DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

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रूसवाई

रूसवाई

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  उसकी मोटी मोटी आंखो में लाल लाल डोरे, कोरो पर ढूलकने को तैय्यार आंसू और चेहरे पर मासूमियत भरा सवाल देख के मेरी तो जाने की इच्छा मर गई। लेकिन पापी पेट का सवाल न होता तो कौन ऐसे दिलबर से विदा लेता। जाना जरुरी था 10 दिन की छुट्टी कैसे निकल गई एक पल में पता ही न चला। हम अपनी शादी के बाद हनीमून पे थे। मिलन की सुहानी घडिया सुहाने स्वप्न सी साफ साफ दोनो के हृदय में स्पंदित थी।

 और अब दुनियादारी के काम दिमाग का दही कर रहे थे। विरह का पल अग्रिम विवंचना समान उसके मानस पर अंकित था। मगर ये सब भी उतना ही महत्वपूर्ण था जितना आपसी प्रेम मिलन एक भावात्मक एक जीवन का कठोर सत्य जिसके बिना कोई रास्ता ही नही। मुझे कृष्ण लीला का वो संदर्भ याद आ रहा था जब गोपिया कान्हा के विरह में व्याकुळ उद्धव से कभी न खत्म होने वाले सवाल पर सवाल करते जा रही और उद्धव अपने ही दुख से दुखी उनको सांत्वना देने का निरर्थक प्रयास। खैर जैसे तेसे स्नेहा [ मेरी नई नवेली दुल्हन ] को समझा के में ऑटो में बैठा जो बडी बैचैनी से चलने को तत्पर था बैठते ही ले उडा। - एक मिनट बाद ही whatsapp की msg tune के साथ एक नया msg - सिर्फ 4 अक्षर - रूसवाई - स्नेहा  

 युं तो हम दोनो एक दुसरे को कोई 2 साल से जानते थे हमारी लव मेरिज थी। लेकिन arrange शादी थी। सबकी सहमती से। फिर भी इन 10 दिनो मे न जाने स्नेहा और मै इतनी भावूकता जुडे जैसे पहली वार मिले हो।  मै ये तो नही कह सकता ये शारीरिक आकर्षण था मै इसे भावुकता भी नही कह सकता। मै इसे बचपना भी नही कह सकता मै इसे नादानी भी नही कह सकता। फिर आखिर ये क्या था। आखिर था बहुत गेहरा। जो हम दोनो ने पहली बार मेहसूस किया था। / नारी मन की बिहलता का अन्छुआ एहसास मैने आज ही देखा था।  

 स्नेहा अच्छी खासी पढी लिखी नारी है। जोब करती है हम दोनो मध्यम आर्थिक स्तर के समान वैचारिक स्तर के परिवार से आये इन्सान है जीवन को समझते है लेकिन ये हम दोनो के लिये एक अलग ही एहसास था मीठा 2 चुभन जैसा जो लुभाता था एक एक पल में एक दुसरे से आलिंगन में सिमट जाने को और आज उसकी रुसबाई करते हुये मुझे बहुत दुख हो रहा था और मेरा दिल केह रहा था

रुसबा न करा करो प्यार को अपने

ऐसे पल ऐसे प्यार ऐसे प्यार करने वाले जीवन की सबसे बडी संपदा होते है।


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