रोशनी
रोशनी
पिछले कुछ दिनों से कजरी उदास थी,उसे ठीक तरह से काम नही मिल पा रहा था। क्योंकि ज्यादातर बारातें गोधूलि बेला में डीजे की चकाचौंध के साथ निकाली जा रही थी। जिसके कारण गैसबत्ति का प्रचलन अब कम सा हो गया था। शायद तभी कजरी को अब अपने बच्चे पालना भी मुश्किल हो रहा था। फिर अगले दिन उसे ठेकेदार ने, उसे ऑडर के साथ कुछ पैसे एडवांस में देते हुए।
अपनी गैसबत्ति के साथ तय स्थान पर समय पर पहुँचने की हिदायत दी। ठेकेदार के दिये चंद रुपयों को अपनी हथेली पर देख उसका उदास चहरा खुशी से खिल उठा। और वह अपने बच्चे को बगल में व गैसबत्ति को सर पर सजा ,तेज चाल में निकल पड़ी फिर किसी बारात को रोशन करने। वह पूरे रास्ते भगवान से बस यही प्रार्थना कर रही है।
कि उसकी यह गैसबत्ति की रोशनी सदा कायम रहे। ये कभी प्रचलन से बाहर न हो। जिससे वह उसके घर के अंधियारे से लड़ती लालटेन और भूख से लड़ते उसके बच्चों का पेट आसानी से भर सके।
