई न फंसा हो?

और आज जब उसे मनीषा का एक छोटा सा नोट मिला, प्रखर , हम अच्छे दोस्त हो सकते थे, पर तुमने मेरे बारे में जो धारणा बना ली है , उसके चलते हमारे मित्र बने रहने की संभावना क्षीण हो गई है। मैं ये शहर छोड़ कर जा रही हूँ। 

तुम जितने भी तरीकों से मुझसे संपर्क साध सकते हो, बदले जा 

चुके हैं----

प्रखर उल्टे पांव मनीषा के रूम की तरफ भागा पर वहां एक मोटा से ताला उसको मुँह चिढ़ा रहा था।

घर पहुंच कर उसने एक लार्ज पेग बनाया और कोशिश की सीटी की अपनी फेवरिट धुन निकलने की, न बीबी न बच्चा , न बाप बड़ा न भइया, द होल थिंग इज़ दैट कि सबसे बड़ा-----

यहां तक आते आते उसके सुर गला रुन्ध जाने के कारण बेसुरे से हो गए। हाँ रो रहा था वो---- पर क्यों ?

ठहरिए, कहानी यहां खत्म नही होती जब आंख खुली तो सबेरा

हो चुका था और कोई डोर बेल बजा रहा था, साथ ही हाथों की थाप भी, खट खट आती ही जा रही थी। आंख मलते हुए दरवाजा खोला, सामने पूनम थी उसके घर खाना बनाने वाली।

भैया जी कितनी देर से दरवाजा पीट रही हूँ मैं तो डर गई थी

पूनम , जा एक कप कड़क चाय तो लेकर आ, अच्छा भैया जी।

जब पूनम चाय लेकर आई तो प्रखर ने उसको पहली बार ध्यान से देखा, उसकी वेश- भूषा उसके निम्न वर्ग की होने की गवाही दे रही थी।

पूनम तुम स्कूल जाती हो? भैया जी मेरी चार बहने और हैं जो सभी किन्ही न किन्ही घरों में काम करती हैं , अगर स्कूल गए तो घर का खर्च है कैसे चलेगा---,हाँ एक सबसे छोटा भाई है वो जाता है स्कूल, मां ने उसके लिए ट्यूशन भी लगा दी है।

आज पहली बार प्रखर को बात करते देख उस मुखर बालिका

को भी आनंद आ रहा था--, अपनी पूरी राम कहानी बताने को बेताब।

उससे बात करते करते प्रखर कुछ सोचता भी जा रहा था।

पूनम, क्या तुम मुझे अपने घर ले चलोगी, हाँ भैया जी , क्यों नही?

और वो पूनम के साथ उसकी बस्ती की ओर चल दिया।

वो किसी गरीब बस्ती को जीवन मे फिल्मों से इतर शायद पहली बार देख रहा था। कच्ची सड़क काला बदबूदार पानी बहता हुआ 

धूल सने बच्चे, उसका सर्वांग सिहर गया, 

एक क्षण में उसकी आँखों के आगे वो धन तैर गया जिसे वो पानी की तरह बहा देता था।

समय आ चुका था धन के सदुपयोग का। दो तीन दिन तक वो कई योजनाएं अपने मस्तिष्क में बना और बिगाड़ चुका था,

अंत मे उठा पहला कदम उस बस्ती के सारे बच्चों का विभिन्न स्कूलों में दाखिला, किताबों का खर्च, सब आसानी से वहन कर लिया गया।

अब 3 वर्ष बीत चुके थे, उसकी स्वयं सेवी संस्था " मनीषा स्वयंसेवी संस्थान" उसके अथक प्रयासों से बहुत से निर्धन परिवारों का स्तर सुधार चुकी थी।

आज कार निकाल कर ड्राइव करते हुए प्रखर बहुत वर्षों बाद सीटी की धुन पर अपनी फ़ेवरिट धुन निकल रहा था न बीबी न बच्चा और सुर पूरे वातावरण को गुंजायमान कर रहे थे।


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