"रॉंग नम्बर"
"रॉंग नम्बर"


सच कहूँ तो पूरी ज़िंदगी में इतना अफसोस कभी नहीं हुआ, जितना मुझे आज हो रहा है। मुझे लग रहा है कि क्या हम लोग सचमुच विकसित हो रहे हैं?या असभ्य हुए जा रहे हैं।
आदमी इस दुनिया में सिर्फ भागे जा रहा है और जा कहीं नहीं पा रहा है।
मैं बारबार कल रात के घटनाक्रम को याद कर कर के विचलित हो जा रहा हूँ। ऑफिस से निकलते निकलते ही देर हो गई थी और अभी घर पहुंचने में पूरा एक घण्टे का समय और लगना था।अभी घर पहुंच कर जल्दी से तैयार हो कर एक घनिष्ठ मित्र की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह के फंक्शन में शामिल होने जाना था। मैं गाड़ी में घुसने ही वाला था कि मेरे मोबाइल फोन पे किसी अनजान नम्बर से कॉल आई,एक बार घण्टी बज कर कॉल कट गई। मैंने ध्यान भी नहीं दिया। फिर अभी मैं थोड़ा ही आगे बढ़ा कि फिर से ऐसा हुआ। फिर तीसरी बार भी ऐसा हुआ तो मैंने
गाड़ी रोक ली और जिस नम्बर से मिस्ड कॉल आ रही थी उस नम्बर पे कॉल बैक कर दिया। अभी एक बार भी ठीक से घण्टी नहीं बजी कि उधर से किसी ने बड़ी ततपरता से फोन उठा लिया, कोई वृद्ध स्त्री थीं बोलने लगीं 'बेटा सुमित तुम अभी तक घर क्यों नहीं पहुंचे?तुम्हारे पापा को पता नहीं क्या हो गया है?बोल ही नहीं रहे हैं।'महिला ने एक ही सांस में इतना कुछ कह दिया। मौका मिलते ही मैंने कहा 'माँ जी मैं सुमित नहीं हूँ।' 'सॉरी बेटा, लगता है गलत नम्बर लग गया था।' 'जी माँ जी, रॉंग नम्बर।'कह कर मैंने फोन काट दिया और जल्दी से घर की ओर बढ़ गया।
आज सुबह के अखबार में लोकल न्यूज़ वाले कॉलम में कोने एक छोटी सी खबर छपी थी "समय पर इलाज न मिल पाने से राज नगर में एक वृद्ध की मृत्यु"। मुझे तभी से लग रहा है शायद कहीं न कहीं इस मृत्यु का जिम्मेदार मैं हूँ।