सालगिरह

सालगिरह

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जब मोहब्बत होती है तो वक़्त मायने नहीं रखता। चाहे कितना ही वक़्त बीत जाये इंसान अगर किसी से मोहब्बत करता है तो वो समय के साथ बढती है घटती नहीं।

आज पच्चीसवीं सालगिरह है शादी की और किस्मत से संडे भी है। शादी की सालगिरह से ज्यादा खुशी तो संडे की है जनाब को।

सुबह 4 बजे ही उठ गये और बिना कोई आवाज़ किये अपने सरप्राइज की तैयारी में व्यस्त हो गये।

चिट्ठी लिखने बैठ गये।

"डियर मालती, पच्चीसवीं सालगिरह मुबारक हो। इतने सालों तक इतने मोहब्बत से हमको झेलने के लिये ढेर सारा प्यार। यूँ तो ढेरों बातें है यादें है कहने को, मगर जितना लिख सकते है लिखेंगे।

तुम्हें याद है बचपन में पहली बार जब हमने अपनी मोहब्बत जाहिर करने की कोशिश की थी और तुम कितना गुस्सा हो गई थी। तुमने कॉपी ली थी हमसे और हमने पिछ्ले पन्ने पर हर जगह बस तुम्हारा नाम लिख रखा था। आज भी वैसे ही है हम केयर लेस हैं। अच्छा हुआ तुम आ गई।

अगर तुम ना आई होती तो जाने क्या होता हमारा। ये शायद ग्यारहवीं की बात है, हाँ तबकी ही है। तुम दो चोटी किया करती थी ना तब। सच कहें तो तब्बे ज्यादा क्यूट लगती थी। मगर उसके बाद भी तुम शायद समझी नहीं हमको। मोहब्बत तो ना ही हुई होगी।


जब तुमने हमारे साथ कॉलेज में दाख़िला लिया तो हमे लगा तुम्हें भी प्यार हो गया है हमसे। आशिक अक्सर वहम पाल लेते है ना। मगर जो भी कहो वहम की दुनिया भी कम ख़ूबसूरत नहीं। साले अपनी ही मस्ती में होते है हम।

याद है वो दिन जब कॉलेज जाते वक़्त तुम साइकल से गिर गई थी और हम तुम्हें उठाये अस्पताल भागे थे। वजन तब भी कम नहीं था तुम्हारा।

तब कहीं जाके थोड़ा बहुत लगाव हुआ था तुमको हमसे। मोहब्बत फिर भी ना ही हुई होगी। मगर किस्मते खराब थी तुम्हारी जो नौकरी लगते ही तुम्हारे पिताजी हमरे यहाँ तुम्हारा रिश्ता लेके चले आये। अब ऐसे मौके को छोड़ देते हम कौनो पागल थे का। शादी का हर एक पल अभी भी सिनेमा जैसा चलता है मेरी आँख के सामने। हमको याद है अंगूठी पहनाते वक़्त जानबूझ के हमारा हाथ दबा दिया था तुमने। कसम से दारा सिंह वाली फील आ गई थी।

और वो जयमाला वाले टाईम तुमने तो एकदमे से कूद के माला डाल दी हमारे गले में।


सबसे हटके हो तुम।

आज भी जितना ज्यादा तुम हमको जानती हो और समझती हो हम शायद कभी ना समझ पायेंगे। मगर फिर भी एक बात कहते है हमसे ज्यादा मोहब्बत कोई ना करता तुमसे सच्ची राम जी की कसम।"

इत्ता लिख के जनाब ने चाय के कप के नीचे ख़त को दबा बिस्तर के बगल में टेबल पे रखा और निकल गये मॉर्निंग वॉक पे।

इत्ते दिनों से सब सोच रखा था लिखने को। हर वक़्त उन पलों को याद करते और मुस्कुराते तो श्रीमती जी को लगता किसी ऑफ़िसी सुन्दरी के खयालों में हैं। कई बार गालियाँ भी पड़ी। मगर जनाब ने भी सारे हसीं पल यादों के सन्दूक से निकाल ख़त के पन्नों पे उतार ही दिये। इन्तजार था बस पढ़े जाने का।

जब श्रीमती जी उठी और बगल में चाय का कप देखा तो पहले तो खयाल ना आया की ये सब सालगिरह के सरप्राइज में किया गया है। पहले घुड़की ही निकली। "सुबह सुबह चाय की तालाब लग गई आपको?"

कोई जवाब ना आने पे ध्यान ख़त की ओर गया। चेहरे पे पहले तो थोड़ी टेंशन आई मगर ख़त खोलते ही मुस्कुराहट आ गई।

पूरा ख़त पढ़ते पढ़ते आँखों में आँसू आ गये।

उठकर दराज़ खोल उन्होनें अपने खयाल जाहिर करने शुरु किये।

"योगेश, तुम तो जानते हो कभी भी बोले नहीं हम तुमको मगर मोहब्बत हम उससे रत्ती भर भी कम नहीं करते जितनी तुम हमसे करते हो।

तुमने जो कुछ भी लिखा है सब एकदम्मे याद है हमको।

मगर क्या करे हमारा नेचर तो तुम जानते हो। हम खुल के बोल नहीं पाते। बहुत कम लड़कियाँ ऐसी होंगी जो अपने जज्बात ना लिख-बोल पाती हो। मगर अब हम इसको बदल भी नहीं सकते ना।

हाँ ग्यारहवीं की ही बात थी वो। सच्चे तुमको दू चोटी में अच्छे लगते थे क्या? अभी करे?

सच कहें तो ऐसा नहीं है की, खराब लगा था अपना नाम देख के तुम्हारी कॉपी में। उम्र ही ऐसी होती है। मगर मेरे जैसी लड़की जो अपने आप को समेटे रखती है उसको विश्वास ही नहीं हुआ की ऐसा कुच्छो भी हो सकता है।

तुम्हारे कॉलेज आने पे जितना चिढ़े थे हम उससे कहीं ज्यादा प्यार आया था तुमपे।

और जिस दिन तुमने उठाया था उसी दिन से तुम्हारे हो गये थे। सच्ची कहें तो आज पहली बार बता रहे है, इत्ते दिनों में भी कह नहीं पाये। तुम्हारे घर शादी की बात करने को पिताजी को इशारा भी हम्मी दिये थे। राम जी की कसम। जानते है इस बात को सुनकर तुमको कितनी खुशी होगी।

और जो तुम झूठ मठ का गुस्सा करोगे ना वो देखना है हमे। अच्छा जा रहे है बहुत काम है। बहुत दिनों से सिनेमा देखने का मन है ले चलोगे?"

लगभग 2 घन्टे बाद जब जनाब वापस आये तो श्रीमती जी दो चोटी किये थी और जनाब के हाथों में सिनेमा के टिकट।


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