(2)सौदेबाज़ी में वो पक्का ठहरा
(2)सौदेबाज़ी में वो पक्का ठहरा
प्रिय पाठकों,
अब तक आपने पढ़ा ,
तिथि और नीतीश हनीमून पर निकले तो बहुत ख़ुश थे। पर... ज़ब वहाँ से दो दिन के बाद ही तिथि वापस आ गई तो आरोमा का चिंतित होना स्वाभाविक था।
नीतीश और तिथि हनीमून पर जब निकले तो...
तिथि बहुत खुश थी और सबसे ज्यादा खुश थी आरोमा...!
आखिर उसने अपनी बहन को बेटी की तरह पाला था उसे तो खुश होना ही था।
पर.... नितेश के मन में क्या है...? यह कोई नहीं जानता था।
तो...
उस दिन ज़ब आरोमा ऑफिस से आई तब तिथि बेहद उदास थी। उसने अपने कपड़े भी नहीँ बदले थे। यूँ ही पड़ी हुई थी। और... देखकर लग रहा था कि बहुत रोई है। रो रोकर उसकी आँखें सूज गईं थीं।
ज़ब आरोमा ने तिथि को गले लगाते हुए उसे पकोड़े और जलेबियाँ पकड़ाई तो तिथि के मन में कोई उत्साह नहीं था।
वैसे वह हमेशा जलेबी खाकर बहुत खुश होती थी।लेकिन आज वह उछलकर नहीं आई , और ना ही दनादन जलेबी की ओर लपकी।
आरोमा जानती थी कि... तिथि का मन बहुत दुखी है और वह अभी इतनी जल्दी नार्मल नहीं होगी। थोड़ी देर के बाद दोनों बहनें चाय का कप लेकर बैठी थी। और तब तक सुशांत भी आ गया था। उसे आरोमा ने ही बुलाया था।
तिथि बचपन से सुशांत को इस घर में आते-जाते देख रही थी। और एक तरह से उसे सगे भैया की तरह ही मानती थी।इसलिए सुशांत को देखते ही उसके गले से लगकर रोने लगी।
सुशांत और आरोमा का आश्नवासन और प्रेम प्रकार धीरे-धीरे तिथि ने बताना शुरू किया।
और जो कुछ भी तिथि ने बताया...
वह सुनकर आरोमाऔर सुशांत आश्चर्य में पड़ गए।
तिथि ने बताना शुरू कि...
" जब नीतीश मुझे हनीमून के लिए होटल में लेकर गया तो वहाँ थोड़ी देर के बाद उसके दो दोस्त और आ गए और नीतीश कहने लगा कि... 'यह दोनों मेरे दोस्त हैं, तुम अगर इन दोनों को खुश कर दोगी थी यह दोनों मुझे बिजनेस पाटनर बना लेंगे' !"
तिथि बोले जा रही थी और फिर फफक फ़फ़ककर रोने लगी
आरोमा ने उसका ढानढस बढ़ाया और सुशांत ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ,
" तुम अब डरो मत तिथि ! अब तुम घर आ गई हो।हमारे रहते हुए तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।आगे बताओ.....!"
तिथि ने कहा कि...
" उसके बाद मैं नीतीश को बताए बिना चुपके से किसी तरह भाग कर आ गई हूं।अब आप लोग बताओ....आगे क्या करना है !"
आरोमा और सुशांत से बात करके तिथि थोड़ी नॉर्मल होने लगी थी।
अब... आगे....और सुशांत और आरोमा ने मिलकर के नीतीश से दहेज के पैसे वसूल कर लिए और फिर तिथि ने अपने आगे की पढ़ाई जारी रखी।
उसने सोच लिया था कि....
जब तक वह अपने पैरों पर खड़ी नहीं होगी... अब वैसे किसी पर प्यार में अंधा विश्वास करके जीवनसाथी नहीं बनाएगी।
अब...जीवन का सबसे बड़ा सच तिथि समझ गई थी कि...
जब तक इंसान सच न बोले और घुमा फिराकर बात करे... तब तक उस पर भरोसा नहीँ करना चाहिए।
जीवनसाथी हमेशा साथ निभाते हैं यह बीच राह में छोड़कर नहीं जाते इसलिए अब तिथि में सोच लिया था वह सोच समझकर ही जीवनसाथी का चुनाव करेगी।
और... एक महत्वपूर्ण बात भी तिथि समझ गई थी कि...
चाहे लड़का हो या लड़की हर इंसान को सबसे पहले अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए। जब हम फाइनेंशली साउंड होते हैं, अच्छे पैसे कमाते हैं और जीवन में आगे बढ़ते हैं...
तो अच्छे बुरे की पहचान भी हो जाती है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
वैसे तो...नीतीश सौदेबाजी में बहुत पक्का था।
पर... ये जो ऊपरवाला है ना... वो किसी भी सौदेबाज़ से बड़ा शातिर है। और वो हर इंसान को अपनी करनी का फल मिलता ही है।
और... फिर सुशांत और अरोमा के प्यार और सहयोग से और कुछ तिथि की समझदारी से मुश्किलें आसान हो गई।और तिथि नीतीश से बचकर भाग पाने में सफल हो गई।
आगे ज़ब तिथि ने जीवन के कई उतार-चढ़ाव देखे और जीवन के अनुभव से सीखकर उसने ज़ब अपना कदम आगे बढ़ाया तो जिंदगी ने भी मुस्कुराकर उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
और... हंसती मुस्कुराती हुई तिथि ने आगे बढ़कर ज़िन्दगी के दोस्ती के लिए बढ़े हाथ को थाम लिया और आगे बढ़ चली।
