Prabodh Govil

Abstract

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साहेब सायराना -35

साहेब सायराना -35

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दुनिया करोड़ों की ही नहीं अरबों की है। रोज़ लोग पैदा होते हैं, रोज़ लोग जवान होते हैं।

कब, किस मोड़ पर कौन किसको अच्छा लग जाए, इस हिसाब- किताब की कहीं कोई बही नहीं है।

सातवें दशक में दिलीप कुमार की जोड़ी वहीदा रहमान के साथ भी जमी। दोनों ने कई सफ़ल फ़िल्में साथ साथ कीं। दिलीप कुमार की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म राम और श्याम में भी उनके साथ वहीदा रहमान थीं।

कहते हैं कि मधुबाला से अलग हो जाने के मायूसी भरे दौर में एक बार उनके दिल का झुकाव वहीदा की ओर भी हो गया था।

अब इसे चरित्र- वरित्र की बातों से जोड़ कर मत देखिए... सितारे- शरारे ऐसी ही फितरत रखते हैं, नज़दीक आयेंगे तो चमकेंगे ही।

लेकिन जानकार कहते हैं कि दिलीप कुमार का ये प्रेम एकतरफा नहीं था। वहीदा भी मन ही मन उन्हें चाहने लगी थीं।

किंतु हम सब जानते हैं कि वहीदा रहमान का स्वभाव शुरू से ही बेहद शर्मीला रहा। वो किस्सा मशहूर है जब वहीदा रहमान एक फ़िल्म में केवल स्लीवलेस परिधान पहनने की बात पर ही बिदक गई थीं और अंततः उनके ड्रेसडिजाइनर को ही समझौता करना पड़ा था।

अब प्रेमपींग अगर ज़माने की हवा की रफ़्तार से नहीं बढ़ेगी तो कुछ अनहोनी होगी ही होगी। ऐसा ही हुआ। दिलीप कुमार सायरा बानो के हो गए।

सायरा केवल इशारों पर नाचने वाली गुड़िया ही नहीं बल्कि अपनी चाहत को अपनी अंगुलियों पर नचा पाने वाली रिंगमास्टर भी थीं क्योंकि वो अपनी टीनएज के आने के दिनों से ये ठान कर बैठी थीं कि वो दिलीप कुमार से शादी करेंगी।

जैसे ही दिलीप कुमार के विवाह के नक्षत्र आए सायरा बानो की कुंडली को छोड़ कर बाक़ी सभी कुंडलियां उनकी जन्मपत्री के चार खानों से छिटक कर दूर हो गईं।

सायरा बानो ने राजेंद्र कुमार के साथ तो बस फ़िल्म की "झुक गया आसमान" और दिलीप साहब का आसमान झुका दिया।

इसी फ़िल्म के एक गीत में शायद गीतकार ने दिलीप कुमार और सायरा बानो की वास्तविक प्रेमकहानी भी पिरो डाली। लिखा -

जब वो मिले मुझे पहली बार

उनसे हो गई आंखें चार

पास न बैठे पल भर भी

फिर भी हो गया उनसे प्यार!

... ऐसा हुआ असर कि मेरे होश उड़ गए!

सायरा बानो व राजेंद्र कुमार की ही एक और फ़िल्म की तरह दिलीप कुमार की ज़िंदगी में "अमन" का साम्राज्य स्थापित हो गया।

सायरा बानो की आंखों में दिलीप कुमार के लिए बसी ये मोहब्बत बरसों बाद उस समय भी किसी ताज़ा फूल की भांति लोगों को दिखाई दे रही थी जब दिलीप साहब अपनी उम्र का शतक पूरा करने की दिशा में बढ़ रहे थे।

सायरा सचमुच उन प्रतिभाशाली महिलाओं की तरह ही प्रमाणित हुईं जो प्रेम को ज़िंदगी में एक अलौकिक नज़ीर सिद्ध करती हैं। उन्होंने ज़माने को दिखा दिया कि ज़िंदगी भर हम परदे पर चाहे जैसी पटकथाओं पर अभिनय करते रहे पर असल जिंदगी में हमने जो पटकथा जी ली वो किसी पाकीज़ा पवित्र महागाथा से कमतर नहीं है।

सब जानते हैं कि वर्ष 2020 आते आते सारी दुनिया ने अचानक एक अग्नि परीक्षा दी। इसके अंगारे दिलीप कुमार और सायरा बानो के जीवन पर भी छिटके।

कोरोना महामारी और उससे जुड़े लॉकडाउन ने अठानवे वर्षीय दिलीप कुमार का भी इम्तहान लिया। इस मुश्किल घड़ी में साए की तरह उनका साथ निभाने वाली सायरा जी ख़ुद भी तो अब छियत्तर साल की हो चली थीं। लेकिन उन्होंने दिलीप साहब की देखभाल और हिफाज़त बिल्कुल एक पच्चीस वर्षीया चुस्त दुरुस्त युवती की तरह दौड़ भाग करते हुए की। उनका पूरा ख्याल एक सख्त किंतु सम्मान भरे अनुशासन से रखा। जबकि इसी दौर में यूसुफ साहब के सगे भाई एक- एक करके दुनिया से रुखसत होते रहे।

सायरा बानो की तीमारदारी पर तो मुंबई के एक विश्व प्रसिद्ध हॉस्पिटल के बड़े वरिष्ठ डॉक्टर ने भी लोगों की भारी भीड़ के बीच सार्वजनिक रूप से कह डाला कि दिलीप कुमार के साथ करोड़ों लोगों की दुआएं तो हैं ही, सती सावित्री सी पत्नी भी है इसलिए वे हर झंझावात से निकल पाने में सक्षम हैं।


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