Anita Bhardwaj

Comedy

4.8  

Anita Bhardwaj

Comedy

सास नंबरी बहू 10 नंबरी

सास नंबरी बहू 10 नंबरी

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"अरे इनसे तो दूर ही रखो अपनी बहुओं को!! खुद की बहू ने सास को बिगाड़ दिया, अब ये महारानी चली हैं हमारी बहुओं को बिगाड़ने।" पड़ोस में झुंड बनाकर बैठी औरतों में फुसफुसाहट हुई।

शांति जी गली से गुजर रही थी, तभी औरतों की फुसफुसाहट की आवाज़ उनके कानों तक पहुंची। शांति जी मुड़ी इतने में सब इधर उधर देखने लगी।

तभी शांति जी ने उन्हें और खिझाने के लिए मुस्कुराते हुए कहा-"अरी!! मेरी चुगली चर्चा कर रही हो क्या?? कर लो!! कर लो!! दो-चार पाप अगर किए भी होंगे तो वो भी कट जाएंगे मेरे।"

फिर शांति जी घर आ गई। आते ही बहू को आवाज़ लगाई "वनिता!! आ गई क्या कॉलेज से ?"

वनिता अपने कमरे से नीचे उतर कर आई "जी मां जी!! आ गई। चाय बना दूं ?"

शांति जी "हां बना लेे बेटा। फिर तरकारी लेने चलेंगे। सुबह तू लंच लेकर जाएगी, कोई सब्जी नहीं बची है फ्रिज में।"

वनिता -" ठीक है मां जी।"

इतने में पड़ोस कि चाची जी आ गई। शांति जी ने बहू को आवाज़ लगाई, बेटा !! चाची जी के लिए भी चाय बना देना।

चाची जी झुक झुककर देखने लगी , बहू दिख ही जाए! फिर बोली -" बहू कर लेती है घर का काम!"

शांति जी को बिल्कुल पसंद नहीं थी कि कोई उनके घर की टोह लेने आए।

इतने में झट से बोली -" अरे कहां!! बच्ची है। बस पढ़ाई की थी इतने में शादी हो गई। फिर यहां आते ही नौकरी लग गई। चाय तो मैं सुबह ही बना कर रख देती हूं। बस गरम करके लेे आयेगी।"

चाची जी हैरान हुईं -" हैं!!! ना ना जीजी!! रहने दो । फिर कभी पियूंगी आपके घर की चाय। चलती हूं, बच्चों के पापा घर आ गए होंगे।"

शांति जी -"अरे रुको!! काम तो बताती जाओ क्यूं आई थी।"

चाची जी -" नहीं भूल गई जीजी!! बाद में आऊंगी।"

चाची जी तो " जान बचाई तो लाखों पाएं" जैसा सोचकर  निकल गई , जान छुड़ाकर।

वनिता -" अरे चाची जी कहां गई? "

शांति जी हंसते हुए -" अरे कुछ नहीं !! बस मसाला मांगने आयी थी, नहीं मिला तो चली गई।"

वनिता -" मसाला!! अरे दे देते मां जी। उन्हें खाना बनाना होगा तभी तो मांगने आई होंगी।"

शांति जी हंस पड़ी। फिर वनिता समझ गई । अच्छा चुगली चर्चा वाला मसाला!!

जब से वनिता की नौकरी लगी थी, गली पड़ोस की सब औरतों को उसका यूं जीन्स टॉप पहनकर बाहर जाना बड़ा अखर रहा था।

नई बहू शादी को 4 महीने हुए हैं, ना बिंदी, ना चूड़ी, ना बिछुए, ना पाजेब। इसको देखकर हमारी बहुएं भी बिगड़ जाएंगी।

वनिता की सास को कोई कुछ कहने आता तो वो खुद उनका ही मजाक बनाकर निपटा देती थीं उसको।

गणपति महोत्सव आया। गली के सब लोगों ने चंदा इकट्ठा करके गणपति जी की स्थापना की। सुबह शाम आरती वंदना होती, दोपहर में भजन कीर्तन।

भजन कीर्तन में सब औरतों का जमावड़ा लगता।

रविवार के दिन का कीर्तन शांति जी ने करवाया क्योंंकि उस दिन वनिता की भी छुट्टी थी।

सबकी नजरें ये देख रही थी कि शांति जी की नई बहू आज भी जीन्स में आयगी नीचे। अकेले अकेले लोगों को तो शांति जी भगा देती थी, आज क्या बोलेंगी।

इतने में शांति जी और उनकी बहू दोनो सूट पहनकर नीचे आए और चाय देने लगे सबको तो सबके मुंह खुले रह गए।

औरतों में खूब फुसफुसाहट हुई, लो बहू ने सास भी बिगाड़ दी।

अगले दिन प्रसाद वितरण के वक़्त वनिता और शांति जी ने पड़ोस कि फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को पहले बुलाया और खाना खिलाया।

चाची जी की बहू ने वनिता से कहा -" अच्छा किया वनिता !! वरना ये बच्चे बिचारे त्योहार पर भी मुंह ताकते रहते हैं। लोग बचा कुचा इनके घर दे आते हैं। कोई इंसानियत से नहीं खिलाता।"

वनिता -"मेरी सासू मां ऐसी नहीं है।"

इतने में चाची जी ने अपनी बहू की तरफ आंखें निकालते हुए , बहू को वनिता से दूर खड़े होने का इशारा किया।

शांति जी ने देख लिया, और कहा -" अरे बहू!! रहने दो । हम तो सास बहू बदमाश है तुम्हे भी बिगाड़ देंगे। जाओ तुम्हारी सासू मां के साथ बैठो!!"

चाची जी ना कुछ कह पा रही थी,ना चुप रह पा रही थी। अपनी बहू को लेकर चली गई पंडाल से।

गणपति विसर्जन बड़ी धूमधाम से हुआ। वनिता और शांति जी ने साथ में डांस किया। उनको देख गली की और बहुएं भी नाचने लगी।

इतने में पड़ोस की ताई जी ने शांति जी से कहा -" ये क्या कर रही हो शांति!! घर की बहुएं सड़क पर नाचती अच्छी लगती हैं क्या?"

शांति जी ने झट से जवाब दिया -" जीजी!! बुरा मत मनाना, पर ये बताओ तुम और मैं यहां पैदा हुई थी क्या?? हम भी बहुएं हैं। क्या हुआ हमारी बहुओं ने भी अपने मन की कर ली तो?? "

ताई जी -" तुम ठीक नहीं कर रही हो!! तुम अपनी बहू को बिगाडो। हमारी बहुओं को बख्श दो। बहू की तनख्वाह ने तुम्हारी बुद्धि पर पत्थर डाल दिए हैं।"

अब शांति जी को गुस्सा आया, उन्होंने झट से बोला -" अगर मैं अपनी बहू को कैद करके रखूं तब भी तुम जैसी घर तुड़वाने वाली बहू की प्यारी बनकर हमारे घर क्लेश करवा देती। अब भी तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। जाओ लेे जाओ अपनी बहुओं को। "

ताई जी -" लाज शर्म तो है नहीं!! सास नंबरी, बहू 10 नंबरी। "

शांति जी -" हां हूं मैं नंबरी। तुम्हारी तरह भेड़ बकरियों की ज़िन्दगी नहीं जीती। ना अपनी बहू को जीने दूंगी। हम किसी गिनती में तो आते है, तुम अपनी फिक्र करो।"

शांति जी की बेबाकी, हाजिरजवाबी ने फिर से सबके मुंह बंद कर दिए।

दोनों सास बहू को देखकर बाकी बहुओं ने भी कुछ पल के लिए अपनी भेड़ बकरी वाली ज़िन्दगी को भुलाकर, खूब डांस किया।

ये कहानी किसी गांव की नहीं, देश की राजधानी दिल्ली की है। उन इलाकों की जहां आज भी शहरों के दिल में गांव बसे हैं। उनकी पुरानी रूढ़िवादिता को तोड़ने कि शुरुआत उनमें से ही कुछ औरतें कर रही है, करती रहेंगी।

सास बहू का रिश्ता सिर्फ और सिर्फ आपसी समझ के कारण ही खराब होता है और आपसी समझ के कारण ही अच्छा।

सास ही बहू को रिवाज विरासत के रूप में देती है, जो रिवाज किसी को आगे बढ़ने से रोक दें, उन रिवाज़ो को बदलना ही सही होगा, ये काम एक सास करेगी तो बाकी लोग भी सीखेंगे, एक बहू करेगी तो हो सकता है उसे दबा दिया जाए।


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